Edited By Punjab Kesari,Updated: 28 Nov, 2017 02:56 PM
सरहद पर तैनात बीएसएफ जवान जीते जी तो देश की सुरक्षा में जुटे रहते हैं अब वह मरने के बाद भी देश के काम आना चाहते हैं। इंसानियत की मिसाल कायम करने जा रहे 70 हजार बीएसएसफ जवानों ने अंगदान के प्रति अपना जज्बा दिखाया है। यानि मरने के बाद भी उनके अंग किसी...
नेशनल डेस्क: सरहद पर तैनात बीएसएफ जवान जीते जी तो देश की सुरक्षा में जुटे रहते हैं अब वह मरने के बाद भी देश के काम आना चाहते हैं। इंसानियत की मिसाल कायम करने जा रहे 70 हजार बीएसएसफ जवानों ने अंगदान के प्रति अपना जज्बा दिखाया है। यानि मरने के बाद भी उनके अंग किसी के काम आएंगे। जवानों का मानना है कि मानयता की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है और इसके लिए अंगदान से बेहतर और कोई तरीका नहीं हो सकता।
इस मुहिम में रिटायर्ड कर्मी भी शामिल
बीएसएफ ने अपने जवानों और अधिकारियों को इस बात के लिए प्रेरित कर एक अलग ही रिकार्ड कायम कर दिया है। यह जवान मुख्य रूप से पाकिस्तान और बांग्लादेश की सीमा पर देश की हिफाहज करते हैं। बीएसएफ के महानिदेशक केके शर्मा ने बताया कि बल में इसके लिए पिछले लंबे समय से लोगों को प्रेरित किया जा रहा है। यहां तक कि रिटायर्ड कर्मियों के कल्याण के लिए चलने वाले कार्यक्रमों में भी यह संदेश दिया जा रहा है। अंगदान का प्रण लेने वालों में सेवारत जवान ही नहीं बल्कि रिटायर्ड कर्मी भी शामिल हैं।
देशभर में अंगदान करने वालों की संख्या बहुत कम
वहीं सोमवार को 8वें भारतीय अंगदान दिवस के मौके पर नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (नोटो) की ओर से आयोजित कार्यक्रम में स्वास्थ्य राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने इस उल्लेखनीय योगदान के लिए बीएसएफ के महानिदेशक केके शर्मा को सम्मानित किया। बता दें कि अंगदान कर दूसरों को जीवन देने वाले लोगों की संख्या पूरे देश में एक प्रतिशत भी नहीं है। कई लोगों की मौत सिर्फ इस कारण हो जाती है कि उन्हे समय पर अंग नहीं मिल पाता है। बीएसएफ की कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा लोग हस मुहिम में आगे आएं ताकि अंगदान के अभाव में होने वाली मौतों में कमी आए।