‘जमानत जब्त पार्टी’ का ठप्पा हटाना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Jan, 2018 05:25 PM

election commission meghalaya tripura nagaland bjp

चुनाव आयोग ने पूर्वोत्तर के तीन राज्यों- मेघालय, त्रिपुरा और नागालैंड विधानसभा चुनाव के मतदान की तारीखों का एेलान कर दिय़ा है। त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव 18 फरवरी को तथा मेघालय और नागालैंड में 27 फरवरी को होंगे, जबकि तीनों राज्यों की मतगणना तीन...

नेशनल डेस्कः चुनाव आयोग ने पूर्वोत्तर के तीन राज्यों- मेघालय, त्रिपुरा और नागालैंड विधानसभा चुनाव के मतदान की तारीखों का एेलान कर दिय़ा है। त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव 18 फरवरी को तथा मेघालय और नागालैंड में 27 फरवरी को होंगे, जबकि तीनों राज्यों की मतगणना तीन मार्च को होगी। इन तीनों राज्यों में विधानसभा की 60-60 सीटें है। 

3 राज्यों में भाजपा का वोट प्रतिशत भी कुछ खास नहीं
हमारे संवाददाता नरेश कुमार बता रहे हैं कि मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा में होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान क्या तस्वीर उभर कर सामने आ सकती है। भाजपा भले ही केंद्र में सरकार चला रही है और बड़े राज्यों में भी पार्टी की सरकार है लेकिन जिन 3 राज्यों में चुनाव होने जा रहा है उनमें भाजपा की हैसियत जमानत जब्त पार्टी वाली है। इन 3 राज्यों में भाजपा का वोट प्रतिशत भी कुछ खास नहीं है। आने वाले इन चुनावों में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती इन राज्यों में खुद पर लगा जमानत जब्त पार्टी का ठप्पा हटाने की होगी।

त्रिपुरा में 49 सोटों पर जब्त हुई जमानत
पिछले 25 साल से सी.पी.एम. के गढ रहे त्रिपुरा में भाजपा के उम्मीदवारों को जमानत बचाने के लाले पड़ जाते हैं। 2013 के चुनाव में भाजपा ने 50 उम्मीदवार मैदान में उतारे जिनमें से 49 की जमानत जब्त हो गई। 2008 में भी पार्टी के 49 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी। इसी तरह 2003 में भाजपा के 21 उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा सके थे। 1998 में पार्टी ने पहली बार राज्य की सारी 60 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन पार्टी के 58 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।

मेघालय में नहीं बची 13 उम्मीदवारों की जमानत
मेघालय में पिछले चुनाव में भाजपा ने 13 उम्मीदवार मैदान में उतारे लेकिन सबकी जमानत जब्त हो गई। 2008 के चुनाव में पार्टी के 23 में से 1 उम्मीदवार ही चुनाव जीत सका और 21 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई। इसी तरह 2003 में पार्टी ने 28 उम्मीदवार मैदान में उतारे लेकिन पार्टी के 2 उम्मीदवार ही चुनाव जीत सके और 21 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। 1998 के चुनावों में भी लगभग यही स्थिति रही। इन चुनावों में पार्टी के 28 में से 3 उम्मीदवार जीते जबकि 20 की जमानत जब्त हो गई। 1993 में पार्टी के 20 उम्मीदवारों में से 14 उम्मीदवार जमानत नहीं बचा सके थे।

नागालैंड में भी जमानत बचाने के लाले
नागालैंड में पिछले साल भाजपा ने 11 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे जिनमें से 8 उम्मीदवार जमानत नहीं बचा सके। 2008 में भाजपा द्वारा मैदान में उतारे गए 23 उम्मीदवारों में से 2 ही चुनाव जीत सके जबकि 15 की जमानत जब्त हो गई। 2003 में पार्टी ने 38 उम्मीदवार मैदान में उतारे जिनमें से 7 उम्मीदवार जीते और 28 की जमानत जब्त हो गई। 1993 में भाजपा के 6 उम्मीदवार थे जिनमें से किसी की भी जमानत नहीं बची।

180 सीटों में से भाजपा के पास सिर्फ 1
मेघालय, त्रिपुरा और नागालैंड की 180 विधानसभा सीटों में से भारतीय जनता पार्टी के पास नागालैंड में सिर्फ 1 सीट है जबकि 2 अन्य राज्यों में भाजपा की उपस्थिति जीरो है। लिहाजा भाजपा के लिए इन तीनों राज्यों के चुनाव अहम माने जा रहे हैं।

मंत्रालय के जरिए राजनीति साधने की कोशिश
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 2014 से ही पूर्वोत्तर के राज्य राजनीतिक लक्ष्य के लिहाज से भाजपा के फोकस वाले राज्य रहे हैं। इन्हीं राज्यों को आधार बनाकर राज्यों के विकास को आधार बनाकर प्रधानमंत्री ने अपने कैबिनेट में पूर्वोत्तर राज्यों के विकास संबंधी मंत्रालय भी बनाया है। इसके अलावा हाल ही में केंद्र सरकार ने इन राज्यों के विकास के लिए 90 हजार करोड़ का पैकेज भी जारी किया है। प्रधानमंत्री की एक्ट ईस्ट पॉलिसी का ही असर है कि असम में भाजपा सरकार बनाने में भी सफल हो गई। जिन राज्यों में भाजपा की उपस्थिति नहीं थी वहां पार्टी ने दूसरी पाॢटयों के बीच तोड़-फोड़ करवा कर अपनी मर्जी की सरकार बनवा ली। इस समय नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, असम व सिक्किम में भाजपा समर्थित सरकारें हैं लेकिन इन राज्यों में वोट शेयर के लिहाज से भाजपा की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।

नागालैंड में हुआ तख्ता पलट, भाजपा के लिए मौका
नागालैंड में इसी साल जुलाई में नागा पीपल फ्रंट में हुए अंदरूनी झगड़े के बाद मुख्यमंत्री शुरोजली लैजिस्टु को मुख्यमंत्री पद छोडऩा पड़ा था क्योंकि वह सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाए थे। उनके पद छोडऩे के बाद नागा पीपल फ्रंट के ही दूसरे नेता टी.आर. जेलियांग को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई और उन्होंने विधानसभा में बहुमत भी साबित कर दिया। जेलियांग को भाजपा का समर्थन था और वह भाजपा के सहयोग से सरकार चला रहे हैं। राज्य में हुई इस सियासी उठापटक के बाद भाजपा के लिए नागालैंड में मौका बन सकता है। यदि पार्टी नागालैंड में जीत नहीं पाती है तो भी उसके पास गंवाने के लिए कुछ भी नहीं है क्योंकि भाजपा 2003 को छोड़कर कभी भी राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवा सकी है।

राहुल के लिए मेघालय बचाने की चुनौती
जिन 3 राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं उनमें से मेघालय में कांग्रेस की सरकार है। कांग्रेस ने 2013 के चुनाव में राज्य की 60 में से 29 सीटों पर चुनाव जीता था जबकि 8 सीटें यू.डी.पी. को मिली थीं। राहुल को पूर्वोत्तर के इस एकमात्र राज्य में बची कांग्रेस की सरकार को बचाने की चुनौती है। कांग्रेस नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, असम और सिक्किम में पहले ही सरकारें गंवा चुकी है। पूर्वोत्तर में सबसे बड़ा झटका कांग्रेस को असम में लगा है जहां भाजपा ने सरकार बना ली थी। लिहाजा राहुल के सामने मेघालय में सरकार बचाने की चुनौती होगी।

Related Story

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!