जीबी रोड का हैरान कर देने वाला सच!

Edited By ,Updated: 20 Jan, 2016 09:07 PM

gb road

जीबी रोड का नाम सन् 1965 में बदल कर स्वामी श्रद्धानंद मार्ग कर दिया गया। इस इलाके का भी अपना इतिहास है।

नई दिल्ली: जीबी रोड का नाम सन् 1965 में बदल कर स्वामी श्रद्धानंद मार्ग कर दिया गया। इस इलाके का भी अपना इतिहास है। बताया जाता है कि यहां मुगलकाल में कुल 5 रेडलाइट एरिया यानी कोठे हुआ करते थे जिन्हें अंग्रेजों के समय में इन पांचों क्षेत्रों को एक साथ कर दिया गया और उसी समय इसका नाम जीबी रोड पड़ा।

 
जानकारों के मुताबिक देहव्यापार का यहां सबसे बड़ा कारोबार होता है, और यहां नेपाल और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में लड़कियों की तस्करी करके यहां के कोठों पर लाया जाता है। वर्तमान में एक ही कमरे में कई केबिन बनें हैं जहां एक साथ कई ग्राहकों को सेवा दी जाती है।
 
जीबी रोड पर करीब 25 इमारतों में करीब 116 कोठे हैं। इनमें 4000 से ज्‍यादा सेक्‍स वर्कर रहती हैं। हालात यह हैं कि अपनी पीड़ा को बताने के लिए उनके अपने भी उनके साथ नहीं हैं। यहां विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रस्त महिलाएं की संख्या 30 फीसदी है जिनमें त्वचा, शुगर व शारीरिक कमजोरी की रोगी सबसे अधिक हैं। 5 फीसदी सेक्‍स वर्कर्स हैं।
 
2008 में जीबी रोड पर रहने वाली सेक्स वर्करों का नाम मतदाता सूची में जोड़ा गया था। 2008 में तकरीबन 1,500 महिलाओं का मतदाता पहचान पत्र बना और उन्होंने पहली बार 2008 के चुनाव में मतदान भी किया था। ब्रिटिश राज से जारी रेड लाइट एरिया ने जीबी रोड को क्रिमिनल्स का अड्डा बना दिया है। इन्हीं कोठों पर रातभर चढऩे-उतरने वाले खरीददार क्राइम को अंजाम देते हैं।
 
इन सब घटनाओं को देखते हए सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की धारा 21 के तहत केंद्र सरकार को सेक्स वर्कर्स को सशक्त करने के लिए योजनाएं बनाने का आदेश दिया था। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि उन योजनाओं के तहत उन्हें वोकेशनल ट्रेनिंग देने के साथ-साथ रोजगार देने की व्यवस्था हो। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि अगर वह देह व्यापार पर नियंत्रण नहीं कर सकती तो उसे क़ानूनी दर्जा दे दे।

 

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