चीन का दावा, पेरिस समझौते से अमेरिका का अलग होना ‘वैश्विक झटका’

Edited By Punjab Kesari,Updated: 02 Jun, 2017 03:40 PM

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राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते से अमेरिका को अलग करने के फैसले की आज घोषणा की और उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती आेबामा प्रशासन के दौरान 190 देशों के साथ किए गए इस समझौते पर फिर से बातचीत करने की जरूरत है।

शंघाईः राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते से अमेरिका को अलग करने के फैसले की आज घोषणा की और उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती आेबामा प्रशासन के दौरान 190 देशों के साथ किए गए इस समझौते पर फिर से बातचीत करने की जरूरत है।  चीन और भारत जैसे देशों को पेरिस समझौते से सबसे ज्यादा फायदा होने की दलील देते हुए ट्रंप ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पर समझौता अमेरिका के लिए अनुचित है क्योंकि इससे उद्योगों और रोजगार पर बुरा असर पड़ रहा है।

वहीं अमेरिका को इस समझौते से बाहर होने पर काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। चीनी मीडिया के मुताबिक चीन जलवायु परिवर्तन से लड़ने के नेतृत्व के बारे में चर्चा करने में दिलचस्पी नहीं लेगा और उत्सर्जन को कम करने के अपने वादे पर ध्यान केन्द्रित करेगा।

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उठाना पड़ सकता है नुकसान
-चीन के मुताबिक पेरिस समझौता तोड़ना ट्रंप के लिए ‘वैश्विक झटका’ साबित हो सकता है क्योंकि इससे अमेरिका में रोजगार बढ़ेगा नहीं बल्कि घटेगा।

-कोई भी देश जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए वैश्विक प्रयासों का नेतृत्व करने के लिए तैयार नहीं है।   

-चीन 2007 में ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जक के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ दुनिया का सबसे बड़ा देश बन गया था लेकिन विश्लेषकों का मनना है कि पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका के अलग होने के बाद चीन इसे वैश्विक नेतृत्व देकर अपनी इस छवि को सुधार सकता है।

-ट्रंप के इस फैसले के बाद किसी एक देश के लिए इस जगह को भरना काफी कठिन चुनौती होगा। इस समझौते से जुड़े प्रमुख देश चीन, यूरोपीय संघ और भारत ने इसे आगे बढ़ाने की इच्छा दोहराई है।

-2015 पेरिस समझौते को छोड़ने से शायद ही नई नौकरियों में पर्याप्त वृद्धि हो पाएगी क्योंकि जीवाश्म ईंधन उद्योग पहले से ही अत्यधिक स्वचालित है।
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क्या है पेरिस जलवायु समझौता
दिसंबर 2015 में कई दिनों की गहन बातचीत के बाद पेरिस जलवायु समझौते की नींव रखी गई थी। 190 देश इसके लिए राजी हो चुके हैं। भारत ने 2016 में इसके लिए हामी भरी थी। भारत से पहले 61 देश इस समझौते के लिए राजी हो चुके थे जो कि करीब 48 प्रतिशत कार्बन का उत्सर्जन करते हैं।

-इस समझौते के अंतर्गत इस शताब्दी के अंत तक वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखने की हर संभव कोशिश की जाएगी।

- समझौते का उद्देश्य कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य गैसों के उत्सर्जन को घटाना है।

-समझौते के तहत अमेरिका ने 2025 तक 2005 के स्तर से अपने उत्सर्जन को 26 से 28 प्रतिशत कम करने का वादा किया था।
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इसलिए ट्रंप हुए अलग
ट्रंप ने यूएस को पेरिस समझौते से अलग करते हुए कहा, ‘हमारे नागरिकों के संरक्षण के अपने गंभीर कर्तव्यों को पूरा करने के लिए अमेरिका पेरिस जलवायु समझौते से हट जाएगा…हम उससे हट रहे हैं और फिर से बातचीत शुरू करेंगे।’ ट्रंप ने कहा कि वह चाहते हैं कि जलवायु परिवर्तन को लेकर पेरिस समझौते में अमेरिकी हितों के लिए एक उचित समझौता हो।
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अन्य देशों ने जताई नाराजगी
जर्मनी, फ्रांस, कनाडा और ब्रिटेन के नेताओं ने इस पर नाखुशी जताई थी। ट्रंप ने ने इन देशों को निजी तौर पर फोन कर महत्वपूर्ण पेरिस जलवायु समझौते को छोडऩे के अपने फैसले के बारे में विस्तार से बात की। हालांकि यह नहीं बताया गया कि ट्रंप ने जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैकरॉन, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन त्रुदू और ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीजा मे से ये बातें अपने फैसले की घोषणा से पहले की थी या बाद में। बहरहाल इसने बताया कि राष्ट्रपति ने ‘‘इन नेताओं को आश्वासन दिया कि अमेरिका ट्रांसअटलांटिक गठबंधन के प्रति प्रतिबद्ध रहेगा और पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को मजबूती देगा।’’ पिछले सप्ताह कुछ नेताओं ने सिसिली में जी-7 शिखर सम्मेलन की बैठक के दौरान ट्रंप को यह समझाने की कोशिश की थी कि वह 2015 के समझौते से नहीं हटें।

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