सरकारी अस्पतालों में उपचार होगा महंगा!

Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Oct, 2017 12:47 PM

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सरकारी अस्पतालों में उपचार महंगा हो सकता है। केंद्र सरकार दिल्ली के साथ देशभर के बड़े अस्पतालों में इलाज के दौरान लगने वाले शुल्क की समीक्षा पर विचार कर रही है। हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से एम्स सहित केंद्र के सभी अस्पतालों से...

नई दिल्ली: सरकारी अस्पतालों में उपचार महंगा हो सकता है। केंद्र सरकार दिल्ली के साथ देशभर के बड़े अस्पतालों में इलाज के दौरान लगने वाले शुल्क की समीक्षा पर विचार कर रही है। हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से एम्स सहित केंद्र के सभी अस्पतालों से उपचार शुल्कों के बारे में भी पूछा गया था। 

सूत्र बताते हैं कि अस्पतालों में होने वाले एक्सरे, रक्त जांच, ओपीडी रजिस्ट्रेशन जैसे खर्चों में आंशिक बढ़ोतरी संभव है। सनद रहे कि एम्स में गत् 20 वर्षों के दौरान किसी भी शुल्क में बढ़ोतरी नहीं की गई है। एम्स में अब भी कुछ जांचों के लिए मरीज को 10 से 25 रुपए का शुल्क अदा करना होता है। बताया गया है कि वित मंत्रालय का हवाला देकर स्वास्थ्य मंत्रालय ने संबंधित सभी विभागों से विचार मांगा है। अधिकारियों की मानें तो सरकारी रुख को देखते हुए इलाज के शुल्कों में बढ़ोतरी होने के पूरे आसार हैं। 

स्वास्थ्य मंत्रालय ने लिखा है पत्र: सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक स्वास्थ्य मंत्रालय ने बाकायदा इस आशय में पत्र भी लिखा है। अस्पताल के यूजर चार्जर्स (इलाज राशि) की समीक्षा के लिए 14 मार्च, 11 अप्रैल, 5 मई और 4 अगस्त 2017 को पत्र भेजे गए हैं। इनका जवाब अभी तक मंत्रालय को नहीं मिला है। बताया गया है कि पत्र में मांगी गई जानकारियों पर गंभीरता बरतते हए शीघ्र ही अस्पतालों की ओर से मंत्रालय को जवाब भेजा जाएगा। 

आॢथक आधार पर कीमतें तय करना बड़ी चुनौती: एक वरिष्ठï अधिकारी की मानें तो आॢथक आधार पर इलाज की कीमत तय करना इतनी आसान प्रक्रिया नहीं है। एम्स की एक कमेटी ने इस तरह के प्रस्ताव दिए थे, जिसमें माना गया था कि आर्थि¤ आधार पर कीमत तय करना एम्स के लिए चुनौती से कम नहीं है। एम्स में इससे पहले वर्ष 1996 में उपचार शुल्कों की समीक्षा की गई थी। इस समय एम्स में अधिकतर जांच 500 रुपए के भीतर किए जाते हैं। अधिकारी के मुताबिक एम्स में प्रतिदिन 10 हजार से ज्यादा मरीज इलाज कराने आते हैं। इनमें से करीब 40 प्रतिशत मरीज तय राशि का भुगतान करने में अक्षम साबित हो रहे हैं। 

दिल्ली और एनसीआर में सुप्रीम कोर्ट के पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाए जाने के  बावजूद अस्पतालों को अलर्ट पर रखने का निर्णय लिया गया है। केंद्र और दिल्ली सरकार दोनों की ओर से दीपावली से संबंधित अलर्ट जारी कर दिया गया है। नतीजतन 16 से  22 अक्तूबर के बीच अस्पताल में तैनात सभी अधिकारियों, कर्मचारियों की छुट्टी रद्द कर दी गई है। खासतौर से जिन अस्पतालों में बर्न विभाग है वहां सभी जरूरी इंतजामों को पूरा करने के निर्देश दिए गए हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक दीपावली के दौरान प्रत्येक वर्ष विभिन्न घटनाओं में सैकड़ों लोग अस्पताल पहुंचते हैं। दिल्ली में सबसे बड़ा बर्न विभाग सफदरजंग अस्पताल में है। 

अलर्ट जारी हो गया, नहीं मिला वेतन : दिल्ली सरकार के अस्पतालों में तैनात डॉक्टरों के लिए दीपावली का अलर्ट जले पर नमक छिड़कने जैसा साबित हो रहा है। सरकारी डॉक्टरों का वेतन अभी तक जारी नहीं किया गया है। जिससे डॉक्टरों में नाराजगी देखी जा रही है। डॉक्टरों का कहना है कि उन्हें अलर्ट जारी होने से किसी तरह की समस्या नहीं है। प्रत्येक वर्ष की तरह पर पूरी लगन से मरीजों का ख्याल रखेंगे, लेकिन सरकार की कार्यशैली बेहद निराशाजनक साबित हो रही है। दीपावली से पहले सभी विभागीय कर्मचारियों को पहले ही वेतन जारी कर दिया जाता है ताकि वह त्योवहार पूरे उत्साह से मना सकें, लेकिन दिल्ली सरकार को डॉक्टरों की चिंता ही नहीं है। रेजीडेंट डॉक्टरों के संगठन फोर्डा के पूर्व अध्यक्ष डॉ. पंकज सोलंकी ने बताया कि अलर्ट के दौरान डॉक्टरों को 12 से 14 घंटे तक की ड्यूटी करनी होती है। वे त्योहार और परिवार से दूर मरीजों की सेवा में रहते हैं। ऐसे में समय पर वेतन नहीं दिया जाना डॉक्टरों के सम्माान को ठेस पहुंचाने जैसा व्यवहार है। सूत्रों के मुताबिक वेतन न मिलने से नाराज डॉक्टरों ने सोमवार को एक बैठक बुलाई है। बताया गया है कि अगर सोमवार तक डॉक्टरों का वेतन जारी नहीं हुआ तो वह कुछ अहम फैसला ले सकते हैं।

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