महाभारत के अनुसार, ये काम धनी व्यक्ति को भी बना देते हैं दरिद्र

Edited By ,Updated: 12 Feb, 2016 11:41 AM

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भारतीय साहित्य के लौकिक साहित्य सर्जन का आरंभ महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत ग्रंथ से माना जाता है। व्यास जी कहते हैं कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के बारे में जो इस ग्रंथ में लिखित है। वह कहीं भी मिल सकता है लेकिन जो इसमें नहीं है वह कहीं भी...

भारतीय साहित्य के लौकिक साहित्य सर्जन का आरंभ महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत ग्रंथ से माना जाता है। व्यास जी कहते हैं कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के बारे में जो इस ग्रंथ में लिखित है। वह कहीं भी मिल सकता है लेकिन जो इसमें नहीं है वह कहीं भी प्राप्त नहीं हो सकता। उनकी यह गर्वोक्ति नहीं है। यह यथार्थ है।
 
महाभारत में बहुत सारे विद्वानों के सर्वोत्तम विचारों से आम जनमानस को शिक्षा प्राप्त कर अपना जीवन सार्थक बनाना चाहिए। महाभारत के अनुसार कुछ ऐसे काम हैं जिन्हें करने से धनी व्यक्ति भी दरिद्र हो जाता है। महालक्ष्मी का आशीर्वाद पाने के लिए और घर-परिवार की बरकत बनी रहे इसके लिए कुछ ऐसे काम हैं जो नहीं करने चाहिए।
 
श्लोक
षड् दोषा: पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता।।

अर्थात 
 
* तंद्रा अथवा झपकी लेना अलक्ष्मी के आगमन का संकेत होता है। रात को जल्दी सोकर सुबह सूर्य उगने से पहले उठ जाना चाहिए। अधिक सोना दरीद्रता को निमंत्रण देने के बराबर है। 
 
* किसी भी नए काम को करें तो पूरे आत्मविश्वास के साथ करें। डर-डर कर कोई भी काम करने वाले सफलता के शिखर पर नहीं पंहुच पाते।
 
* आलस्य ऐसा दोष है जिससे मनुष्य अपने वर्तमान और भविष्य दोनों को नष्ट कर देता है। आलस्य के कारण ही मनुष्य उन्नति के साधनों को खो देता है। अपने भाग्य को दोष देकर कर्तव्य का पालन न करना आलस्य है। आलसी व्यक्ति कभी लक्ष्मी प्राप्त नहीं कर सकता। 
 
* क्रोध एक ऐसी ज्वाला है। जो किसी दूसरे से अधिक स्वयं को जलाती है। क्रोधी व्यक्ति न तो अच्छे रिश्ते बना सकता है और न सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकता है।
 

* अवश्यक कार्यों को समय पर पूरा न करने वाले कभी भी धन नहीं कमा सकते।  

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