मालदीव में सेना भेजना जोखिम भरा होगा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 07 Feb, 2018 08:23 PM

it would be risky to send troops to the maldives

मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन द्वारा संविधान की धज्जियां उड़ाने के बाद मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मुहम्मद नशीद ने भारत से सैन्य हस्तक्षेप की अपील की है जिस पर भारत ने विचार कर अपने स्पेशल फोर्सेज, वायुसेना और नौसेना को चौकस रहने को कहा है...

नेशनल डेस्क (रंजीत कुमार): मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन द्वारा संविधान की धज्जियां उड़ाने के बाद मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मुहम्मद नशीद ने भारत से सैन्य हस्तक्षेप की अपील की है जिस पर भारत ने विचार कर अपने स्पेशल फोर्सेज, वायुसेना और नौसेना को चौकस रहने को कहा है लेकिन राजधानी माले में सेना भेजने का कदम बुधवार देर शाम तक नहीं उठाया।

मालदीव में चार दिनों बाद भी सेना नहीं भेजने के पीछे भारत की यही सोच है कि वहां सेना भेजना जोखिम भरा होगा। पिछली बार  1988 में भारतीय सेना जब मालदीव के शासक मौमून अब्दुल गयूम को विद्रोहियों से बचाने के लिये उन्हीं की अपील पर गई थी तब तत्कालीन प्रधानमंत्री  राजीव गांधी ने कहा था कि राष्ट्रपति गयूम हिंद महासागर में भारत के आदमी हैं हम उन्हें खो नहीं सकते, लेकिन आज मालदीव भारत के हाथ से निकल चुका है और वहां के राष्ट्रपति चीन के आदमी बन चुके हैं। इसलिए मालदीव के विपक्षी नेता मुहम्मद नशीद जो कभी चीन के आदमी बनते बनते रह गए उनकी अपील पर सेना भेजना कितना ठीक होगा इस बारे में यहां सुरक्षा एजेंसियों की भिन्न राय है।

मालदीव में सेना भेजने की भारत की तैयारी को लेकर चीन ने अपने मुख पत्र ग्लोबल टाइम्स के जरिए भारत को पहले ही आगाह कर दिया है। इसलिए भारत यदि वहां सेना भेजता है तो मालदीव के राष्ट्रपति यामीन भी चीन से सेना भेजने को कह सकते हैं। यहां सामरिक प्रेक्षकों का कहना है कि आज का मालदीव 1988 का मालदीव नहीं है जब भारत की सेना मालदीव की सरकार के आग्रह पर गई थी और मुट्ठी भर विद्रोहियों को उसे धराशायी करना था लेकिन आज मालदीव के राष्ट्रपति के साथ उनके पुलिस बल और सेना भी है जो माले की सड़कों पर भारत की सेना से गुत्थम गुत्थी हो सकती है और इसमें भारी खून खराबा हो सकता है।

आज मालदीव का युवा समुदाय भी जेहादी मानसिकता का हो चुका है जो भारत को अपना स्वाभाविक दोस्त नहीं मानते। मालदीव पर सऊदी अरब और पाकिस्तान का असर काफी व्यापक हो चुका है और मालदीव को इन दोनों देशों के वैचारिक प्रभाव से मुक्त करना आसान नहीं होगा।

भारत समझता है कि इस इलाके मे वह सबसे बड़ी सैन्य ताकत है और भारतीय सेना वहां जा कर राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर सकती है और अपने आदमी को राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठा सकता है लेकिन भारत के इस कदम के खिलाफ चीन और पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र में मालदीव की सम्प्रभुता के हनन का सवाल उठा कर भारत के खिलाफ अनर्गल आरोप लगा कर भारत को विस्तारवादी बताकर भारत के पड़ोसी देशों के बीच भारत को बदनाम कर सकते हैं ।

मालदीव को आधार बना कर चीन हिंद महासागर में अपनी पदछाप का विस्तार करना चाहता है जो भारत के लिये चिंता की बात है। लेकिन चीन को इस इलाके से बाहर करने के लिये सैनिक हस्तक्षेप नहीं बल्कि राजनयिक औऱ आर्थिक प्रतिबंधों के कदम उठाने होंगे। भारत को अमरीका, यूरोपीय देश और अन्य पडोसी देशों को साथ लेकर चलना होगा और इनके साथ एकजुट हो कर मालदीव पर दबाव डालना होगा कि मालदीव की संसद का आगामी चुनाव निष्पक्ष और स्वंतत्र तरीके से कराए।

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