मिशन 2019: कैश, क्राइम व कास्ट के इस्तेमाल से ऐसे होगी वोटबैंक पर डकैती

Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Mar, 2018 05:19 AM

mission 2019 use of cash crime and caste will be robbery on the vote bank

क्राइम, कास्ट और कैश के इस्तेमाल का समय धीरे धीरे नजदीक आ रहा है। हालांकि अबकी बार शायद इनका इस्तेमाल पिछले सभी रिकार्ड तोड़ देगा। मिशन 2019 को फतह करने के लिए हर दल को इनका सहारा लेना ही पड़ेगा। शायद आपको जानकार हैरानी हो कि वर्ष 2014 में हुए...

नेशनल डेस्क (आशीष पाण्डेय): 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए क्राइम, कास्ट और कैश का इस्तेमाल पिछले सभी रिकार्ड तोड़ देगा। मिशन 2019 को फतह करने के लिए हर दल को इनका सहारा लेना ही पड़ेगा। शायद आपको जानकार हैरानी हो कि वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में आधा दर्जन पा​र्टियों ने मिलकर अपने प्रचार में ही 1330 करोड़ रुपये स्वाहा कर दिए थे। हालांकि यह आंकड़ा सरकारी है, चर्चा तो रही कि करीब 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक ही खर्च हुए थे। कैश से बात नहीं बनी तो धनबल के सहारे सियासत के गलिआरे में जातिवाद पर वोटबैंक को ध्रुवीकरण करने का खड़यंत्र रचा जाता है। राम मंदिर, लिंगायत, पा​टीदार आंदोलन, दलित पिछड़ों की मांग जैसी मांग इसी (कास्ट) राजनीति का अंग हैं। कैश व कास्ट से सत्ता मिलने में रूकावट बनी रहती है क्राइम जैसे पुराने लेकिन असरदार हथियार को प्रयोग करने से भी गुरेज नहीं किया जाता है। क्राइम का सहारा लिया जाता है। कुछ दिनो पहले हुए भागलपुर कांड, गोधरा कांड, बाबरी विध्वंस, यूपी में दंगों की लंबी फेहरिस्त इसका जीता जागता उदाहरण है। मिशन 2019 को पूरा करने के लिए राननीतिक दल एक बार फिर कैश, कास्ट का क्राइम का इसी प्रकार दूरूपयोग करने वाले हैं।
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कैश- 2019 में टूट जाएंगे खर्च के रिकार्ड
राजनीतिक विश्लेषणों का मानना है कि वर्ष 2014 में सबसे अधिक खर्च बीजेपी ने अपनी ब्राडिंग करने के लिए की थी। जबकि इस बार चुनाव जीतना उसके व मुख्यरुप से आरएसएस के लिए नाक का सवाल बन गया है। बीजेपी ने आॅन रिकार्ड 714 करोड़ रुपये साल 2014 के चुनाव में खर्च किए थे। जबकि अबकी बार यह खर्च दोगूना होने का अनुमान है। इसके पीछे का कारण बहुत ही तार्किक है। वो यह है कि राष्ट्रीय दलों की संपत्ति में पिछले 10 सालों में कई सौ गुना बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। इसमें बीजेपी का स्थान पहला है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की एक रिपोर्ट में 2004-05 से 2015-16 के बीच बीजेपी की संपत्ति में 627 प्रतिशत की बढोत्तरी दर्ज की गई है। उसकी संपत्ति 122.93 करोड़ से 893 करोड़ रुपये पहुंच गई है। इसी दौरान कांग्रेस की संपत्ति 167 करोड़ से 758 करोड़ रुपए पहुंच गई है। बीजेपी, कांग्रेस, एनसीपी, बीएसपी, सीपीआई, सीपीआई-एम और तृणमूल कांग्रेस की संपत्ति पिछले 10 सालों में करीब 530 प्रतिशत की बढ़ी है। इतना ही नहीं इन राष्ट्रीय पार्टियों की संपत्ति में भी तेजी से इजाफा हुआ है और पिछले 10 साल में उनकी संपत्ति पांच गुना से ज्यादा बढ़ी है। बीते 10 सालों में सात बड़े राष्ट्रीय दलों की कुल संपत्ति 530 फीसदी बढ़ी है। 2004-05 में इन दलों की औसत संपत्ति 61.62 करोड़ थी, जो 2015-16 में 388.45 करोड़ रुपये हो गई। सबसे ज्यादा इजाफा बीजेपी की संपत्ति में हुआ।
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कास्ट- मंदिर पालिटिक्स और जातिवाद
बीजेपी की इस मुद्दे का बीज बोया। अब वही बीज पेड़ बन गया है। राम मंदिर, बाबरी मस्जिद और हिंदूत्व के खाद उसी पेड़ को जीवन दान मिलता रहता है। बीजेपी इस पालिटिक्स की सफलता को देखकर कांग्रेस के युवराज भी इसे फॉलो करने लगे हैं। हाल ही में हुए गुजरात चुनाव राहुल गांधी ने कई मंदिर के चौखट चुमने से गुरेज नहीं किया। पाटीदार समुदाय को लुभाकर वो बहुत हद तक उन्हें अपनी ओर लाने में सफल होते देखे गए। बीजेपी व कांग्रेस ही नहीं, यूपी में सपा-बसपा, कर्नाटक में लिंगायत बनाम वोक्कालिगा व अदर्स, बिहार में यादव बनाम भूमिहार जैसे जातिगत मुद्दो को हवा देकर वोटबैंक हासिल करने का खेल हमेशा से चलता रहा है।
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क्राइम- दंगों से होती वोटबैंक की राजनीति
पश्चिमी यूपी में दंगो की श्रृंखला, तिरंगा यात्रा पर हिंसा, सहारनपुर में दंगा, महाराष्ट्र के पुणे जिले में भीमा कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिरह के दिन हुई हिंसा, पश्चिम बंगाल में नादिया—मालदा—बसीरहाट में हुए दंगे, गुजरात में गोधरा व पाटिदार आंदोलन की हिंसा, कुछ दिनों पहले बिहार के भागलपुर में हुई हिंसा। इस बात के उदाहरण के हैं कि राजनीति में क्राइम का बड़ योगदान है। एक और उदाहरण यह भी है कि चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन ऑफ डमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) की एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 33 प्रतिशत नेता दागी छवि के हैं। 1581 सांसद और विधायकों के खिलाफ आपराधिक केस चल रहे हैं, जिनमें से 993 के खिलाफ गंभीर श्रेणी के मामले हैं। 4852 सांसद और विधायकों हलफनामों के मुताबिक 993 के खिलाफ गंभीर श्रेणी में मामले दर्ज हैं। चुनाव आयोग को दिए 4852 सांसद और विधायकों के इन हलफनामों के अनुसार 87 नेताओं पर हत्या से संबंधित मामले जारी हैं। देश में 48 विधायकों और तीन सांसदों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के केस दर्ज हैं। इनमें दुष्कर्म और अपहरण जैसे केस भी हैं।

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