भारत ने बढ़ाई चीन-पाक की मुश्किलें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Dec, 2017 12:07 PM

chabahar will become tention for china and pakistan

रविवार 3 नवंबर को ईरान चाबहार बंदरगाह का पहला चरण शुरू हो गया। इस बंदरगाह के जरिए भारत-ईरान-अफगानिस्तान के बीच नए रणनीतिक ट्रांजिट रूट की शुरुआत हो रही है...

नई दिल्लीः रविवार 3 नवंबर को ईरान चाबहार बंदरगाह का पहला चरण शुरू हो गया। इस बंदरगाह के जरिए भारत-ईरान-अफगानिस्तान के बीच नए रणनीतिक ट्रांजिट रूट की शुरुआत हो रही है। इससे जहां भारत को लाभ होगा वहीं चीन और पाकिस्तान की मुसीबत बढ़ जाएंगी। पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट के जरिए चीन ने भारत को घेरने की कोशिश की थी।
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चीन को लगता था कि वो ग्वादर के जरिए यूरोप के देशों तक भारत की पहुंच को रोकने में कामयाब रहेगा लेकिन ईरान में चाबहार के जरिए भारत ने चीन की मंशा को नाकाम कर दिया है। चाबहार पोर्ट को विकसित करने के लिए 2003 में ईरान के साथ समझौता हुआ और पिछले वर्ष विकास की रफ्तार बढ़ाई गई। चाबहार के पहले प्रोजैक्ट को ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने दोनों देशों को समर्पित किया। 
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ये है चाबहार पोर्ट की खासियत
चाबहार पोर्ट दक्षिण पूर्वी ईरान में है। इस बंदरगाह के जरिए पाकिस्तान को दरकिनार कर भारत का अफगानिस्तान से बेहतर संबंध स्थापित हो सकेगा। अफगानिस्तान के साथ भारत के आर्थिक और सुरक्षा हित जुड़े हुए हैं। इस बंदरगाह के जरिए ट्रांसपोर्ट कॉस्ट और समय में एक तिहाई की कमी आएगी। ईरान चाबहार पोर्ट को ट्रांजिट हब के तौर पर विकसित करना चाहता है। ईरान की नजर हिंद महासागर और मध्य एशिया के व्यापार पर से जुड़ी हुई है।
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भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जिसने पश्चिमी देशों के साथ ईरान के बिगड़ते हुए रिश्तों के बाद भी ईरान के साथ अपने व्यापारिक संबंध को कायम रखा। कच्चे तेल के मामले में चीन के बाद भारत दूसरा बड़ा ग्राहक है।  ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थिति चाबहार पोर्ट भारत के लिए रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण है। फारस की खाड़ी में इस बंदरगाह के जरिए भारत के पश्चिमी तट आसानी से जुड़ सकते हैं। चाबहार से अफगानिस्तान के जरांज तक रोड नैटवर्क को और मजबूत किया जा सकता है। जरांज की चाबहाक से दूरी 883 किमी है। जरांज-देलाराम हाइवे के निर्माण से भारत अफगानिस्तान के चार शहरों हेरात, कंधार, काबुल और मजार-ए-शरीफ तक सीधी पहुंच बना सकेगा।

चाबहार पोर्ट ऐसा विदेशी पोर्ट होगा जिसपर भारत की सीधी भागीदारी होगी। 2003 में चाबहार पोर्ट को विकसित करने के लिए भारत और ईरान में एक तरह का समझौता हुआ था।   पश्चिमी देशों द्वारा ईरान पर प्रतिबंध लगाने के बाद चाबहार के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच बातचीत में नरमी आ गई थी। लेकिन ईरान से प्रतिबंध हटाए जाने के बाद भारत ने इस समझौते को तार्किक परिणाम तक पहुंचाने के लिए कोशिश शुरू कर दी। विश्व में तेल आपूर्ति का पांचवां हिस्सा फारस की खाड़ी के जरिए होता है। इस लिहाज से चाबहार पोर्ट महत्वपूर्ण है। चाबहार पोर्ट के प्रथम चरण में भारत 200 मिलियन डॉलर का निवेश करेगा। इस निवेश में 150 मिलियन डॉलर एक्जिम बैंक के जरिए उपलब्ध कराया जाएगा।
 

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