श्राद्ध के लिए उचित स्थान का करें चयन, पितर तृप्त होकर ब्रह्मलोक तक जाते हैं

Edited By ,Updated: 20 Sep, 2016 10:14 AM

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पितरों की संतुष्टि से सुखमय जीवन जैसा आप देते हैं वैसा अनंत गुना आपको मिलता है। श्राद्ध करने से पितरों को आप तृप्त करते हैं तो वे भी आपको तृप्ति की भावनाओं से तृप्त करते हैं।

पितरों की संतुष्टि से सुखमय जीवन
जैसा आप देते हैं वैसा अनंत गुना आपको मिलता है। श्राद्ध करने से पितरों को आप तृप्त करते हैं तो वे भी आपको तृप्ति की भावनाओं से तृप्त करते हैं। श्राद्धकर्म करने वाले की दरिद्रता चली जाएगी। रोग और बीमारियां भगाने की पुण्याई बढ़ जाएगी। स्वर्गिक वातावरण बन जाता है घर में। आयु, प्रज्ञा, धन, विद्या और स्वर्ग आदि की प्राप्ति के लिए श्राद्ध फायदे वाला है। श्राद्ध से संतुष्ट होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को मुक्ति के रास्ते भी प्रेरित करते हैं।

 

गया, पुष्कर, प्रयाग, हरिद्वार तीर्थ अथवा गौशाला, देवालय या नदी-तट भी श्राद्ध के लिए उत्तम जगह मानी जाती हैं। नहीं तो अपने घर में ही परमात्मदेव के नाम से पानी छिड़क कर गोबर अथवा गोधूलि, गोमूत्र आदि से लेपन करके फिर श्राद्ध करें तो भी पवित्र माना जाता है। श्राद्ध में जब तुलसी के पत्तों का उपयोग होता है तो पितर प्रलयपर्यंत तृप्त रहते हैं और ब्रह्मलोक तक जाते हैं।

 

देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
नम: स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमो नम:।।

 

‘देवताओं, पितरों, महायोगियों, स्वधा और स्वाहा को मेरा सर्वदा नमस्कार है, नमस्कार है।’ (अग्रि पुराण : 117.22)

 

श्राद्ध के आरंभ व अंत में उक्त मंत्र का तीन बार उच्चारण करने से श्राद्ध की त्रुटियां क्षम्य हो जाती हैं, पितर प्रसन्न हो जाते हैं और आसुरी शक्तियां भाग जाती हैं।

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