आतंकियों के गढ़ में इंसानियत की मिसाल, मुस्लिमों ने किया पंडित महिला अंतिम संस्कार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 10 Mar, 2018 02:43 PM

muslims perform last rites of hindu lady

दक्षिण कश्मीर में पुलवामा के त्राल कस्बे जिसे आतंकियों का गढ़ माना जाता हैं में कश्मीरी मुसलमानों ने दिल छू लेने वाली कश्मीरियत की मिसाल कायम करते एक कश्मीरी पंडित का अंतिम संस्कार किया।

श्रीनगर : दक्षिण कश्मीर में पुलवामा के त्राल कस्बे जिसे आतंकियों का गढ़ माना जाता हैं में कश्मीरी मुसलमानों ने दिल छू लेने वाली कश्मीरियत की मिसाल कायम करते एक कश्मीरी पंडित का अंतिम संस्कार किया। जानकारी के अनुसार त्राल कस्बे के नूरपुरा इलाके में पंडित महिला के अंतिम संस्कार में शामिल होकर कश्मीरी मुसलमानों ने अपने पारंपरिक मूल्य को जीवित रखा। कमलावती (80) कुछ देर से बीमार थी जिसके आज तडक़े मौत हो गई। जैसे ही उसकी मौत की खबर इलाके में फैली तो पास के इलाकों से मुसलमानों ने उसके घर का रुख किया और शोक संतप्त परिवार के साथ सहानुभूति व्यक्त की। 


पंडित महिला के अंतिम संस्कार में सैंकडो लोगों ने हिस्सा लिया और पीड़ित परिवार को हर संभव मदद प्रदान की। सद्भाव और भाईचारे की मिसाल को कायम रखने के लिए पंडितों ने मुसलमानों के प्रति आभार व्यक्त किया। कश्मीरी पंडितों अथवा परिजनों की उपस्थिति के बगैर स्थानीय मुसलमानों ने मृतक के अंतिम संस्कार का बंदोबस्त किया और किसी अपने की मौत की तरह दुख प्रकट किया।

मिलजुल कर रहते हैं पड़ोसी
स्थानीय नागरिक मोहम्मद अली कहा कि हमें लगता है जैसे हमने किसी अपने को खो दिया है। वह बिल्कुल मेरी बड़ी बहन की तरह थी और मैं कोई भी कदम उठाने से पहले उनसे सलाह लिया करता था। एक अन्य स्थानीय नागरिक गुलाम हसन ने कहा कि धर्म के ख्याल के बगैर अपने पड़ोसियों की सहायता करना हमारा कर्तव्य है, जिसे हमने बखूबी पूरा किया। हमने एक प्यारा इंसान खो दिया, जो हमेशा बुरे से बुरे और अच्छे से अच्छे वक्त में हमारे साथ खड़ा रहा था।  अंतिम संस्कार के लिए उनके पड़ोसियों ने लकड़ी और चिता का इंतजाम किया। स्थानीय नागरिकों ने बताया कि घाटी नहीं छोडऩे के निर्णय के लिए कमला वती के मन में कोई पछतावा नहीं था।


अंतिम संस्कार में शामिल एक पंडित ने कहा कि यह असली कश्मीर है। यह हमारी संस्कृति है और हम भाईचारे के साथ रहते हैं। हम बंटवारे की राजनीति में विश्वास नहीं रखते।
90 के दशक में जब आातंकवाद की वजह से लाखों कश्मीरी पंडित वादी से पलायन कर तब कमला वती ने यहीं बसे रहने का फैसला किया। कमला वती ने कभी अपना पैतृक स्थान नहीं छोड़ा। वह कहती थे कि वह मुसलमान दोस्तों के साथ पले-बढ़े और उन्हीं के बीच मरना पसंद करेंगे। 
 

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