नस्लभेद से कब निजात पाएगा अमरीका ?

Edited By ,Updated: 04 Jun, 2016 08:57 AM

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दुनियाभर में लोकतंत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों की सीख देने वाले अमरीका में नस्लभेद बढ़ रहा है, वहां नागरिक अधिकारों की सुरक्षा

दुनियाभर में लोकतंत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों की सीख देने वाले अमरीका में नस्लभेद बढ़ रहा है, वहां नागरिक अधिकारों की सुरक्षा नहीं हो पा रही है। अमरीका एक विकसित देश है, इसे महाशक्ति भी कहा जाता है। लेकिन विचारधारा में वह कितना पिछड़ा है, यह वहां की नीतियों से स्पष्ट हो गया है। नस्लवाद की समस्या से यह आज तक निजात नहीं प्राप्त कर सका हे। हाल में इसके नेवार्क शहर में एक सिख व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी गई। परिवार को संदेह है कि यह अपराध नस्लीय भेदभाव की वजह से किया गया है। बताया जाता है कि 25 वर्ष पहले भारत से अमरीका आए उनके पिता को इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि वह सिख थे। 

नस्लीय संबंध अमरीका में हमेशा संवेदनशील विषय रहा है। मार्टिन लूथर किंग तथा रोजर पार्कस जैसे क्रांतिकारी नेताओं के अथक प्रयासों के बावजूद आज भी वहां अश्वेत समुदाय आर्थिक और सामाजिक समानता प्राप्त करने के लिए तरस रहा है। यह सच्चाई है कि यहां जातीय भेदभाव व जातीय पूर्वाग्रह का अस्तित्व है। राष्ट्रपति बराक ओबामा भी अश्वेत हैं। उनका अमरीकी राष्ट्रपति बनना ही विश्व की अभूतपूर्व घटना रही। उम्मीद तो थी कि उनके राष्ट्रपति बनने के बाद वहां के समाज में परिवर्तन आएगा, लेकिन नस्लवादी घटनाएं एक के बाद एक सामने आ रही हैं। राष्ट्रपति ओबामा स्वयं मानते हैं कि अमरीका के डीएनए में ही नस्लवाद है। 

अमरीका में भारतीयों पर हो रहे हमले नस्लीय होने के साथ द्वेष से भी भरे हैं। क्या वहां के मूल लोगों को यह लगता है कि भारतीय उनसे आगे निकलते जा रहे हैं। उनकी यही हार हमले का रूप ले रही है। अमरीका में लगातार हो रहे नस्लभेदी हमलों चिंता बनते जा रहे हैं। एक बार अमरीकी बुजुर्ग सिख पर बर्बर हमला कर उन्हें घायल कर दिया गया। यह हमला अमरीका पर 11 सितम्बर, 2001 के आतंकवादी हमले की बरसी से कुछ दिन पहले किया गया। हमलावर ने इस सिख को 'आतंकवादी' और 'बिन लादेन' कहा। उन्हें अपने देश जाने को कहा। यह स्पष्ट हो गया कि उन पर हमला सिख धार्मिक पहचान, नस्ल या राष्ट्रीय मूल के आधार पर किया गया।
अमरीका में 9/11 हमलों के बाद भी सिखों पर हमले हुए थे। कभी  गुरुद्वारे पर हमलावर द्वारा फायरिंग करके अप्रवासी भारतीयों को मौत के घाट उतार दिया जाता है, कभी सुरक्षा के नाम पर उनकी पगडिय़ां उतरवा कर उन्हें अपमानित किया जाता है। ऐसी घटनाएं केवल भारतीय समुदाय के साथ ही नहीं होतीं बल्कि एशियाई अमरीकियों, अफ्रीकियों, लेटिन अमरीकियों के साथ भी होती हैं। कभी नस्लवाद के नाम पर एक अलग तरह का समाज था, जिसमें अश्वेत गुलाम होते थे, रेड इंडियन के साथ भेदभाव हुआ करता था। इसका इतिहास बहुत पुराना है। इतना विकास होने के बावजूद वहां के मूल लोगों की सोच नहीं बदली है। 

 
अमरीकी देशों में कोलम्बस के मूल्यांकन को लेकर दो दृटिकोण सामने आए हैं। एक उन लोगों का है, जो अमरीका मूल के हैं और जिनका विस्तार व अस्तित्व उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका के अनेक देशों में है। दूसरा, दृष्टिकोण या कोलम्बस के प्रति धारणा उन लोगों की है जो दावा करते है कि अमरीका का वजूद ही उन्होंने खड़ा किया है। इनका दावा है कि कोलम्बस अमरीका में इन लोगों के लिए मौत का कहर लेकर आया। कारण, कोलम्बस के आने तक अमरीका में इन लोगों की आबादी करीब 20 करोड़ थी जो घटकर 10 करोड़ के आस-पास रह गई है। इतने बड़े नरसंहार के बावजूद अमेरिका में अश्वेतों का संहार जारी है। 

अमरीकी समाज को नस्लभेद के नजरिए से विभाजित करने की कोशिशों की पृठभूमि में गैर अमरीकियों का वहां की जमीन पर ही बौद्धिक क्षेत्रों में लगातार कब्जा करते जाना भी है। ऐसे लोगों में अफ्रीकी और एशियाई देशों से पलायन कर अमरीका जा बसे लोगों की बहुत बड़ी संख्या हो गई है। ये लोग अपने विषय में इतने कुशल फर्ज के प्रति जागरूक हैं कि उपलब्धियों से खुद तो लाभान्वित हुए ही अमरीका को भी लाभ पहुंचाने में पीछे नहीं रहे। लेकिन वही अब इनके लिए गोरे-काले के भेद के रूप में अभिशाप साबित हो रहा है। इससे वहां समाज में नस्लीयता बढ़ रही है। 

अमरीका सारी दुनिया में जाति और साम्प्रदायिक हिंसा के खिलाफ अगुवा बनने का प्रयास करता रहा है, परन्तु खुद अपने समाज को नही बदल सका। विज्ञान ने और अमरीकी वैज्ञानिकों ने बड़े बड़े हथियारों की खोज की है, पर रंगभेद को या नस्लभेद को मन या तन से मिटाने की कोई खोज नहीं की। अभी भी अंतर नस्लीय विवाह बहुत कम ही होते हैं और रंगभेद अमरीकी समाज में छिपा हुआ है।
 

 

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