मनमोहन के समय सब्जियां, मोदी के दौर में दूर हुई दाल

Edited By ,Updated: 01 Aug, 2016 02:53 PM

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आम जनता के लिए दुश्वार होती महंगाई राजनीतिक दलों के लिए सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप का हथियार बनकर रह गई है। इतना ही नहीं, लगभग 2 वर्ष पहले भाजपा नेता यू.पी.ए. सरकार पर महंगाई....

नई दिल्ली: आम जनता के लिए दुश्वार होती महंगाई राजनीतिक दलों के लिए सिर्फ  आरोप-प्रत्यारोप का हथियार बनकर रह गई है। इतना ही नहीं, लगभग 2 वर्ष पहले भाजपा नेता यू.पी.ए. सरकार पर महंगाई को लेकर जो आरोप लगा रहे थे वही आरोप अब विपक्ष में बैठी कांग्रेस लगा रही है। भाजपा के मंत्रियों के जवाब भी कांग्रेस के मंत्रियों जैसे ही हैं। जाहिर है कि राजनीतिक दलों की बहस के बीच में महंगाई की असली तस्वीर को समझना मुश्किल है। 

सच्चाई यह है कि महंगाई की मार से न तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नीत यू.पी.ए. बचा पाई थी और न ही प्रधानमंत्री नरेंंद्र मोदी नीत राजग सरकार बहुत सफल रही है। यू.पी.ए. काल में आलू, प्याज व टमाटर जैसी सब्जियां थाली से दूर हुईं तो राजग काल में दालें दूर हो गई है। यू.पी.ए. के दूसरे कार्यकाल और मौजूदा राजग की 2 वर्ष की अवधि में महंगाई के आंकड़े आम जनता की दुश्वारियों को बयान करते हैं। 

 
यू.पी.ए. के समय सब्जी गायब
यू.पी.ए. के दूसरे कार्यकाल में वर्ष 2009 से 2014 के बीच दूध, आलू, प्याज और टमाटर के साथ नमक के मूल्य में भारी बढ़ौतरी दर्ज की गई थी। आलू 13 रुपए किलो से बढ़कर 26 रुपए, प्याज 20 रुपए से 34 रुपए और टमाटर 21 रुपए से 41 रुपए प्रति किलो पहुंच गए थे। दूध के दामों में उबाल ने लोगों की दुश्वारियां बढ़ा दी थीं जब कीमतें 22 रुपए प्रति लीटर से बढ़कर 38 रुपए लीटर तक पहुंच गई थीं। यानी कि लोगों की थाली से सब्जी लगभग गायब हो गई थी।

राजग के दौर में दाल पतली
वर्तमान राजग सरकार के 2 वर्षों के दौरान दलहन फसलों की खेती बुरी तरह प्रभावित हुई है। लिहाजा दलहन की पैदावार में 20 लाख टन तक की कमी दर्ज की गई। नतीजा मांग व आपूर्ति का फासला 76 लाख टन से भी अधिक हो गया लेकिन हैरानी इस बात की है कि 58.8 लाख टन दालों के आयात के बावजूद कीमतें काबू में नहीं आई या यूं कहे कि गरीब पतली दाल खाने के लिए मजबूर हैं।
 
जमाखोरों ने समय को भांपा
हालांकि मांग व आपूर्ति के इस बढ़ते फासले को जमाखोर व्यापारियों ने समय पर भांप लिया। नतीजतन दाल की कीमतें 7वें आसमान को छूने लगीं। पिछले 2 वर्षों में दाल के दाम में कई गुना की वृद्धि हुई है। जुलाई, 2014 से जुलाई, 2016 के दौरान चना दाल का मूल्य 50 रुपए से बढ़कर 119 रुपए किलो हो गया है। अरहर दाल 74 से बढ़कर 160-170 रुपए किलो और उड़द दाल 76 से 15 रुपए प्रति किलो हो गई है। हालांकि मूंग के मूल्य में कम वृद्धि दर्ज की गई है। आश्चर्यजनक रूप से सब्जियों के मूल्य में इस अवधि के दौरान गिरावट दर्ज की गई है।
 
आलू जुलाई, 2014 में जहां 2 रुपए किलो था वहीं मौजूदा समय में कीमत 27 रुपए किलो हो गई है। इसी तरह प्याज का मूल्य 34 रुपए से घटकर 22 रुपए और टमाटर 56 रुपए से कम होकर 53 रुपए किलो रह गया है। जमाखोरों पर छापेमारी की कार्रवाई जिन राज्य सरकारों को करनी है उनमें से ज्यादातर निष्क्रिय हैं। जिन राज्यों में छापे मारे गए वहां से भारी मात्रा में दालें बरामद हुई हैं।

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