पहली बार मोदी सरकार ने एक साल में दूसरी बार जारी की आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट

Edited By Punjab Kesari,Updated: 11 Aug, 2017 08:35 PM

economic review for the first time in a year for the first time

संसद का मानसून सत्र का शुक्रवार को अंतिम दिन था। इससे पहले सरकार ने वित्त वर्ष 2016-17 की दूसरी आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट पेश पेश की...

नई दिल्लीः संसद का मानसून सत्र का शुक्रवार को अंतिम दिन था। इससे पहले सरकार ने वित्त वर्ष 2016-17 की दूसरी आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट पेश पेश की। ये पहला मौका था सरकार ने एक वर्ष में दूसरी बार आर्थिक समीक्षा पेश की। इसमें चालू वित्त वर्ष के दौरान राजकोषीय परिदृश्य में चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि देश के लिए पहले अनुमानित 6.75 से 7.5 प्रतिशत की वृद्धि के ऊपरी दायरे को हासिल करना कठिन होगा। 

समीक्षा में नीतिगत ब्याज दर में और कमी किए जाने पर बल दिया गया है ताकि आर्थिक वृद्धि को गति दी जा सके। आर्थिक समीक्षा में रुपये की विनिमय दर में तेजी, कृषि ऋण माफी और बैंकों और कंपनियों की बैलेंस शीट की जुड़वा समस्या, बिजली और दूरसंचार क्षेत्र में ऋण वसूली की बढ़ती चुनौती और माल एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने में शुरुआती दिक्कतों को वृद्धि दर के लिए चुनौती बताया गया है। 

समीक्षा में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था अभी पूरी गति में नहीं आ सकी है जबकि इसपर एक के बाद एक विस्फीतिकारी प्रभाव पड़ते रहे हैं। वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि ऋण माफी से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 0.7 प्रतिशत के बराबर आर्थिक मांग कम हो सकती है। 

समीक्षा में अनुमान है कि कृषि ऋण माफी योजनाओं पर राज्यों को कुल 2.7 लाख करोड रुपये तक खर्च करना पड़ सकता है। समीक्षा में कहा गया है कि मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत के मध्यकालिक लक्ष्य से नीचे बने रहने की उम्मीद है। राजकोषीय घाटे के बारे में अनुमान है कि 2017-18 में जीडीपी के 3.2 प्रतिशत के बराबर रहेगा जबकि पिछले वित्त वर्ष में यह 3.5 प्रतिशत था।

वर्ष 2016-17 के लिए यह दूसरी आर्थिक समीक्षा है। यह पहला अवसर है जब एक वर्ष के लिए 2 बार समीक्षा पेश की गई है क्योंकि इस बार बजट पहले पेश किया गया था। समीक्षा में कहा गया कि इस समय रीपो रेट स्वाभाविक ब्याज दर (जीडीपी की वास्तविक वृद्धि के औसत) से 0.25-0.75 प्रतिशत तक ऊंची चल रही है जबकि इस समय मौद्रिक नीति को और नरम बनाने की बड़ी गुंजाइश है। 

गौरतलब है कि रिजर्व बैंक ने अभी पिछले सप्ताह द्वैमासिक नीतिगत समीक्षा में रीपो रेट 0.25 फीसदी घटाकर 6 प्रतिशत कर दी है। रीपो दर वह ब्याज दर है जिसपर केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों को फौरी जरूरत के लिए नकदी उपलब्ध कराता है। रीपो रेट इस समय नवंबर 2010 के बाद सबसे निम्न स्तर पर है। 

समीक्षा में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था अभी अपनी पूरी गति नहीं पकड़ सकी है और अपनी संभावनाओं से पीछे है। इसमें कहा गया है कि जीडीपी, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक, ऋण उठाव, निवेश और उत्पादन क्षमता के उपयोग के रुझानों से जाहिर होता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में 2016-17 की पहली तिमाही में वास्तविक गतिविधियों में शिथिलता शुरू हो गई थी और तीसरी तिमाही से यह नरमी और बढ़ी है। 

पहली आर्थिक समीक्षा इस वर्ष 31 जनवरी को पेश की गई थी जिसमें आर्थिक वृद्धि 6.75 से 7.5 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान लगाया गया था। इसके पीछे उम्मीद यह थी कि वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों में सुधार की गति बेहतर होने से भारत का निर्यात सुधरेगा और ऋण की स्थिति भी सुधरेगी लेकिन अब जोखिमों का संतुलन और नरमी की ओर झुक गया है। इसी के अनुसार संभावनाएं भी बदली हैं और आर्थिक वृद्धि के अनुमान का ऊपरी दायरा पहले से कम संभव लगता है। 

समीक्षा में कहा गया है कि नोटबंदी का फायदा आगे भी मिलते रहने की संभावना है। इसी संदर्भ में कहा गया है कि नोटबंदी के बाद 5.4 लाख नए करदाता कर के दायरे में आए हैं। इसमें कृषि जिंसों पर स्टॉक की सीमा खत्म किए जाने और कृषि उत्पादों की आवाजाही पर अंकुश हटाए जाने की जरूरत पर जोर दिया है। समीक्षा में कहा गया है कि बैंकों से ऋण उठाव बढ़ाए जाने के प्रयास किए जाने चाहिए। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि जीएसटी लागू करने के बाद जांच चौकियों के हटने और सड़क परिवहन की बाधाएं कम होने से आर्थिक गतिविधियों को अल्प काल में और बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
 

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