Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Nov, 2017 11:36 AM
गुजरात चुनाव में इस बार कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बदली हुई रणनीति के साथ मैदान में उतरे हैं। यूपी और उत्तराखंड चुनाव अभियान की तुलना में इस बार जहां राहुल गांधी मोदी सरकार पर तीखे हमले कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर उन्होंने इस बार नरम हिन्दुत्व का...
नई दिल्ली: गुजरात चुनाव में इस बार कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बदली हुई रणनीति के साथ मैदान में उतरे हैं। यूपी और उत्तराखंड चुनाव अभियान की तुलना में इस बार जहां राहुल गांधी मोदी सरकार पर तीखे हमले कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर उन्होंने इस बार नरम हिन्दुत्व का चोला भी ओढ़ लिया है और गुजरात के मंदिरों में मत्थे टेक रहे हैं। राहुल के इस बदली हुई राजनीति के विरोधी दल भाजपा इस समय बिलबिला रही है, जैसे उसकी दुखती रग पर कांग्रेस ने पांव रख दिया है। भाजपा नेताओं ने इसे राहुल गांधी की स्वार्थ की राजनीति करार देना शुरू कर दिया। वह कहते हैं कि गुजरात चुनाव में अचानक ही वोटबैंक की राजनीति के लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष को देवी देवताओं की याद आ गई और पूजा अर्चना कर हिन्दूत्व की उसी विचारधार को आत्मसात कर रहे हैं, जिसे लेकर अक्सर भाजपा की आलोचना करते रहे थे। हालांकि इस सबके बावजूद राहुल गांधी का प्रचार अभियान देवी देवताओं के सहारे गुजरात में जोर पकड़ता जा रहा है। उनकी तिलकधारी तस्वीरें और मंदिर में पूजा अर्चना के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं।
कांग्रेस ने गलतियों से लिया सबक
कांग्रेस राहुल के भगवद् प्रेम को चतुराई के साथ आगे बढ़ाने में लगी है। कोशिश है कि गुजरात में इस बार पहले की गलती ना दोहराई जाए। पहले की गलतियों से सबक लेकर इस बार संभलकर चल रही कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी नरम हिंदुत्व की राह पर चल रहे हैं। राहुल गांधी सितंबर की आखिर में अपने सौराष्ट्र के दौरे के वक्त द्वारकाधीश के मंदिर गए थे। 11 अक्टूबर को अपने मध्य गुजरात के दौरे के वक्त राहुल गांधी खेड़ा जिले के फागवेल गांव में करीब दो सौ साल पुराने भाथी जी महाराज के मंदिर में जाकर माथा भी टेका था। इसके अलावा राहुल गांधी कागवाड के खोदलधाम, वीरपुर के जलाराम बापा और जसदान के दासीजीवन मंदिर में भी माथा टेक चुके हैं। वहीं अब दो दिन पहले राहुल गांधी का गांधीनगर के स्वामीनारायण संप्रदाय के अक्षरधाम मंदिर जाना भी उसी कड़ी का हिस्सा है। स्वामीनारायण संप्रदाय को मानने वालों में पाटीदारों की तादाद सबसे ज्यादा है।
बीजेपी को इसलिए चुभ रहा है राहुल का मंदिर भ्रमण
राहुल गांधी के इन दौरों ने गुजरात की सियासत को गरमा दिया है। भगवा ब्रिगेड के लिए ‘हिंदुत्व की प्रयोगशाला’ के तौर पर जाना जाने वाला गुजरात इन दिनों चुनावी मोड में है। विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़े जाने के दावे के बावजूद हिंदुत्व का मुद्दा दिल से बाहर नहीं निकल पाया है। गुजरात का चुनावी इतिहास तो यही कहता है। हिंदुत्व का मुद्दा गरमाता है तो फायदा बीजेपी को ही मिलता है, क्योंकि अबतक हिंदुत्व की फसल की वही सबसे बड़ी हकदार रही है। ऐसे में राहुल गांधी का मंदिर जाकर वहां नरम हिंदुत्व के पैरोकार के तौर पर दिखना बीजेपी की आंखों में चुभ रहा है। बीजेपी ऐसे चौंक रही है जैसे उसके हिस्से में कोई दूसरा हस्तक्षेप ही नहीं कर रहा हो बल्कि कब्जा करने की कोशिश कर रहा है।
मुसलमानों के मुद्दों से परहेज कर रहे राहुल
राजनीति के जानकारों की मानें तो भाजपा कांग्रेस को मुस्लिमों की पार्टी घोषित कर हिन्दू मतदाताओं को रिझाने में कामयाब होती रही है। भाजपा की इसी रणनीति की काट के लिए राहुल ने इस बार चोला बदला है और कांग्रेस को मुस्लिम तुष्टीकरण की छवि से बाहर निकालकर गुजरात के लोगों को बड़ा संदेश देना चाह रहे हैं। खास रणनीति के तहत ही राहुल गांधी इस बार गुजरात में ना ही मुस्लिम समुदाय के विकास या उनसे जुड़े मसले को उठा रहे हैं और ना ही मंच पर मुस्लिम नेताओं को भी खासा तरजीह दे रहे हैं। इस बार हर हाल में कांग्रेस ध्रुवीकरण को रोकने में लगी है। राहुल गांधी की तरफ से विकास के मुद्दे की काट के लिए विकास पागल हो गया है का नारा दिया गया था। मोदी के सामने महज विकास के दावों की हवा निकाल कर पार पाना नामुमकिन है, लिहाजा, अब नरम हिंदुत्व की राह को अपनाकर उस जमात को साधने की कोशिश हो रही है।