Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Mar, 2018 10:36 AM
यूपी और बिहार के उपचुनाव परिणाम भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजाने वाले हैं। इस साल कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसमें राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ प्रमुख हैं। 2019 में लोकसभा चुनाव भी होने हैं। ऐसे में मोदी-शाह की जोड़ी को अब नई...
नई दिल्ली: यूपी और बिहार के उपचुनाव परिणाम भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजाने वाले हैं। इस साल कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसमें राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ प्रमुख हैं। 2019 में लोकसभा चुनाव भी होने हैं। ऐसे में मोदी-शाह की जोड़ी को अब नई रणनीति के साथ कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है।
अमित शाह की रणनीतियां हो गई फेल
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की रणनीतियां यूपी और बिहार के उपचुनाव में फेल हो गई हैं। इससे पहले राजस्थान और मध्य प्रदेश के उप चुनाव में भी भाजपा को मुंह की खानी पड़ी थी। लेकिन, यूपी और बिहार के उपचुनाव निश्चित ही भाजपा के चाणक्य अमित शाह का सिर दर्द बढ़ाने वाले होंगे। ये चुनाव गैर-भाजपा दलों के लिए भी नई दिशा देने वाले साबित हो सकते हैं।
यूपी में भाजपा का खेल हो सकता है तमाम
यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की डिनर डिप्लोमेसी के बाद भाजपा की उपचुनाव में शिकस्त विपक्ष की एकजुटता को मजबूती देती नजर आ सकती है। यूपी में जिस तरह से बसपा और सपा ने गठजोड़ कर भाजपा को हराया है, अगर यही रणनीति दोनों लोकसभा चुनाव 2019 में अपनाई तो भाजपा का खेल यूपी में तमाम हो सकता है। अमित शाह के लिए चिंता की एक वजह यह भी है कि एनडीए के घटक दलों में भी केंद्र की मोदी सरकार से मोह भंग हो रहा है। इसका संकेत पहले शिवसेना ने दिया, फिर इस कड़ी को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू की टीडीपी ने आगे बढ़ाया।
मोदी सरकार से नाराज चल रही है केसीआर की पार्टी
तेलंगाना में भी केसीआर की पार्टी मोदी सरकार से नाराज चल रही है। भाजपा के लिए उस सूरत में मुश्किलें और भी बढ़ती नजर आ सकती है, जब गैर-भाजपा दलों का महागठबंधन मूर्त रूप ले लेता है। हालांकि इसके गठन में भी काफी दिक्कतें आने वाली हैं। अगर महागठबंधन फिर भी खड़ा हुआ तो भाजपा की चुनावी जमीन खिसकानी विपक्ष के लिए आसान हो जाएगी। पीएनबी घोटाला और राफेल डील पर मोदी सरकार पहले ही विपक्ष के निशाने पर है। वहीं, देश की अर्थव्यवस्था जमीन स्तर पर उतनी चमकदार नजर नहीं आती है, जितनी की मीडिया में दिखाई जाती है। इसके अलावा किसान और मजदूरों में बढ़ता असंतोष भी भाजपा के लिए चिंता का सबब साबित हो सकता है।