गुजरात में इस राजस्थानी ने कांग्रेस को दिला दी संजीवनी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Dec, 2017 05:12 PM

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सा नहीं है कि बीजेपी के पास ही चाणक्य हैं। शायद ही आपको पता होगा कि कांग्रेस को गुजरात में संजीवनी दिलाना वाला असली चेहरा राजस्थान का था। जिसे जब कांग्रेस आलाकमान और राहुल गांधी ने गुजरात का प्रभारी बना कर भेजा तो पार्टी के अंदर उसके सियासी दुश्मन...

नेशनल डेस्क, आशीष पाण्डेय: ऐसा नहीं है कि बीजेपी के पास ही चाणक्य हैं। शायद ही आपको पता होगा कि कांग्रेस को गुजरात में संजीवनी दिलाना वाला असली चेहरा राजस्थान का था। जिसे जब कांग्रेस आलाकमान और राहुल गांधी ने गुजरात का प्रभारी बना कर भेजा तो पार्टी के अंदर उसके सियासी दुश्मन के चेहरे पर मुस्कान तैर गई। उनकी सोच थी इस नेता का राजनीति जीवन दांव हैं। इतना ही नहीं गुजरात का प्रभारी बनना इस नेता को राजस्थान की सियासत से उसे दूर करने की साजिश समझा जाने लगा। मगर गुजरात के चुनाव अभियान ने उन्हें फिर मज़बूत भूमिका में खड़ा कर दिया। वो इस कदर चुनाव अभियान में जुटे कि दिवाली पर भी अपने घर नहीं लौटे। वो ना तो किसी प्रभावशाली जाति से हैं, ना ही किसी प्रभावशाली जाति से उनका नाता है, वो दून स्कूल में नहीं पढ़े। वो कोई कुशल वक्ता भी नहीं हैं। वो सीधा-सादा खादी का लिबास पहनते हैं और रेल से सफ़र करना पसंद करते हैं। हम बात करत रहे राजस्थान के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अशोक गहलोत की। जिसे राजस्थान की राजनीति का 'जादूगर' भी कहा जाता है।
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पर्दे के पीछे से चुनाव की रणनीति
गुजरात चुनाव में भले ही भाजपा लगातार पांचवी बार सत्ता को अपने कब्जे में कर लिया है। लेकिन पिछले चुनाव के मुकाबले सीटों का इजाफा कांग्रेस पार्टी के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है। 2012 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने 61 सीटें जीती थी। वहीं, इस बार पार्टी ने लगभग 80 सीटों पर कब्जा किया है। इस चुनाव में राहुल गांधी ने एग्रसिव प्रचार किया था लेकिन, सीटों में इस इजाफे का श्रेय  कांग्रेस के गुजरात चुनाव के  प्रभारी अशोक गहलोत को भी जाता है। राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने पर्दे के पीछे से इस चुनाव की रणनीति बनाईं थी।

विरोधी कहते हैं औसत दर्जे के नेता
साल 1982 में जब वो दिल्ली में राज्य मंत्री पद की शपथ लेने तिपहिया ऑटोरिक्शा में सवार होकर राष्ट्रपति भवन पहुंचे तो सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें रोक लिया था। मगर तब किसी ने सोचा नहीं था कि जोधपुर से पहली बार सांसद चुन कर आया ये शख्स सियासत का इतना लम्बा सफ़र तय करेगा। उनके साथ काम कर चुके पार्टी के एक नेता ने कहा कि गहलोत कार्यकर्ताओं के नेता हैं और नेताओं में कार्यकर्ता। उनकी सादगी,  नम्रता, दीन दुखियारों की रहनुमाई और पार्टी के प्रति वफ़ादारी ही उनकी पूंजी है। मगर विरोधियों की नज़र में वो एक औसत दर्जे के नेता हैं जो सियासी पैंतरेबाज़ी में माहिर हैं। कांग्रेस में उनके विरोधी तंज़ के साथ कहते हैं, "गहलोत हर चीज़ में 'मैसेज' देने की राजनीति करते हैं। इसी मैसेज के चक्कर में दो बार कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा।"
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गुजरात से गहलोत का नाता
गुजरात से गहलोत का पुराना रिश्ता रहा है। जब 2001 में गुजरात में भूकंप आया, उस वक्त शायद राजस्थान पहला राज्य होगा जो मदद के लिए सबसे पहले पहुंचा। उस वक्त गहलोत मुख्यमंत्री थे। उन्होंने तुरंत टीम गठित करवाई और अपने अधिकारियों को राहत सामग्री के साथ गुजरात भेजा। गुजरात दंगों के बाद राजस्थान में पीड़ितों के लिए राहत कैंप खोले। कांग्रेस ने 2005 में जब दांडी मार्च की हीरक जयंती मनाई और साबरमती से दांडी तक 400 किलोमीटर की यात्रा निकाली तो गहलोत को समन्वयक बना कर भेजा गया। राहुल गाँधी इस यात्रा में बोरसाद से शामिल हुए और कुछ किलोमीटर तक साथ चले।
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आसाराम को भेजा जेल 
वो गाहे-बगाहे परिजनों के साथ मंदिरों की फेरी लगाते रहे हैं, मगर ज्योतिष और भविष्यवक्ताओें से दूर रहते हैं। उनके साथ काम कर चुके एक नेता बताते हैं, "यूँ वे बहुत सीधे-सादे दिखते हैं, लेकिन 2003 में प्रवीण तोगड़िया को उस वक्त गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जब उत्तर भारत की सरकारें उन पर हाथ डालने से बचती थीं। ऐसे ही आसाराम बापू के मामले में पुलिस को सख्त कार्रवाई का निर्देश दिया और यही कारण है कि आसाराम बापू अब तक जेल में है।"
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राजनीतिक समझ
गहलोत अपना राजनैतिक बयान खुद लिखते हैं और एक-एक शब्द पर गौर करते हैं। बीजेपी के एक पूर्व मंत्री कहते है, "गहलोत के बयान बहुत मारक होते हैं।" गहलोत उस वक्त पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने जब सूबे की सियासत में स्वर्गीय भैरों सिंह शेखावत का जलवा था। विपक्ष में रहते गहलोत स्वर्गीय शेखावत के प्रति बहुत आक्रामक थे। लेकिन जब शेखावत बीमार हुए तब गहलोत उन लोगों में से थे जो लगातार उनकी देखरेख करने जाते रहे।

नरेंद्र मोदी को दिया था जवाब
गहलोत को मुफ्त दवा योजना और अकाल राहत के बेहतर प्रबंधन के लिए याद किया जाता है। साल 2003 में विधानसभा के चुनाव हुए तो गहलोत अपनी वापसी के लिए ज़ोर लगा रहे थे। उस वक्त नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। मोदी ने चुनाव अभियान में भीलवाड़ा की एक सभा में गहलोत और उनकी कांग्रेस सरकार पर जम कर प्रहार किए। मोदी ने गहलोत के बोलने की शैली की खिल्ली उड़ाई, कहा, "मुख्यमंत्री क्या बोलते हैं, समझना मुश्किल है।" वही गहलोत बीते छह महीने से गुजरात में थे और कांग्रेस चुनाव की रणनीतिक भूमिका के अग्रणी थे। चुनाव के नतीजो से स्पष्ट हो गया कि इस बार गहलोत की रणनीति पर बीजेपी के चाणक्य की धार कुंद हो गई।

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