यह गणित काम कर गया तो मुश्किल में फंस सकता है बीजेपी का मिशन 2019

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Mar, 2018 05:34 AM

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यूपी की दो लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने बता दिया कि 2019 का फाइनल काफी रोमांचक होने वाला है। 23 साल से राजनीति के दौरान सपा-बसपा के बीच चूहे-बिल्ली की ​दुश्मनी थी। इसे खत्म करने का फायदा यह हुआ कि 29 साल से गोरखपुर में बीजेपी की सीट को...

नेशनल डेस्क (आशीष पाण्डेय): यूपी की दो लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने बता दिया कि 2019 का फाइनल काफी रोमांचक होने वाला है। 23 साल से राजनीति के दौरान सपा-बसपा के बीच चूहे-बिल्ली की ​दुश्मनी थी। इसे खत्म करने का फायदा यह हुआ कि 29 साल से गोरखपुर में बीजेपी की सीट को एक झटके में अपने पाले में कर लिया गया। लोकसभा उपचुनाव के नतीजों से यह भी तय हो गया कि भविष्य में भी हाथी-साइकिल की सवारी कर कमल को रौंदने का दम रखती है। इतना ही नहीं पूर्वोत्तर में लाल निशान को खत्म कर अतिआत्मविश्वास में बीजेपी ने बुआ भतीजे के साथ को बेमेल गठबंधन समझकर उन्हें कमतर आंकने की भूल कर दी। जो अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने की कहावत को चरितार्थ करने जैसा था। हालांकि इस चुनाव को जिस तरह, बीजेपी ने अपनी नाक का सवाल बना दिया था उससे यह कहना गलत नहीं होगा की यूपी के लोकसभा उपचुनाव में सपा-बसपा की जीत नहीं बल्कि सीएम-डीप्टी सीएम की हार है। 2019 में अगर सपा बसपा ने एक साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा तो बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। कारणों की एक समीक्षा:-
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यूपी में एसपी बीएसपी की गठजोड़
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यूपी में 80 में से 73 सीटें मिली थीं, इसी चुनाव में सपा और बसपा ने अलग अलग उम्मीदवार खड़े किये थे। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी एसपी और बीएसपी अलग-अलग रहीं। इस चुनाव में सपा को 47 जबकि बीएसपी केवल 19 सीटें ही मिली। जबकि यूपी की 403 सीटों की विधानसभा में बीजेपी ने अपने सहयोगियों के साथ 325 सीटों पर कब्जा किया। अगर 2017 के विधानसभा चुनाव में एसपी-बीएसपी को मिले वोटों को अगर हर लोकसभा सीट में जोड़ दिया जाए तो बीजेपी के लिए  2019 के लोकसभा चुनाव में मुश्किलें खड़ी होनी तय मानी जा रही है। आंकड़ों के मुताबिक एसपी और बीएसपी के वोटों को जोड़ दिया जाए तो 57 लोकसभा सीटों पर इस गठबंधन को औसतन एक लाख 45 हजार वोटों की बढ़त हासिल हो जाती है। जबकि 23 सीटों पर बीजेपी की औसत बढ़त मात्र 58 हजार वोट है। जबकि 2014 में बीजेपी जिन 73 लोकसभा सीटों पर चुनाव जीती थी वहां पार्टी की औसत बढ़त 1 लाख 88 हजार वोट थे। आंकड़ों का गणित बताता है कि अगर बीएसपी-एपी के वोटर एक हो गए तो बीजेपी जिन 23 सीटों पर आगे बताई जा रही है उनमें से महज चार सीटों, वाराणसी, मथुरा, गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर पर ही उसकी जीत का अंतर एक लाख वोटों से अधिक होगा। बता दें कि ये आंकड़े 2017 के विधानसभा वोट से लिये गये हैं। 2017 के विधानसभा में एसपी और कांग्रेस ने साथ चुनाव लड़ा था, इसलिए यह आकलन करते समय जिन सीटों पर समाजवादी पार्टी ने अपने उम्मीदवार खड़े नहीं किये थे वहां पर कांग्रेस को मिले वोटों को एसपी का वोट माना गया है।
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मोदी को मिल रहा लगातार 3 तलाक
17वें लोकसभा के लिए आम चुनाव का शंख नाद बज गया है। सभी राजनीतिक दल मिशन 2019 के लिए सियासी समीकरण बनाने पर जोर देने लगे हैं। यूपी में गठजोड़ से आए नतीजों से विपक्षी दल उत्साहित हैं। इन्हीं नतीजों के बाद आंध्र प्रदेश में बीजेपी की सहयोगी रही टीडीपी ने पीएम नरेंद्र मोदी की पार्टी को तीन तलाक देने में देर नहीं की। ऊपर से लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी लाने जा रही है। अगर 2019 में विपक्ष विशाल गठजोड़ बनाने में कामयाब रहा तो पीएम मोदी के लिए ना केवल जीत की राह मुश्किल होगी बल्कि सत्ता से भी उन्हें बेदखल होना पड़ सकता है।
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बिहार में भी विपक्ष हो रहा एक जुट
बिहार में भी विपक्ष ने बड़ा गठजोड़ किया तो बीजेपी को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। बता दें कि बिहार में एनडीए की सहयोगी रही जीतनराम मांझी की पार्टी हम एनडीए से अलग होकर महागठबंधन में शामिल हो चुकी है। उनके अलावा एनडीए के दूसरे सहयोगी दल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की भी महागठबंधन में शामिल होने की अटकलें तेज हैं। मौजूदा समय में आरएलएलपी के तीन सांसद हैं जिनमें से एक बागी हैं। इस पार्टी का राज्य की कोइरी समुदाय में अच्छी पैठ मानी जाती है, जिसका आबादी में करीब चार फीसदी योगदान है। जीतनराम मांझी के दलित वोटों (मांझी के साथ अन्य दलित जातियों) की संख्या करीब 8 फीसदी के आसपास है। जदयू के बिखंडन से शरद यादव का गुट नीतीश से अलग हो चुका है। ऐसे में राजद, कांग्रेस, हम, रालोसपा और शरद यादव का जदयू मिलकर एक बड़ा गठबंधन बना सकता है। बिहार में लोकसभा की 40 सीट है जिस पर एनडीए के खाते में फिलहाल 33 सीट है। 29 सीटें ऐसी हैं जिस पर राजद और कांग्रेस के उम्मीदवार 2014 के चुनावों में नंबर दो स्थान पर थे।
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गुजरात में स्थानीय गठबंधन का दिखा दम
गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनावों में बदले राजनीतिक समीकरण ने अपना असर दिखा दिया है। बीजेपी को 17 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। वहां अकेले चल रही कांग्रेस ने ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर, दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के साठ गठबंधन किया था। काग्रेस अगर 2019 में सपा, बसपा और एनसीपी को साथ लेकर गठबंधन के तहत चुनाव लड़ती है तो राज्य की करीब 13 लोकसभा सीट पर अपना दबदबा बना सकती है। फिलहाल सभी 26 सीटों पर बीजेपी के सांसद हैं।
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महाराष्ट्र में कांग्रेस एनसीपी गठबंधन बनेगी चुनौती
महाराष्ट्र में लोकसभा की कुल 48 सीटें हैं। 2014 में बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था और कुल 41 सीटों पर जीत दर्ज की थी। उधर, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। बदले सियासी घटनाक्रम और राष्ट्रीय स्तर पर नेताओं के गठजोड़ की कवायद से अगर कांग्रेस और एनसीपी महाराष्ट्र में मिलकर चुनाव लड़ती है तो वोट पर्सेन्टेज के लिहाज से यह गठबंधन 23 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सकता है। बता दें कि पहले भी दोनों दल केंद्र और राज्य में एक साथ सरकार चला चुके हैं। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक इनके गठबंधन में अगर सपा-बसपा ने भी शिरकत की तो जीत का आंकड़ा और बढ़ सकता है। गौर करने वाली बात है कि एनडीए के घटक दल शिवसेना पहले ही एलान कर चुकी है कि उसकी राहें बीजेपी से जुदा हो चुकी हैं।

3 राज्यों में भी लग सकती है सेंध 
बीजेपी का गढ़ कहे जाने वाले अन्य राज्यों में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ है। इन तीनों राज्यों में लोकसभा की कुल 65 सीटें आती हैं जिनमें से 62 सीटों पर बीजेपी ने 2014 में जीत दर्ज की थी। 2019 में सियासत ने करवट ली और कांग्रेस ने सपा, बसपा और अन्य स्थानीय दलों से गठजोड़ किया तो आंकड़े बदल सकते हैं। इनके अलावा झारखंड (कुल सीट-14, बीजेपी के पास 12) और कर्नाटक (कुल सीट- 28, बीजेपी के पास- 17) में भी लोकसभा चुनावों में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। गौरतलब है कि यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के रात्रिभोज में 20 दलों के नेता शामिल हुए थे और सभी ने वैकल्पिक राजनीति और एक व्यापक गठजोड़ को समय की जरूरत बताया था। एनसीपी प्रमुख शरद पवार, टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी, राजद अध्यक्ष लालू यादव इसकी पैरवी पहले से करते रहे हैं। मालूम हो कि 2014 के चुनावों में एनडीए को 543 में 337 सीटें मिली थीं।
 

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