Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Oct, 2017 11:12 AM
माल एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) लागू होने के बाद बंद होते करघेए खत्म होते रोजगार और बेहद कम बिक्री से कश्मीर के कालीन उद्योग के रेशे उधड़ते जा रहे हैं। नई कर व्यवस्था लागू होने के महज तीन महीने के भीतर सैकड़ों कालीन बुनकरों के बेरोजगार होने तथा एक समय...
श्रीनगर : माल एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) लागू होने के बाद बंद होते करघेए खत्म होते रोजगार और बेहद कम बिक्री से कश्मीर के कालीन उद्योग के रेशे उधड़ते जा रहे हैं। नई कर व्यवस्था लागू होने के महज तीन महीने के भीतर सैकड़ों कालीन बुनकरों के बेरोजगार होने तथा एक समय फल-फूल रहे व्यापार के शिथिल पडऩे से कश्मीरी शिल्प का भविष्य दांव पर लग गया है। कई कालीन बुनकर अब रोजी के लिए अन्य विकल्प तलाश रहे हैं। उनके पास काम नहीं है और पेट पालने एवं परिवार का भरन पोषण करने के लिए दूसरे अवसरों की तलाश कर रहे हैं।
अरशद हुसैन इनमें से एक हैं जो नई दिल्ली में 1994 से व्यापार कर रहे थे। हुसैन ने कहा कि ऐसा लगता है कि लोगों ने कश्मीरी सिल्क कालीन खरीदना बंद कर दिया है। श्रम की अधिकता के कारण ये कालीन पहले भी सस्ते नहीं होते थे। जी.एस.टी. के बाद इनकी कीमतें और बढ़ गई हैं।अब वैकल्पिक कारोबार की तलाश में कश्मीर लौट चुके हुसैन कहते हैं कि यहां बमुश्किल कोई कारोबार है पर मुझे अपने परिवार को पालने के लिए कुछ तो करना ही होगा।
कालीनों की तो अब बिक्री ही नहीं हो रही है। उल्लेखनीय है कि पुरानी कर व्यवस्था के तहत हस्तनिर्मित कालीन कर से मुक्त थे।इस उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि सदियों पुराने इस शिल्प को जिंदा रखने के लिए इसे जीएसटी से बाहर रखना ही एकमात्र उपाय है।