बिहार: नेताओं के ‘दावत-ए-इफ्तार’ पर राजनीति के रंग

Edited By ,Updated: 13 Jul, 2015 03:09 PM

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इलाहाबाद सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को निठारी हत्याकांड के दोषी सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा देने की उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए उसे नोटिस जारी किया।

पटना: बिहार में विधान परिषद चुनाव की गहमागहमी समाप्त होते ही सभी राजनीतिक पार्टियों ने आगामी सितंबर-अक्टूबर महीने में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर तैयारियां शुरू कर दी हैं। ऐसे में नेता मतदाताओं को आकर्षित करने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते। इसी के मद्देनजर रमजान के पवित्र महीने में सभी दल के नेता ‘दावत-ए-इफ्तार’ का आयोजन कर मतदाताओं को आकर्षित करने में जुटे हुए हैं।

लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के अध्यक्ष रामविलास पासवान ने रविवार को पार्टी कार्यालय में इफ्तार का आयोजन किया। बड़ी संख्या में रोजेदारों के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के नेता इसमें शरीक हुए। वहीं बिहार सरकार में मंत्री श्याम रजक की तरफ से फुलवारीशरीफ के प्रसिद्घ खानकाह-ए-मुजिबिया के कम्युनिटी हॉल में दिए गए इफ्तार में लालू प्रसाद और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शामिल हुए। 

प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में भी रविवार को दावत-ए-इफ्तार का आयोजन किया गया। इस इफ्तार में भी बड़ी संख्या में रोजेदार व नेता शामिल हुए। लालू प्रसाद सोमवार को तथा भरतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी बुधवार को दावत-ए-इफ्तार का आयोजन कर रहे हैं। इसके अलावा भी कई नेता दावत-ए-इफ्तार का आयोजन कर रहे हैं। 

दरअसल, विधानसभा चुनाव की नैया पार करने को लेकर तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं की पेशानी पर बल है। इस चुनावी बेला में अपनी गलतियों को सुधारने को लेकर भी नेता आतुर दिख रहे हैं। वहीं, सभी दल मतदाताओं को लुभाने में जुटे हैं। रमजान के महीने में नेताओं को फिलहाल सबसे मुफीद इफ्तार की दावतें नजर आ रही हैं।

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के एक नेता ने नाम प्रकाशित नहीं होने की शर्त पर बताया कि इफ्तार की दावतें तो हर साल होती हैं, लेकिन चुनाव के पूर्व होने वाली इफ्तार पार्टियों का अलग ही महत्व है। इस मौके पर जहां मुस्लिम समुदाय के नेताओं की सोच और भावी रणनीतियों को जानने का मौका मिल जाता है, वहीं मुस्लिम समाज के मन टटोलने का भी मौका मिलता है। इस विषय पर मंत्री श्याम रजक कहते हैं कि रमजान का महीना सिर्फ मुसलमानों का ही नहीं, बल्कि सभी को परहेजगार बना देता है। यह पावन महीना है। इसे राजनीति से जोड़कर देखना उचित नहीं है। बहरहाल, चुनावी साल में इफ्तार की दावत ने रंग पकड़ ली है और अभी ईद बाकी है।

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