नवरात्र के छठे दिन, मनसा देवी में लगे मेले का Live दर्शन

Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Sep, 2017 08:04 AM

live view of the fair organized in mansa devi

आज नवरात्र के छठे दिन देवी कात्यायनी का पूजन होगा। इस शुभ दिन पंजाब केसरी की टीम आपको दर्शन करवाएगी मां मनसा देवी मंदिर के। शारदीय नवरात्राें के चलते मां के इस धाम में लाखों की

आज नवरात्र के छठे दिन देवी कात्यायनी का पूजन होगा। इस शुभ दिन पंजाब केसरी की टीम आपको दर्शन करवाएगी मां मनसा देवी मंदिर के। शारदीय नवरात्राें के चलते मां के इस धाम में लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। माता मनसा देवी से मांगी गई हर मुराद पूरी हाेती है। मनसा देवी जिला पंचकूला में ऐतिहासिक नगर मनीमाजरा के निकट शिवालिक पर्वत मालाओं की गोद में सिन्धुवन के अतिंम छोर पर प्राकृतिक छटाओं से ढका हुआ एकदम मनोरम एवं शांत वातावरण में स्थित है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा देवी पड़ा। इनके पति जगत्कारु तथा पुत्र आस्तिक जी हैं। 


मंदिर की कथा
मान्यता है कि जब माता पार्वती अपने पिता हिमालय के राजा दक्ष के घर अश्वमेध यज्ञ में बिना बुलाए चली गई, तो किसी ने उनका सत्कार नहीं किया और यज्ञ में शिवजी का भाग भी नहीं निकाला, तो आत्म सम्मान के लिए मां ने अपने आपको यज्ञ की अग्नि में होम कर दिया। उस समय भाेलेनाथ ने क्राेधित हाेकर तांड़व नृत्य करते हुए पूरे विशव का भ्रमण करने लगे। सभी देवताआें काे चिंता हाेने लगी। तभी भगवान विष्णु ने  
अपने सुदर्शन चर्क लक्ष्यभेद कर सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया। जहां पर भी यह खंड़ गिरे वहीं शक्तिपीठों की स्थापना हाे गई। पंचकूला शिवालिक गिरिमालाओं पर देवी के मस्तिष्क का अग्र भाग गिरने से मनसा देवी शक्तिपीठ देश के लाखों भक्तों के लिए पूजा स्थल बन गया। 


मंदिर का इतिहास
मंदिर का इतिहास बड़ा ही प्रभावशाली है। माता मनसा देवी मंदिर में चैत्र और आश्विन मास के नवरात्रों में मेला लगता है। जिसके चलते यहां लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं। यहां लोग माता से अपनी मनोकामनाएं पुरी करने के लिए आशिर्वाद लेते हैं। माना जाता है कि मां से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। 


पौने दो सौ साल पहले राजा ने बनवाया था मंदिर
माता मनसा देवी का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि अन्य सिद्ध शक्तिपीठों का। माता मनसा देवी के सिद्ध शक्तिपीठ पर बने मदिंर का निर्माण मनीमाजरा के राजा गोपाल सिंह ने अपनी मनोकामना पूरी होने पर आज से लगभग पौने दो सौ साल पहले चार साल में अपनी देखरेख में सन‌् 1815 में पूर्ण करवाया था। मुख्य मदिंर में माता की मूर्ति स्थापित है। मूर्ति के आगे तीन पिंडियां हैं, जिन्हें मां का रूप ही माना जाता है। ये तीनों पिंडियां महालक्ष्मी, मनसा देवी तथा सरस्वती देवी के नाम से जानी जाती हैं। मंदिर की परिक्रमा पर गणेश, हनुमान, द्वारपाल, वैष्णवी देवी, भैरव की मूर्तियां एवं शिवलिंग स्थापित हैं। हरियाणा सरकार ने मनसा देवी परिसर को 9 सितम्बर 1991 को माता मनसा देवी पूजा स्थल बोर्ड का गठन करके इसे अपने हाथ में ले लिया था।


मंदिर तक आती थी 3 किमी लम्बी गुफा
कहा जाता है कि जिस जगह पर आज मां मनसा देवी का मंदिर है, यहां पर सती माता के मस्तक का आगे का हिस्सा गिरा था। मनसा देवी का मंदिर पहले मां सती के मंदिर के नाम से जाना जाता था। मान्यता है कि मनीमाजरा के राजा गोपालदास ने अपने किले से मंदिर तक एक गुफा बनाई हुई थी, जो लगभग 3 किलोमीटर लंबी है।
वे रोज इसी गुफा से मां सती के दर्शन के लिए अपनी रानी के साथ जाते थे। जब तक राजा दर्शन नहीं नहीं करते थे, तब तक मंदिर के कपाट नहीं खुलते थे। 

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