देश के 14वें राष्ट्रपति बने रामनाथ कोविंद, बोले-हम सब अलग लेकिन रहेंगे एकजुट

Edited By Punjab Kesari,Updated: 25 Jul, 2017 01:12 PM

kovind will take oath as the 14th president today

रामनाथ कोविंद ने आज देश के राष्ट्रपति के रूप में संविधान की रक्षा की शपथ ली। देश के मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर ने संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में आयोजित समारोह में कोविंद को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई।

नई दिल्ली: रामनाथ कोविंद ने आज देश के राष्ट्रपति के रूप में संविधान की रक्षा की शपथ ली।  देश के मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर ने संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में आयोजित समारोह में कोविंद को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण समारोह में राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, मंत्री परिषद के सदस्य, विदेशी दूतावासों के प्रमुख, सांसद और शीर्ष सैन्य अधिकारी शामिल थे। शपथ ग्रहण के बाद नए राष्ट्रपति को 21 तोपों की सलामी दी गई।
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राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का पहला संबोधन
देश के नए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने विविधता को देश की सफलता का मूल मंत्र बताते हुए ऐसे समाज के निर्माण पर जोर दिया है जिसमें सभी को समान अवसर मिले। संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में देश के 14वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद कोविंद ने अपने संबोधन में कहा कि देश की प्रगति के लिए परंपरा, प्रौद्योगिकी, प्राचीन भारत के ज्ञान और समकालीन भारत के विज्ञान को साथ लेकर चलना होगा। उन्होंने कहा कि देश की सफलता का मंत्र उसकी विविधता है। विविधता ही वह आधार है, जो हमें अद्वितीय बनाता है। मुझे, भारत के राष्ट्रपति पद का दायित्व सौंपने के लिए मैं आप सभी का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। मैं पूरी विनम्रता के साथ इस पद को ग्रहण कर रहा हूं। यहां सेंट्रल हॉल में आकर मेरी कई पुरानी स्मृतियां ताजा हो गई हैं। मैं संसद का सदस्य रहा हूं, और इसी सेंट्रल हॉल में मैंने आप में से कई लोगों के साथ विचार-विनिमय किया है। कई बार हम सहमत होते थे, कई बार असहमत। लेकिन इसके बावजूद हम सभी ने एक दूसरे के विचारों का सम्मान करना सीखा। यही लोकतंत्र की खूबसूरती है।
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मैं मिट्टी के घर में पला-बढ़ा
मैं एक छोटे से गांव में मिट्टी के घर में पला-बढ़ा हूं। मेरी यात्रा बहुत लंबी रही है, लेकिन ये यात्रा अकेले सिर्फ मेरी नहीं रही है। हमारे देश और हमारे समाज की भी यही गाथा रही है। हर चुनौती के बावजूद, हमारे देश में, संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित-न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूल मंत्र का पालन किया जाता है और मैं इस मूल मंत्र का सदैव पालन करता रहूंगा।  मैं इस महान राष्ट्र के 125 करोड़ नागरिकों को नमन करता हूं और उन्होंने मुझ पर जो विश्वास जताया है, उस पर खरा उतरने का मैं वचन देता हूं। मुझे इस बात का पूरा एहसास है कि मैं डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और मेरे पूर्ववर्ती प्रणब मुखर्जी, जिन्हें हम स्नेह से ‘प्रणब दा’ कहते हैं, जैसी विभूतियों के पदचिह्नों पर चलने जा रहा हूं।

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