पढ़िए- 900 करोड़ के बहुचर्चित चारा घोटाले की पूरी कहानी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 Jan, 2018 12:16 PM

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भारतीय राजनीति के बहुचर्चित घोटालों में एक चारा घोटाला मामले को लेकर लालू यादव को सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका मिला है। कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए लालू यादव के खिलाफ फिर से आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाने की मंजूरी दी है।

नई दिल्ली: भारतीय राजनीति के बहुचर्चित घोटालों में एक चारा घोटाला मामले को लेकर लालू यादव को सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका मिला है। कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए लालू यादव के खिलाफ फिर से आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाने की मंजूरी दी है।

दरअसल, चारा घोटाले का खुलासा साल 1996 में सामने आया था। मामला बिहार पशुपालन विभाग में से करोड़ों रुपये के घोटाले से जुड़़ा है। उस वक्त लालू यादव राज्य के सीएम थे। मामले में 90 के दशक की शुरूआत में बिहार के चाइबासा सरकारी खजाने से फर्जी बिल लगाकर 37.7 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी से जुड़ा हुआ है।

चारा घोटाले में कुल 950 करोड़ रुपये के गबन किए जाने का आरोप है। 'चारा घोटाला' मामले में कुल 56 आरोपियों के नाम शामिल हैं, जिनमें राजनेता, अफसर और चारा सप्लायर तक जुड़े हुए हैं। आपको बता दें कि इस घोटाले से जुड़े 7 आरोपियों की मौत हो चुकी है जबकि 2 सरकारी गवाह बन चुके हैं तथा 1 ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और एक आरोपी को कोर्ट से बरी किया जा चुका है।

ये है मामला, पढ़ें- कब क्या-क्या हुआ?

  • जनवरी, 1996 : उपायुक्त अमित खरे ने पशुपालन विभाग के दफ्तरों पर छापा मारा और ऐसे दस्तावेज जब्त किए जिनसे पता चला कि चारा आपूर्ति के नाम पर अस्तित्वहीन कंपनियों द्वारा धन की हेराफेरी की गई है, जिसके बाद चारा घोटाला सामने आया।

    11 मार्च, 1996 : पटना उच्च न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को इस घोटाले की जांच का आदेश दिया, उच्चतम न्यायालय ने इस आदेश पर मुहर लगाई।

  • 27 मार्च, 1996 : सीबीआई ने चाईंबासा खजाना मामले में प्राथमिकी दर्ज की।

  • 23 जून, 1997 : सीबीआई ने आरोप पत्र दायर किया और लालू प्रसाद यादव को आरोपी बनाया।

  • 30 जुलाई, 1997 : राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद ने सीबीआई अदालत में आत्मसमर्पण किया। अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा।

  • 5 अप्रैल, 2000 : विशेष सीबीआई अदालत में आरोप तय किया।

  • 5 अक्टूबर, 2001 : उच्चतम न्यायालय ने नया राज्य झारखंड बनने के बाद यह मामला वहां स्थानांतरित कर दिया।

  • फरवरी, 2002 : रांची की विशेष सीबीआई अदालत में सुनवाई शुरू हुई।

  • 13 अगस्त, 2013 : उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई कर रही निचली अदालत के न्यायाधीश के स्थानांतरण की लालू प्रसाद की मांग खारिज की।

  • 17 सितंबर, 2013 : विशेष सीबीआई अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

    30 सितंबर, 2013 : बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों- लालू प्रसाद और जगन्नाथ मिश्र तथा 45 अन्य को सीबीआई न्यायाधीश प्रवास कुमार सिंह ने दोषी ठहराया।

  • 3 अक्टूबर, 2013 : सीबीआई अदालत ने लालू यादव को पांच साल के कारावास की सजा सुनाई, साथ ही उन पर 25 लाख रुपए का जुर्माना भी किया है। लालू यादव को रांची की बिरसा मुंडा जेल में बंद किया गया था।

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