तीन तलाक: नया कानून बनाने के पक्ष में नहीं सरकार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Aug, 2017 08:12 PM

government not favour to create new law

सरकार ने आज तीन तलाक पर एक नए कानून की जरूरत को वस्तुत: खारिज कर दिया और कहा कि घरेलू हिंसा

नई दिल्ली: सरकार ने आज तीन तलाक पर एक नए कानून की जरूरत को वस्तुत: खारिज कर दिया और कहा कि घरेलू हिंसा से निपटने वाले कानून समेत वर्तमान कानून पर्याप्त हैं। उच्चतम न्यायालय ने एक एेतिहासिक फैसले में आज मुस्लिम समुदाय में प्रचलित एक बार में तीन तलाक कह कर तलाक देने की 1400 साल पुरानी प्रथा खत्म करते हुए इसे पवित्र कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ और इससे इस्लामिक शरिया कानून का उल्लंघन करने सहित अनेक आधारों पर निरस्त कर दिया।

सरकार इस मुद्दे पर करेगी विचार: रविशंकार प्रसाद 
विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकार प्रसाद ने कहा कि सरकार इस मुद्दे पर संरचनात्मक एवं व्यवस्थित तरीके से विचार करेगी। विधि मंत्री 2 न्यायाधीशों की आेर से तीन तलाक के खिलाफ कानून लाने का पक्ष लिये जाने पर सरकार के रूख के बारे में संवाददाताओं के सवालों का जवाब दे रहे थे। यह पूछे जाने पर कि तीन तलाक पर उच्चतम न्यायालय के आदेश को किस प्रकार से लागू किया जायेगा और आदेश के अनुपालन के लिये कानून की जरूरत क्यों नहीं है इस पर उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद अगर कोई पति एक बार में तीन बार तलाक बोलता है, तब उसे वैध नहीं माना जायेगा। विवाह के प्रति उसकी जवाबदेही बनी रहेगी, पत्नी एेसे व्यक्ति को पुलिस के समक्ष ले जाने और घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराने के लिये स्वतंत्र है।

उच्चतम न्यायालय ने 1400 साल पुरानी प्रथा को किया खत्म 
उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने एक बार में तीन तलाक कह कर तलाक देने की 1400 साल पुरानी प्रथा खत्म करते हुये इसे पवित्र कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ और इससे इस्लामिक शरिया कानून का उल्लंघन करने सहित अनेक आधारों पर निरस्त कर दिया। संविधान पीठ के 395 पेज के फैसले मे तीन अलग-अलग निर्णय आये। इनमें से बहुमत के लिये लिखने वाले न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्र्ति आर एफ नरीमन प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति एस ए नजीर के अल्पमत के इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं थे कि तीन तलाक धार्मिक प्रथा का हिस्सा है और सरकार को इसमें दखल देते हुये एक कानून बनाना चाहिए। 

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