500 रुपए का नोट छापने का नहीं था इरादा, जानिए नोटबंदी के बीच क्या थी सरकार की मंशा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Aug, 2017 09:23 PM

500 rupees note after demonetisation was due to late

हालांकि बात पुरानी है लेकिन बड़ी रोचक है इसलिए बताना जरूरी है। मामला नोटबंदी से जुड़ा है इसलिए आपको जानना जरूरी है...

नई दिल्लीः हालांकि बात पुरानी है लेकिन बड़ी रोचक है इसलिए बताना जरूरी है। मामला नोटबंदी से जुड़ा है इसलिए आपको जानना जरूरी है। पिछले साल 8 नवंबर को की गई नोटबंदी के दो दिन बाद 2,000 रुपये के नए नोट बाजार में अच्छी खासी संख्या में जारी किए गए थे, लेकिन 500 रुपये के नोट को आने में लंबा वक्त लग गया जिसके कारण लाखों लोगों को कई दिनों तक परेशानी झेलनी पड़ी। क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों हुआ? इस मुद्दे से जुड़े एक शीर्ष अधिकारी के पास इस बात का जवाब मौजूद है।

500 रुपए छापने का कोई नहीं था इरादा
जब नोटबंदी की घोषणा की गई थी, तब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पास 2,000 के नए नोटों का 4.95 लाख करोड़ का स्टॉक था, लेकिन उसके पास नए 500 रुपए का एक भी नोट नहीं था। इस नोट के बारे में बाद में सोचा गया। देश में नोट छापने के 4 प्रिंटिंग प्रेस हैं। इनमें आरबीआई के 2 प्रेस हैं, जो मैसूर (कर्नाटक) और सालबोनी (पश्चिम बंगाल) में हैं। इसके अलावा भारतीय प्रतिभूति मुद्रण तथा मुद्रा निर्माण निगम लि. (SPMCIL ) के 2 प्रिंटिंग प्रेस हैं, जो नासिक (महाराष्ट्र) और देवास (मध्य प्रदेश) में हैं। SPMCIL सरकार की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी है, जिसकी स्थापना साल 2006 में नोट छापने, सिक्कों की ढलाई करने तथा गैर-न्यायिक स्टैंप के मुद्रण के लिए की गई थी।

आरबीआई के अॉर्डर के बिना शुरू की छपाई  
SPMCILहमेशा आरबीआई द्वारा दिए गए ऑर्डर के मुताबिक नोटों की छपाई करती है। लेकिन इस बार SPMCIL ने आरबीआई के आधिकारिक आर्डर के बिना ही नोटों की छपाई शुरू कर दी। 500 के नोट की डिजाइन नोटबंदी से पहले केवल आरबीआई के मैसूर प्रेस के पास थी। SPMCIL के देवास प्रेस में आरबीआई के आधिकारिक आर्डर के बिना नवंबर के दूसरे हफ्ते में और नासिक प्रेस में नवंबर के चौथे हफ्ते में इसकी छपाई शुरू कर दी गई। हालांकि, इसकी छपाई आरबीआई के प्रेस में पहले से की जा रही थी, लेकिन वह नोटबंदी के कारण बढ़ी मांग को पूरा नहीं कर पा रहा था।

छपाई की अवधि को 40 से कर दिया 22 दिन
किसी नोट को छापने में सामान्यत: 40 दिन लगते हैं, जिसमें नई डिजाइन के हिसाब से कागज की खरीद में लगने वाला समय भी शामिल है। नोटबंदी के कारण इसमें तेजी लाने के लिए इस अवधि को घटाकर 22 दिन कर दिया गया। नोट की छपाई में लगने वाले कागज और स्याही की खरीद दूसरे देशों से की जाती है, जिसके आने में 30 दिन लगते हैं। लेकिन नोटबंदी के बाद हुई परेशानी को देखते हुए इसे विमान से 2 दिन में लाया जा रहा था। आरबीआई से उसके दूरदराज के चेस्ट में नोट ले जाने में 10-11 दिन लगते हैं, जिसे हेलिकॉप्टर और जहाज से एक सेे डेढ़ दिन में पहुंचाया गया।

छपाई की क्षमता बढ़ाने के लिए 200 लोग भेजे
प्रिंटिंग प्रेस में नोट छापने के जो कागज डाला जाता है, वह उच्च संवेदी सिक्यॉरिटी थ्रेड से लैस होता है और 16 दिन बाद छप कर बाहर निकलता है लेकिन पहली बार देश में बने हुए कागज का इस्तेमाल 500 के नोट छापने में किया गया। यह कागज होशंगाबाद और मैसूर के पेपर मिल में विकसित किया गया। उनकी क्षमता 12,000 मीट्रिक टन सालाना है, जो पर्याप्त नहीं है और अभी भी इसके आयात की जरूरत पड़ती है। नासिक और देवास प्रेस की नोट छापने की संयुक्त क्षमता 7.2 अरब नोट सालाना की है। जबकि आरबीआई के मैसूर और सालबोनी प्रेस की संयुक्त क्षमता 16 अरब नोट सालाना छापने की है। नोटबंदी के बाद इन प्रिंटिंग प्रेस में काम करने के लिए रक्षा मंत्रालय ने 200 लोग भेजे थे और इन प्रेसों के हाल में सेवानिवृत्त हुए 100 कर्मियों की भी मदद ली गई।

500 रुपए के 90 करोड़ नोट छापने का लक्ष्य
500 रुपए के नोट छापने के लिए SPMCIL के नासिक और देवास प्रेस ने खुद का बनाई हुई स्याही का इस्तेमाल किया, जबकि आरबीआई अपने प्रेस में जो स्याही इस्तेमाल करता है, वह दूसरे देशों से आती है। एमपीएमसीआईएल ने 30 दिसंबर तक 500 रुपए के 90 करोड़ नोट छापने का लक्ष्य रखा है। जनवरी से यह 30 करोड़ नोट हर महीने छाप रहा है। आरबीआई और SPMCIL में 500 का नोट 60 और 40 के अनुपात में छपता है, जबकि 2000 का नोट सिर्फ आरबीआई के प्रेसों में ही छापा जाता है। अब ऐसी खबरें आ रही हैं कि 2000 के नोट की छपाई कम कर दी गई है और सरकार ने उसकी जगह 500 के नोट छापने के आदेश दिए हैं।

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