कारगिल विजय दिवसः जांबाजों ने इस टैक्नीक से जीता था कारगिल युद्ध

Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Jul, 2017 02:59 PM

airforce won the kargil war by this technique

आज हम कारगिल विजय दिवस 26 जुलाई, 1999 के उस दिन को मना रहे हैं, जब कारगिल में देश के वीर सिपाहियों ने पाकिस्तानी सेना को धूल चटाने के लिए ऑप्रेशन का बिगुल बजाया

नई दिल्ली : आज हम कारगिल विजय दिवस 26 जुलाई, 1999 के उस दिन को मना रहे हैं, जब कारगिल में देश के वीर सिपाहियों ने पाकिस्तानी सेना को धूल चटाने के लिए ऑप्रेशन का बिगुल बजाया, जिसमें आरएस पुरा के वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी। भारत के हाथ मिली करारी हार को पाकिस्तान जिंदगीभर भूल नहीं पाएगा और न ही भारत की तरफ आंख उठाने की हिम्मत जुटा पाएगा।

वहीं कारगिल युद्ध के 18 साल पूरे होने पर एयर चीफ मार्शल बीएस धनोवा ने एक प्रमुख समाचार पत्र से बातचीत में अपने तब के अनुभव साझा किए। एयर चीफ मार्शल ने अखबार को बताया कि वे उस समय 17 स्क्वाड्रन गोल्डन ऐरो का कमांडिंग ऑफिसर थे और फाइटर प्लेन उड़ाते थे। कारगिल युद्ध ऐसा पहला मौका था जब मिग-21 ने पहाड़ी इलाकों में रात के समय हमलावर मिशन चलाए थे।

ऑपरेशन सफेद सागर, करगिल ऑपरेशन चलाया
धनोवा ने बताया कि करगिल इलाके में नेशनल हाईवे 1ए की बर्फीली पहाड़ियों पर पाकिस्तानी सेना और आतंकियों ने घुसपैठ कर ली थी। उन्हें हटाने के लिए ऑपरेशन सफेद सागर, करगिल ऑपरेशन लॉन्च किया गया था। नियंत्रण रेखा में भारतीय सीमा की चोटियों पर दुश्मन ने बर्फ पिघलने से पहले ही कब्जा शुरू कर दिया था। उनका इरादा लद्दाख और कश्मीर घाटी के बीच संपर्क खत्म करना था। "ये तब हो रहा था जब भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री दोनों देशों के बीच शांति की पहल का जश्न मना रहे थे। तब मेरी रैंक विंग कमांडर थी और धनोवा मिग 21 उड़ाते थे। शुरुआत में तस्वीरों के जरिए पूरी जानकारी लेने के लिए वे मिशन पर निकले थे। जानकारी हासिल करने के बाद धनोवा की टीम ने घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए स्ट्राइक मिशन उड़ाए।" 

बंकरों में छुपकर बैठे थे दुश्मन
धनोवा ने बताया वे और तब फ्लाइट लेफ्टिनेंट रहे आरएस धालीवाल ने टाइगर हिल और तोलोलिंग की पहली बार टोह ली। मुझे याद है कि जो फोटो हमने खींची थी उसमें दुश्मन यहां-वहां फैला हुआ था और भारतीय इलाकों के पहाड़ों में बने बंकरों में सुरक्षित स्थिति में था। हम दुश्मन के लॉजिस्टिक्स, गोला-बारूद के ठिकानों और कम्युनिकेशन लाइन को टारगेट करना चाहते थे, ताकि वह भूखा मर जाए या मजबूरन हमारे इलाके से कब्जा छोड़ दे।

नहीं थी एलओसी पार करने की इजाजत
धनोवा ने बताया कि हमारे ऑपरेशन पर काफी पाबंदियां थीं। हमें एलओसी पार करने की इजाजत नहीं थी। यदि आपको एक पेड़ पर हमला करना है तो आप भले जड़ों पर निशाना न लगाएं कम से कम तने तक तो जाएंगे लेकिन हमें कहा गया था सिर्फ टहनियों और पत्तियों पर हमला करो। वो भी उन पत्तियों पर जो हमारे इलाके में हैं। 27 मई 1999 को हमारी स्क्वाड्रन के सेकंड इन कमांड स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा के एयरक्राफ्ट को स्टिंगर मिसाइल के जरिए दुश्मन ने गिरा दिया था।

अजय तब फ्लाइट लेफ्टिनेंट के. नचिकेता को ढूंढने निकले थे। नचिकेता का विमान क्रैश हुआ था। वह सुरक्षित बाहर निकल आए थे, पर लापता थे। उन्हें ढूंढते हुए आहूजा दुर्भाग्य से दुश्मन की मिसाइल के निशाने पर आ गए। अजय विमान से सुरक्षित बाहर निकले थे। उन्हें दुश्मन ने पकड़ लिया और हत्या कर दी। दो दिन बाद उनका शव हमें सौंपा गया। गले और दिल पर गोलियों के निशान मिले थे. वह मेरी यूनिट के लिए सबसे दुखद दिन था। हमें आहूजा पर गर्व है, जिन्होंने एयरफोर्स के मूल्यों और परंपरा को कायम रखा और अदम्य साहस दिखाते हुए अपने साथी को बचाने की कोशिश की।"

साथी की शहादत ने दिया दुश्मन का सफाया करने का हौसला
धनोवा ने कहा कि आहूजा की शहादत ने हमें और ज्यादा ताकत के साथ हमला करने को प्रेरित किया। वो भी तब तक, जब तक कि दुश्मन का सफाया न कर दें। हमारा स्क्वाड्रन दुश्मन की पोजिशन के फोटो लेने लगा और दिए गए टारगेट पर बम गिराने लगा। ऑपरेशन खत्म हुआ तो गोल्डन ऐरो इतिहास बना चुका था। कारगिल हिल हम फतह कर चुके थे।

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