आरुषि-हेमराज मर्डर केस: आखिर क्यों उलझ गई CBI?

Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Oct, 2017 10:23 AM

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मर्डर मिस्ट्री में 2 हत्याएं (आरुषि-हेमराज), 2 तरह के किस्से, 2 तरह के ही सुराग, 2 संभावनाएं और 2 तरह के संदिग्ध सामने आए। गाजियबाद कोर्ट के सामने 5 साल और हाईकोर्ट में 4 साल 2 तरह के ट्रायल।

नई दिल्लीः मर्डर मिस्ट्री में 2 हत्याएं (आरुषि-हेमराज), 2 तरह के किस्से, 2 तरह के ही सुराग, 2 संभावनाएं और 2 तरह के संदिग्ध सामने आए। गाजियबाद कोर्ट के सामने 5 साल और हाईकोर्ट में 4 साल 2 तरह के ट्रायल। 3 जांचकर्त्ता पहले नोएडा पुलिस, दूसरी सी.बी.आई. की टीम और फिर सी.बी.आई. की एस.आई.टी. टीम 3 तरह के अलग-अलग जांचकर्त्ता। पहले 5 साल में 46 गवाह बाद में हाईकोर्ट में 27 गवाह नए पेश किए।  जांच में करीब 15 डॉक्टर, 4 फोरैंसिक प्रयोगशालाएं भी लगीं। मामले में 7 बार गिरफ्तारी और 3 बार रिहाई भी हुई। ऐसे में केस को उलझना ही था। मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व डी.जी.पी. विक्रम सिंह ने कहा मैं उस समय केस से सीधे नहीं जुड़ा था,लेकिन यू.पी. के हर आई.पी.एस. की नजर में वह केस रोज सामने आता था।

मामले में तीनों जांचकर्त्ताओं ने अलग-अलग निष्कर्ष निकाला जिससे यह केस खराब हुआ। या तो जांचकर्त्ता फोरैंसिक को आधार बनाता या फिर मिले साक्ष्यों से परिस्थितियों को जोड़ता तो शायद हाईकोर्ट में यह परिवार नहीं छूटता लेकिन दोष एजैंसियों का ही है। आरुषि-हेमराज मर्डर मिस्ट्री में 9 साल के दौरान 73 गवाह पेश किए गए और करीब 22 करोड़ से ज्यादा का खर्चा आया। यह खर्चा अब तक किसी भी मर्डर को सुलझाने में किया गया सबसे अधिक खर्च है, उसके बाद भी सी.बी.आई. जैसी एजैंसी कटघरे में है कि कोर्ट कहता है कि आप मर्डर जैसे केस में सबूतों की जगह संदेह को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं, जबकि आपके पास देश की सर्वश्रेष्ठ लैब और अधिकारी हैं। कोर्ट ने सी.बी.आई. को ये भी चेताया कि अन्य केसों में जहां आप फोरैंसिक को मुख्य आधार बनाते हैं वहीं आपने इस केस में उसे आधार नहीं रखा। यही नहीं कानूनन किसी भी जुर्म को साबित करने के लिए कड़ी से कड़ी को जोड़ना बेहद जरूरी होता है, जो इस केस में आपने नहीं किया इसलिए संदेह का लाभ तलवार दम्पति को मिला।

कब-क्या हुआ?

-15 मई 2008 की रात में नोएडा के सैक्टर-25, जलवायु विहार में आरुषि और नौकर हेमराज की हत्या कर दी गई थी।

-17 मई की सुबह फ्लैट की छत से नौकर हेमराज का शव बरामद हुआ था।

-23 मई को इस मामले में नोएडा पुलिस ने आरुषि के पिता डॉ. राजेश तलवार को गिरफ्तार कर लिया था।

-1 जून को यह केस सी.बी.आई. को जांच के लिए सौंप दिया गया था।
 
-12 जुलाई 2008: सबूतों के अभाव में राजेश तलवार को रिहा किया गया।

-सितम्बर 2008: सबूतों के अभाव में राजेश तलवार के सहायक और
2 नौकरों को भी रिहा कर दिया।

-फरवरी 2009: तलवार दम्पति पर हत्या का मुकद्दमा दर्ज।

-30 अप्रैल 2012: नूपुर तलवार को भी गिरफ्तार किया गया।

-जून 2012:  अदालत के निर्देश पर फिर से सुनवाई शुरू हुई।

-25 सितम्बर 2012: नूपुर तलवार की रिहाई का आदेश जारी हुआ।

-24 अप्रैल 2013: सी.बी.आई. ने राजेश तलवार पर हत्या का आरोप लगाया।

-25 नवम्बर 2013: नूपुर एवं राजेश तलवार को अपनी पुत्री आरुषि और नौकर हेमराज की हत्या का दोषी करार दिया गया।

-26 नवम्बर 2013: नूपुर एवं राजेश तलवार को उम्रक़ैद की सजा।

-सितम्बर 2016: उम्रकैद के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील।

-12 अक्तूबर 2017: हाईकोर्ट की खंडपीठी ने आरुषि-हेमराज हत्याकाण्ड मामले में सबूतों के अभाव में तलवार दंपति को रिहा करने के दिए आदेश।

 

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