आखिर कैसे तय किया शून्य से शिखर तक का सफर

Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Mar, 2018 12:25 AM

how did one decide from zero to peak

भारतीय जनता पार्टी ने त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में हुए विधानसभा चुनाव में जीत का परचम लहराकर उत्तर-पूर्वी भारत में अपनी सियासी पकड़ को मजबूत कर लिया है। बीजेपी ने त्रिपुरा में अपनी सहयोगी दल के साथ मिलकर 43 सीटों पर फतह हासिल की है। तो वहीं...

नेशनल डेस्कः भारतीय जनता पार्टी ने त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में हुए विधानसभा चुनाव में जीत का परचम लहराकर उत्तर-पूर्वी भारत में अपनी सियासी पकड़ को मजबूत कर लिया है। बीजेपी ने त्रिपुरा में अपनी सहयोगी दल के साथ मिलकर 43 सीटों पर फतह हासिल की है। तो वहीं नागालैंड में अपनी सहयोगी एनडीपीपी के साथ सरकार बनाने बनाएगी। मेघालय में बीजेपी को सिर्फ 2 सीटों पर ही जीत हासिल हुई है।

क्या रहे जीत के फैक्टर
त्रिपुुरा में पिछले 25 सालों से वामपंथियों की सरकार थी। त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव जीतने के लिए पूरी ताकत झौंक दी थी।बीजेपी ने त्रिपुरा में "चलो पल्टाई" (चलो बदलें) का नारा दिया था और यह नारा कारगार भी साबित हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य में रैलियां कर बीजेपी की ओर बहुमत बनाने की कोशिश की। तो वहीं पार्टी अध्यक्ष से लेकर गृहमंत्री राजनाथ ने जमकर प्रचार प्रसार किया।

नाथ संप्रदाय प्रभाव वाली सीटों पर योगी से प्रचार
त्रिपुरा में नाथ संप्रदाय प्रभाव वाली सीटों पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से प्रचार कराना बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हुआ। त्रिपुरा में नाथ संप्रदाय की अच्छी खासी तादात है। बता दें कि गोरक्षपीठ में से एक पीठ त्रिपुरा में भी स्थित है। और योगी आदित्यनाथ यहां पहले भी आते रहे हैं। बीजेपी ने इसका पूरा उपयोग किया।

2014 में जीत के बाद नॉर्थ-ईस्ट नीति
भारतीय जनता पार्टी की केंद्र में सरकार बनने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने अधिकतर भाषणों में उत्तर-पूर्वी भारत का जिक्र किया। वह हर मंच पर उत्तर-पूर्वी भारत की वकालत करते नजर आए। इसके लिए मोदी ने नॉर्थ-ईस्ट के लिए अलग से नीति बनाने की भी बात कही। इसका फायदा भी बीजेपी को त्रिपुरा में हुए विधानसभा चुनावों में देखने को मिला।

स्थानीय दल से गठबंधन
भारतीय जनता पार्टी ने त्रिपुरा की स्थानीय पार्टी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के साथ गठबंधन करना सही साबित हुआ। 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और सहयोगी आईपीएफटी का वोट प्रतिशत 1.5% था, जो 2018 के चुनाव में बढ़कर लगभग 50% तक पहुंच गया।

संघ का साथ
त्रिपुरा में बीजेपी ने अपना चुनावी कैंपेन किया। इस दौरान बीजेपी और संघ के कई कार्यकर्ताओं की मौत हो गई थी। बीजेपी ने कार्यकर्ताओं की मौत के मुद्दे को त्रिपुरा के चुनावों में खूब भुनाया। तो वहीं संघ कार्यकर्ताओं ने भी जमीनी स्तर पर काम किया और बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की। वैसे तो बीजेपी की जीत में कहीं न कहीं संघ की भूमिका होती है। लेकिन त्रिपुरा विधानसभा में संघ ने अपनी पूरी ताकत झौंक दी।

बता दें कि 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगी का वोट प्रतिशत 1.5% था। वहीं वामपंथ का वोट प्रतिशत लगभग 43% था। लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में त्रिपुरा की जनता ने पूरी तस्वीर बदलकर रख दी है। अब बीजेपी और उसकी सहयोगी का वोट प्रतिशत 50% है। तो वहीं वामपंथियों का वोट प्रतिशत लगभग 2% है 

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