हर शहर में नजर आते पागल, ना जाने कौन कब बन जाए कातिल

Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Jan, 2018 10:13 AM

every city is seen as a madman  no know who will become a murderer

हरियाणा के पलवल में एक पागल ने महज 2 घंटे में 6 हत्याएं कर सनसनी फैला दी। इस सीरियल किलर ने आम लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि खुले घूमने वाले मानसिक विकलांग लोग कभी भी जानलेवा साबित हो सकते हैं। ऐसे लोगों को पागलखाने भिजवाने या उनका इलाज...

जालंधर(नरेन्द्र वत्स) : हरियाणा के पलवल में एक पागल ने महज 2 घंटे में 6 हत्याएं कर सनसनी फैला दी। इस सीरियल किलर ने आम लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि खुले घूमने वाले मानसिक विकलांग लोग कभी भी जानलेवा साबित हो सकते हैं। ऐसे लोगों को पागलखाने भिजवाने या उनका इलाज कराने की दिशा में सरकारी तौर पर कोई प्रयास नहीं किए जाते। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के आंकड़ों के मुताबिक मानसिक रूप से बीमार लोगों की संख्या 7 करोड़ से अधिक है। यह संख्या देश की आबादी का करीब 6 फीसदी बनती है। इनमें मानसिक रूप से ऐसे बीमार भी शामिल हैं, जिनका इलाज संभव है। रेलवे स्टेशनों से लेकर बस स्टैंड्स पर ऐसे पागल अक्सर घूमते देखे जाते हैं। इनमें से बड़ी संख्या में ऐसे पागल हैं जिन्हें न तो गर्मी और न ही सर्दी का कोई एहसास होता है। ऐसे पागलों से अक्सर आम लोगों को खतरा बना रहता है। डब्ल्यू.एच.ओ. की रिपोर्ट के अनुसार देश के सरकारी अस्पतालों में मनोरोग विशेषज्ञों की भारी कमी है। इन हालातों में मनोरोगियों को सस्ता और सही उपचार मिलना टेढ़ी खीर है।

देश में नहीं पर्याप्त मनोचिकित्सक
देश में जहां मनोरोगियों की संख्या 7 करोड़ के पार है, वहीं उनका इलाज करने के लिए पूरे देश में मनोचिकित्सकों की संख्या करीब 6 हजार ही है। देश में मनोरोगियों के ईलाज के लिए पर्याप्त अस्पताल तक नहीं हैं। ऐसे में सभी मरीजों को समय पर सही उपचार मिलने की बात सोचना भी बेमानी है।
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यह हैं पागलपन के कारण
एबनॉर्मल फंक्सनिंग ऑफ नर्व सैल सर्किट या मेंटल सर्किट न्यूरोट्रांसमिटर सिस्टम खराब होने के कारण दिमाग सही तरीके से काम करना बंद कर देता है। ऐसा मरीज असामान्य गतिविधियां करने लगता है। किसी नर्व सैल के खराब या क्षतिग्रस्त होने के कारण भी ऐसा हो सकता है।
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हीन भावना बढ़ाती मर्ज
मनोचिकित्सकों के अनुसार अगर ऐसे मरीजों को समय पर उपचार मिले तो उनमें से बड़ी संख्या में मरीज ठीक हो सकते हैं। होता यह है कि ऐसे मरीज अक्सर सामाजिक उपेक्षा के शिकार हो जाते हैं। परिजन उनका इलाज कराने की बजाय उन्हें घर से बाहर निकाल देते हैं।

आबादी-  125 करोड़
पागल-       7 करोड़
डॉक्टर-      6 हजार
 

पुलिस के पास नहीं कोई चारा
कई स्थानों पर पागल लोगों पर पत्थर तक बरसाने लगते हैं। पुलिस के पास इसका कोई चारा नहीं होता। अगर पुलिस उन्हें पकड़ती भी है तो उन्हें कहीं ठहराने की कोई व्यवस्था नहीं होती। देश में पागलखानों की संख्या भी नगण्य ही है। ऐसे में समस्या का समाधान कहीं नजर नहीं आता।
यह एक एंटी सोशल बीमारी है। इसमें मरीज दूसरे लोगों से खतरा महसूस करता है। वह सोचता है कि लोग उसे मारें, इससे पहले क्यों न वह लोगों को मार दे।
-डा.प्रमोद कुमार, मनोरोग विशेषज्ञ (चंडीगढ़)।

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