Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Jan, 2018 12:38 PM
लाभ का पद’ मामले में निर्वाचन आयोग की सिफारिश को दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (आप) के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। आयोग ने अपनी सिफारिश में आप के 20 विधायकों को अयोग्य बताते हुए राष्ट्रपति से इनकी सदस्यता खत्म करने की सिफारिश की है। ऐसे में...
नई दिल्ली: ‘लाभ का पद’ मामले में निर्वाचन आयोग की सिफारिश को दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (आप) के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। आयोग ने अपनी सिफारिश में आप के 20 विधायकों को अयोग्य बताते हुए राष्ट्रपति से इनकी सदस्यता खत्म करने की सिफारिश की है। ऐसे में यह मान भी लें कि आप के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द हो जाएगी, तो भी सरकार पर तात्कालिक कोई संकट नहीं दिख रहा है। विधानसभा में आंकड़े फिर भी आप के पक्ष में रहेंगे।
सदस्यता रद्द हुई तो निर्वाचन आयोग कराएगा दोबारा चुनाव
अभी यह सबसे बड़ा सवाल है कि आप के 20 विधायकों की सदस्यता गई तो क्या होगा? दिल्ली में सरकार के लिए बहुमत का आंकड़ा 36 होना चाहिए। 2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला था। कुल 70 सीटों में से आम आदमी पार्टी के 67 विधायक जीत आए थे। इनमें से एक विधायक जरनैल सिंह ने पंजाब से चुनाव लडऩे के लिए दिल्ली विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था। ऐसे में ‘लाभ का पद’ मामले में अगर 20 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी गई तो भी केजरीवाल सरकार के पास बहुमत के आंकड़े से 10 सीट ज्यादा होंगी। हालांकि, अभी कानूनी विकल्प बाकी है। 20 विधायकों की सदस्यता रद्द हुई तो इन सीटों पर निर्वाचन आयोग दोबारा चुनाव कराएगा।
आप ने दी थी ये दलील
आम आदमी पार्टी की ओर से यह दलील आई थी कि देश के कई राज्यों में संसदीय सचिव के पदों पर मुख्यमंत्री विधायकों की नियुक्ति करते हैं, फिर उन्हें क्यों रोका जा रहा है? असल में केजरीवाल जिन राज्यों की बात कर रहे थे, वहां की सरकारों ने पहले कानून बनाया, उसके बाद संसदीय सचिवों की नियुक्ति की। जबकि दिल्ली की आप सरकार ने ऐसा नहीं किया।
नाकाम रही थी कोशिश
केजरीवाल सरकार ने ‘लाभ का पद’ मामले में अपने विधायकों का बचाव करने के लिए इन पदों को लाभ के पद से बाहर रखने के लिए कानून बनाने की कोशिश की थी, लेकिन राष्ट्रपति ने उसे मंजूरी नहीं दी। उस दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय में केंद्र और दिल्ली सरकार के अधिकारों पर चल रही सुनवाई में केंद्र ने साफ किया था कि दिल्ली में इतने संसदीय सचिव नहीं रखे जा सकते। इसका कोई प्रावधान नहीं है। इसके बाद 8 सितंबर, 2016 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति रद्द कर दी थी। इसके बाद आम आदमी पार्टी ने उच्च न्यायालय के इस फैसले को आधार बनाकर निर्वाचन आयोग से विधायकों के मामले खत्म करने की अपील की थी, जिसे आयोग ने नामंजूर कर दिया था।
ये कहता है नियम
गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली एक्ट-1991 के तहत दिल्ली में सिर्फ एक संसदीय सचिव का पद हो सकता है। यह संसदीय सचिव मुख्यमंत्री कार्यालय से जुड़ा होगा, लेकिन केजरीवाल सरकार ने 21 विधायकों को ये पद दिया था।