कर्नाटक चुनाव पर टिकी है कांग्रेस-भाजपा की निगाहें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Mar, 2018 12:04 PM

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उत्तर भारत में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने के बाद भाजपा ने पूर्वोत्तर में भी अपने आधार का भले हीं विस्तार कर लिया है लेकिन दक्षिण भारत की राजनीति भगवा पार्टी को निराश करती रही है। भाजपा नेता भले हीं कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देते हैं लेकिन अभी...

नई दिल्ली:  उत्तर भारत में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने के बाद भाजपा ने पूर्वोत्तर में भी अपने आधार का भले हीं विस्तार कर लिया है लेकिन दक्षिण भारत की राजनीति भगवा पार्टी को निराश करती रही है। भाजपा नेता भले हीं कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देते हैं लेकिन अभी दक्षिण भारत तो भाजपा मुक्त हो गया है। आंध्र प्रदेश में टीडीपी के साथ गठबंधन टूटने के बाद दक्षिण भारत भाजपा मुक्त हो गया है। अभी दक्षिण को चार राज्यों में से कहीं भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं है। हालांकि, कर्नाटक और तमिलनाडु में अपनी जमीन तलाशने की कोशिश कर रही भारतीय जनता पार्टी को अगर सरकार में शामिल होने का मौका नहीं मिला तो अगले कुछ सालों तक दक्षिण भारत को भाजपा से मुक्ति मिली रहेगी। 
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कर्नाटक में अगले महीने चुनाव होने वाला है। वहां कांग्रेस ने लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने की सिफारिश करके एक दांव चली है। गौरतलब है कि भाजपा नेता बीएस यदुयुरप्पा लिंगायत समुदाय के नेता हैं। इस समुदाय की राजनीति में बड़ी भूमिका है क्योंकि राज्य की जनसंख्या में इसकी करीब 19 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। हालांकि, कांग्रेस का यह दांव उसे कितना फायदा पहुंचाता है, यह तो समय बताएगा लेकिन फिलहाल स्थिति स्पष्ट नहीं है। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 224 सदस्यीय विधान सभा में 122 सीटें जीती थी, जबकि भाजपा को केवल 40 सीटों से संतोष करना पड़ा था। इसके अलावा अगले साल आंध्र प्रदेश में भी चुनाव है, जहां कि स्थितियां भी बदलती दिख रही है। 
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हालांकि, भाजपा के पास टीडीपी के अलावा वाईएसआर कांग्रेस से गठबंधन करने का भी विकल्प मौजूद है। वहां की बदलती राजनीतिक परिस्थितियों में अगर भाजपा को सरकार का हिस्सा बनने का मौका मिल जाता है, तो स्थितियां बदल सकती है। हालांकि, जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडु की राजनीति में पैदा हुई हलचल से भी भाजपा की उम्मीदें बंधी है। रजनीकांत और कमल हासन के पार्टी बनाने के बाद भगवा पार्टी के पास गठबंधन के लिए विकल्प बढ़े हैं। दूसरी ओर अन्नाद्रमुक के बीच चल रही आंतरिक कलह के कारण भी भाजपा को मौका मिल सकता है। अब देखना यह है कि कब तक भारतीय जनता पार्टी को इस ठप्पे के साथ रहना होगा।

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