नोटबंदी कर मोदी ने देश की सवा अरब आबादी का तोड़ा है भरोसा: मनमोहन

Edited By ,Updated: 09 Dec, 2016 08:54 PM

ex pm manmohan singh in chandigarh for national conference

पूर्व प्रधानमंत्री और जाने-माने अर्थशास्त्री डॉ मनमोहन सिंह ने मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले को एक बड़ी त्रासदी बताते हुए कहा है कि इसके गंभीर दुष्परिणाम होंगे। इस फैसले ने देश की सवा अरब आबादी के भरोसे को तोड़ा है।

चंडीगढ़: पूर्व प्रधानमंत्री और जाने-माने अर्थशास्त्री डॉ मनमोहन सिंह ने मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले को एक बड़ी त्रासदी बताते हुए कहा है कि इसके गंभीर दुष्परिणाम होंगे। इस फैसले ने देश की सवा अरब आबादी के भरोसे को तोड़ा है। डॉ सिंह ने एक अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित अपने लेख में कहा है कि नोटबंदी के फैसले का असर आने वाले समय में दिखेगा। आर्थिक विकास मंद होगा,नौकरियां खत्म होंगी और हालात विषम होते जाएंगे। 

विकास का नहीं मिला सबको फायदाः डॉ. सिंह
वहीं पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह इंडियन एसोसिएशन ऑफ सोशल साइंसेज इंस्टीट्यूशंस की ओर से आयोजित दो दिवसीय नेशनल कांफ्रेंस के उद्घाटन सत्र को संबोधित करने चंडीगढ़ पहुंचे। डॉ. मनमोहन सिंह ने आर्थिक विकास के लिए शिक्षा की अहमियत बताने के साथ ग्रामीण इलाकों और कमजोर वर्ग के लिए शिक्षा के उपलब्ध साधनों पर चिंता जताई।दो दिवसीय नेशनल कांफ्रेंस में हिस्सा लेने के लिए चंडीगढ़ पहुंचे पूर्व पीएम ने कई मुद्दों पर खुलकर विचार रखे। शिक्षा को तेज आर्थिक विकास का साधन माना जाता है। यह सामाजिक और आर्थिक बदलाव में अहम रोल निभाती है। ज्ञान और स्किल से भरपूर एक शिक्षित आबादी आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है।

विकास हुआ, पर सबको नहीं मिला फायदा : डॉ. सिंह
डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि पिछले 25 सालों में देश ने काफी तरक्की की। 1990-91 में अर्थव्यवस्था 0.327 ट्रिलियन डॉलर थी, जो अब 6.3 गुना बढ़ कर 2.067 ट्रिलियन डॉलर हो गई है। साक्षरता दर 52.21 फीसदी से बढ़ कर 74.04 प्रतिशत हो गई है। पहले 45.3 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी, अब 21.9 फीसदी है। नवजात मृत्यु दर में भी गिरावट आई है। लेकिन विकास का फायदा बराबर वितरित नहीं हुआ, देश में असमानता तेजी से बढ़ी है। ग्रामीण भारत में 74.5 फीसदी घरों मासिक आय पांच हजार रुपये से कम है। धन के साथ-साथ शिक्षा में भी असमानता है। कमजोर वर्ग के बच्चे जिन स्कूलों में पढ़ते हैं, वहां संसाधनों की भारी कमी है। प्राइवेट अन-एडेड इंग्लिश मीडियम स्कूल बड़ी तादाद में खुल गए हैं। पर गरीब इनकी फीस नहीं उठा सकते।


 

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