राहुल गांधी की ताजपोशी से कांग्रेस को डबल फायदा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Oct, 2017 03:27 PM

it is important that rahul gandhi contesting two seats in 2019 lok sabha

दक्षिण में राहुल को उतारने के पीछे रणनीतिकारों को दो फायदे नजर आ रहे हैं। एक तो उनके आगामी राष्ट्रीय अध्यक्ष की छवि देश व्यापी होगी

नई दिल्लीः कांग्रेस पार्टी में बदलाव की बयार चल चुकी है। पहली खबर तो जग जाहिर हो चुकी है कि राहुल गांधी जल्द ही पार्टी अध्यक्ष की कमान संभाल लेंगे। इसी तरह की एक और महत्वपूर्ण जानकारी आ रही है कि राहुल गांधी 2019 के आम चुनावों में लोकसभा की दो सीटों से चुनाव लडेंगे। सूत्रों के मुताबिक वे उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट के अलावा कर्नाटक की बेल्लारी से चुनाव लडेंगे। हालांकि पार्टी की ओर से कोई खुलकर बोलने को तैयार नहीं है लेकिन राजनैतिक जानकारों की मानें तो दक्षिण में राहुल को उतारने के पीछे रणनीतिकारों को दो फायदे नजर आ रहे हैं। एक तो उनके आगामी राष्ट्रीय अध्यक्ष की छवि देश व्यापी होगी। वहीं दूसरी ओर दक्षिण में लगातार खिसकते जनाधार को रोकने में राहुल की लांचिंग से मदद मिलेगी। 
PunjabKesariकांग्रेस के चाण्क्यों की रणनीति का हिस्सा  
1999 के लोकसभा चुनाव में कर्नाटक की बेल्लारी सीट पर बीजेपी ने सुषमा स्वराज को उतारा था। जिसमें सुषमा ने विदेशी बहू बनाम देशी बहू का नारा दिया था लेकिन यहां से भी सोनिया ने जीत दर्ज की थी क्योंकि यह भी रायबरेली की तरह कांग्रेस की परंपरागत सीट थी। एेसे में अब राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी के बाद पहले सीधे देश के सबसे बड़े चुनाव ही होंगी। इसके चलते कांग्रेस रणनीतिकार अपने युवा नेता की इमेज बिल्ड करने करने में जुटे हुए हैं। जानकारों के मुताबिक उनका अमरीका दौरा भी इसी रणनीति का हिस्सा था और अब दो लोकसभा सीटों से चुनाव की बाते सामने आना उसी रणनीति का दूसरा हिस्सा है। 
PunjabKesariकंधों पर साख बचाने का जिम्मा
लोकसभा और विधानसभा के लेहजे से बात करें तो दोनों में ही कांग्रेस इन राज्यों में शुरू से मजबूत स्थिति रही है लेकिन बीते कालांतरों में पार्टी की राज्य और केंद्र दोनों ही जगहों से पकड़ लगातार छूट रही है। आम चुनावों को ही लें तो साल 2009 के लोकसभा में पार्टी के खाते में 62 जो 2014 तक पहुंचते-पहुंचते 21 पर सिमट गई। वहीं, राज्यों में अलग पार्टी सत्ता से बेदखल हुई सो अलग। राजनीतिक पंडित के अनुसार, कांग्रेस के रणनीतिकार पार्टी के युवा अध्यक्ष को लॉचिंग पेड बनाकर नए सिरे से पकड़ बनाने की तैयारी है। 
PunjabKesariयहां उतना बीजेपी को फायदा नहीं मिला
दक्षिण भारत में कुल पांच राज्य आते हैं, इसमें आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडू और तेलंगाना शामिल हैं। केंद्र शासित प्रदेशों में अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप, दादर नगर हवेली, दमन दीव और पुंडुचेरी है। एेसे में भारत के इस हिस्से से लोकसभा के 134 सदस्य आते हैं। 2014 के आम चुनावों में बीजेपी ने दक्षिण भारत की 134 सीटों में 26 सीटें अपने नाम की। वहीं कांग्रेस को 21 सीटें मिली। उधर 2009 में कांग्रेस की 62 थी लेकिन बीजेपी के खाते में 22 सीटें आई थीं। एेसे में कांग्रेस को 41 सीटों का नुकसान हुआ था। 
PunjabKesariहिंदी भाषी क्षेत्र में कांग्रेस का पत्ता साफ
हिन्दी भाषी राज्यों में मोदी लहर साफ दिखी। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, हरियाणा, दिल्ली, झारखंड, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की कुल 225 सीटों में से 190 पर भाजपा ने काबिज होकर इन राज्यों से न सिर्फ कांग्रेस बल्कि सपा, बसपा, जदयू और राजद जैसे क्षेत्रीय दलों का सफाया सा कर दिया लेकिन दक्षिण में केवल कर्नाटक को छोड़कर मोदी लहर किसी भी राज्य में असर नहीं दिखा।  
PunjabKesari206 से सीधे 44 पर पहुंची थी कांग्रेस
543 सदस्यीय लोकसभा में अकेले दम पर भाजपा 282 सीटों पर जीत दर्ज की। 1984 के बाद के 30 वर्षों में भाजपा ऐसी पहली पार्टी बन गई है, जिसने अपने दम पर बहुमत हासिल किया है। 1984 में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 400 से अधिक सीटें जीती थीं। तब कांग्रेस को 49.01 फीसदी वोट मिले थे। जबिक 2014 बीजेपी को 31.4 प्रतिशत वोट मिला था। कांग्रेस को मात्र 44 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। जबकि 2009 में केवल कांग्रेस के खाते में 206 सीटें थीं।

राज्यवार कांग्रेस-बीजेपी की स्थिति :-

आंध्रप्रदेशः
2009 के आम चुनावों में कांग्रेस ने 42 सदस्यों वाले राज्य में 33 सीटें जीतीं लेकिन 2014 में तेलंगाना के अलग राज्य बनने के बाद आंध्रा में लोकसभा की 25 सीटें रह गईं लेकिन इस बार कांग्रेस को राज्य में खाता तक नहीं खोल सकी। पिछली दफा अभिभाजित आंध्रा से कांग्रेस के खाते में 33 सीटें आई थीं।

कर्नाटकः यहां लोकसभा की 25 सीटें हैं। 2009 बीजेपी को 19 सीटें मिली थी लेकिन 2014 में उसे 2 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा। उधर कांग्रेस के खाते में तीन सोटों का इजाफ हुआ और उसे कुल 9 सीटें मिलीं। 

केरलः 2009 के लोकसभा कांग्रेस को 40 प्रतिशत वोट शेयरिंग के साथ 13 सीटें हाथ लगीं लेकिन 2014 में 5 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा। जबकि बीजेपी न पिछली दफा खाता खुला था और न ही इस बार उसे मोदी लहर में कोई फायदा हुआ। हालांकि 10 फीसद वोट शेयरिंग उसके खाते जुड़ी। 

तमिलनाडूः वैसे तो यहां अन्नाद्रमुक(एआईएडीएमके) और द्रमुक(डीएमके) का बोलबाला रहता है। इसके चलते दोनों राष्ट्रीय पार्टियों का यहां कोई वजूद नहीं है लेकिन लोकसभा के 39 सदस्यों वाले राज्य में डीएमके और एआईएडीएमके केंद्रीय सरकार बनाने में खासी भूमिका अदा करती हैं। हालांकि 2014 के आम चुनावों में बीजेपी ने एक हासिल करके खाता जरूर खोल लिया। 

तेलंगानाः साल 2014 में ही आंध्रप्रदेश से अलग होकर अस्तित्व में आए तेलंगाना राज्य की 17 सीटों में कांग्रेस को 2 और बीजेपी को 1 सीट मिली। यहां सबसे ज्यादा फायद तेलंगाना राज्य की मांग करने वाली पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समित (टीआरएस) को हुआ। 

केंद्र शासित प्रदेशः भारत के इस भू भाग में पुंडुचेरी और लक्ष्दीप लोकसभा की सीट साल 2009 में दोनों पार्टियों में से किसी के पास नहीं थी लेकिन 2014 में ये कांग्रेस की झोली में पहुंच गई। अंडमान निकोबार, दादर नगर हवेली और दमन दीव 2009 बीजेपी के पास जो 2014 में कांग्रेस ने झटक ली। 


 

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