कश्मीर पर केंद्र की पहल, वाजपेयी के फॉर्मूले को फॉलो करने की कोशिश में मोदी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Oct, 2017 12:40 PM

modi in an attempt to follow vajpayee s formula

जम्मू कश्मीर में शांति के लिए नई पहल के तहत केंद्र सरकार ने आज राज्य में सभी पक्षों के साथ ‘सतत संवाद’ के लिए पूर्व आईबी प्रमुख दिनेश्वर शर्मा को अपना विशेष प्रतिनिधि नियुक्त किया। आनन फानन में यहां बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए...

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में शांति के लिए नई पहल के तहत केंद्र सरकार ने राज्य में सभी पक्षों के साथ ‘सतत संवाद’ के लिए पूर्व आईबी प्रमुख दिनेश्वर शर्मा को अपना विशेष प्रतिनिधि नियुक्त किया। आनन-फानन में यहां बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि गुप्तचर ब्यूरो (आईबी) के पूर्व निदेशक शर्मा कैबिनेट सचिव का दर्जा रखेंगे और उन्हें यह निर्णय लेने की पूरी स्वतंत्रता होगी वह किन से बात करें। राजनाथ से पूछा गया था कि क्या शर्मा हुर्रियत कांफ्रेंस के साथ बातचीत करेंगे।

कौन हैं दिनेश्वर शर्मा
शर्मा भारतीय पुलिस सेवा के 1979 बैच के अवकाश प्राप्त अधिकारी हैं। वह 1990 के दशक में जम्मू-कश्मीर में सेवाएं दे चुके हैं और पिछले साल सेवानिवृत्त हुए। शर्मा ने दिसंबर 2014 से 2016 के बीच गुप्तचर ब्यूरो के निदेशक के रूप में अपनी सेवाएं दीं। वह राज्य की जनता, खासकर युवाओं की आकांक्षाओं को समझने के लिए सतत संवाद और वार्तालाप शुरू करेंगे और उन आकांक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करेंगे। राजनाथ ने कहा कि शर्मा जनता और संगठनों के सभी पक्षों से बातचीत करेंगे और उनके लिए कोई समयसीमा निर्धारित नहीं की गई है क्योंकि यह विषय संवेदनशील है।
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कश्मीर पर यह था वाजपेयी का फॉर्मूला
कश्मीर में शांति स्थापित करने के लिए मोदी सरकार ने ही पहल नहीं की है, इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह ने भी कश्मीर में शांति कायम करने के लिए कई प्रयास किए। वाजपेयी ने कश्मीर पर फॉर्मूला तैयार किया था जिसे अब तक कारगर माना जाता है। 18 अप्रैल 2003 को कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में बतौर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि  'अभी तक जो खेल होता रहा है मौत का और खून का, वो बंद होना चाहिए। लड़ाई से समस्या हल नहीं होती। आपके जो मसले हैं, वे बातचीत से हल हों। बंदूक से मसले हल नहीं होते। बंदूक से आदमी को मारा जा सकता है उसकी भूख नहीं मिटती'। वाजपेयी ने कश्मीर में शांति के लिए सभी पक्षों के नुमाइंदों की पैरवी की थी। उन्होंने घाटी में अमन के लिए इंसानियत, जम्‍हूरियत और कश्‍मीरियत का नारा दिया था। वाजपेयी के इस प्रयास का कश्मीर में अलगाववादियों के चरमपंथी धड़े के नेता सैयद अली शाह गिलानी और नरमपंथी धड़े के नेता मीरवाइज उमर फारुक ने भी समर्थन किया था। वाजपेयी के शासन में अमन की यह रेल सरपट दौड़ रही थी। और वाजपेयी के ही फॉर्मूले का नतीजा था कि कारगिल हमले के बाद भी बातचीत नहीं रूकी। हालांकि यह कोशिश ज्यादा नहीं चल पाई और इसके कोई ठोस नतीजे भी नहीं निकले।
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मनमोहन सरकार ने शुरू की गोलमेज सम्मेलन
मनमोहन सरकार ने भी कश्मीर में शांति बहाली पर प्रयास किए। उसने कश्मीर में तीन गोलमेज सम्मेलन किए, ताकि कश्मीर से जुड़े सभी दल मिल बैठकर कोई कारगर तरीका निकाल सकें लेकिन अलगाववादियों ने गोलमेज सम्मेलनों का बहिष्कार किया और नतीजे शून्य रहे।
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मोदी सरकार का रवैया अलगाववादियों के प्रति शुरू से ही सख्त रहा। 2014 को इस्लामाबाद में विदेश सचिव स्तर की वार्ता से ठीक पहले अलगाववादी नेताओं के पाक उच्चायुक्त अब्दुल बासित से मिलने के चलते मोदी सरकार ने वार्ता को ही रद्द कर दिया था। कई बड़े अलगाववादी नेताओं को टेरर फंडिंग के आरोप में जेल डाला गया। हालांकि अब मोदी सरकार कश्मीर में शांति बहाली के लिए आक्रामक रवैये से साथ-साथ नरम रुख अपनाने को भी तैयार है।

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