मोदी कैबिनेट में अगला रेलमंत्री होगा बिहार से ! जानिए क्यों बन रहे समीकरण

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Aug, 2017 01:14 AM

ministry of railways can go to bihar quota in modi cabinet

इस बार मोदी सरकार का कैबिनेट विस्तार तीसरा और शायद आखिरी विस्तार होगा

नई दिल्लीः इस बार मोदी सरकार का कैबिनेट विस्तार तीसरा और शायद आखिरी विस्तार होगा। इस महीने के अंत या आने वाले महीने के पहले हफ्ते तक हर हालत में नए चेहरों को इन और पुराने चेहरों को आउट कर दिया जाएगा। एेसे में पीएम मोदी और पार्टी के अाला नेता मिशन 360 को ध्यान में रखकर ही मंत्री पद और मंत्रालय थमाएगें। हालांकि अभी तक तो रक्षा और शहरी जैसे प्रमुख मंत्रालयों खाली थे। अब प्रभु की लीला के बाद रेलवे भी प्रॉयोयटी में शामिल हो चुका है। इन परिस्थतियों में कयासों की होहल्ला भी शुरू हो चुकी है। एक तरफ पार्टी के ही वरिष्ठ नेता और सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी को आगे किया जा रहा तो दूसरी तरफ 4 साल के अंतराल के बाद एनडीए में शामिल हुए जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) खेमे की भी सुगबुगाह सुनाई दे रही है। वजह भी कई माइनों में वाजिब दिखाई दे रही है। PunjabKesariरेल मंत्रालय में बिहार का खासा दबदबा 
जानकारी के लिए बता दें कि रेलवे मंत्रालय में बिहार कोटे के मंत्रियों की सबसे ज्यादा आमद रही है। एनडीए सरकार में रेल मंत्री रहे नीतीश कुमार तक आधा दर्जन से बिहार के नेता इस मंत्रालय का प्रभार संभाल चुके हैं। बाबू जगजीवन राम को देश के पहले उप प्रधानमंत्री के अलावा दूसरे रेलमंत्री होने का गौरव प्राप्त है। वे पांच साल तक 1956 से1962 तक मंत्री रहे। उनके बाद राम सुभग सिंह फरवरी से नवंबर 1969 तक रेलमंत्री रहे। ललित नारायण मिश्र के पास 1973 से 1975 तक मंत्रलाय का प्रभार रहा।  केदार पांडे ने 1980 से 82 तक रेल मंत्रालय संभाला। 1989 से 90 तक वीवी सिंह सरकार में जार्ज फर्नाडीज ने मंत्रालय संभाला। एनडीए सरकार में नीतीश कुमार उनके बाद लालू प्रसाद ने भी 2004 से 09 तक यूपीए सरकार में रेल मंत्रालय का प्रभार बिहार कोटे से संभाला।    
PunjabKesariजेडीयू के आने से फिर बन रहे समीकरण
रेलमंत्री सुरेश प्रभु के इस्तीफे की पेशकश के बाद उनका जाना लगभग तय हो चुका है। एेसे में रेल मंत्रालय के नए मुखिया की खोजबीन भी शुरू हो चुकी है। इसी बीच मंत्रालय के बंटवारे से पहले जेडीयू के मुखिया और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पीएम मोदी से मुलाकात कयासोंं को और बल दे रही है। दूसरा मुख्य कारण नीतीश खुद हैं। वे एनडीए की सरकार में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में 2001 से 2004 रेलमंत्री का प्रभार संभाल चुके हैं। राजनीतिक जानकार भी इससे इस्तेफाक रखते हैं। उनका भी कहना है कि अगर नीतीश की पार्टी के कोटे में मंत्रालय आता तो वे एेसे मंत्रालय का प्रभार चाहेंगे जिसपर उनका पहले से दबदबा रहा हो। 
PunjabKesariकिंग मेकर तो कभी सपोर्टर बना बिहार 
जब 1989 में वीपी सिंह की सरकार बनी तो पहले गैर दली रेलमंत्री के रूप में जार्ज फर्नाडीज ने पदभार संभाला। हालांकि उस दौरान मुद्दा सहयोग का था। लेकिन उनके बाद सहयोग और किंग मेकर के रूप में बिहार के किसी न किसी दल का कोई न कोई नेता मंत्रालय संभाल रहा है। करीब एक दशक बाद कई दलों को संगठित करके अटल बिहारी वाजपेई ने एनडीए की सरकार बनाई तो नीतीश कुमार बिहार से दूसरे रेल मंत्री बनी। करीब 22 दलों को मिलाकर सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया। इस सरकार में हरेक दल सरकार के लिए किंगमेकर ही था। फिर जब यूपीए के रूप में कांग्रेस की सरकार आई तो राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया लालू प्रसाद यादव ने पूरे पांच साल के लिए रेल मंत्रालय संभाला। 
PunjabKesari2019 के समीकरण में भी बैठ रहा फिट 
2014 के आम चुनावों में मोदी लहर के चलते बिहार में बीजेपी के वो कारनाम किया, जिसकी खुद पार्टी के नेताओं को भी उम्मीद नहीं थी। 2009 के आम चुनावों में बिहार में पार्टी को 12 सीटें मिली थी लेकिन 2014 में 22 पर पहुंच गई। सालभर बाद जब विधानसभा चुनावों की बारी आई तो मोदी का जादू किसी काम नहीं आया। जहां पार्टी ने 2010 के विधानसभा में चुनावों में 91 सीटें हासिल की थी। 2015 के परिणामों में पार्टी को 38 सीटों के घाटे के साथ 53 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। एेसे में मोदी और शाह के मिशन 360 में बिहार भी बहुत अहमियत रखता है। पार्टी नेता नहीं चाहेंगे कि जो स्थिति उनकी विधानसभा चुनावों में हुई वही आम चुनावों में हो। इसको ही ध्यान में पार्टी थिंक टेंक ने जेडीयू को चार साल बाद एनडीए के बेड़े में दोबारा शामिल किया।  

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