इनका 'सरनेम' ही गली मोहल्लों और एरिया का पिनकोड, नाम बताओ पहुंच जाएंगे पते पर

Edited By Punjab Kesari,Updated: 31 Aug, 2017 06:08 PM

names of priests in ujjain that arrive by name are the right place

लोगों को केवल रिक्शा या टैक्सी वाले को ये बताना है कि हाथीवाला या त्रिशूलवाला के पास जाना है। वो सीधे उन्हें सही मुकाम पर पहुंचा देगा

उज्जैन: आपको किसी नई जगह जाना हो तो एरिया के गली मोहल्लों के नाम सहित तमाम लेंडमार्क को नोट करके रखते होंगे। एेसे में अगर हम कहें देश में एक जगह एेसी भी है जहां पहुंचकर आपको अपने गंतव्य तक जाने के लिए केवल व्यक्ति का सरनेम ही बताना हो तो शायद आपको कुछ अटपटा लगे लेकिन ये हकीकत है। महाकाल की नगरी यानी उज्जैन में तीर्थ और कर्मकांड के लिए आने वाले लोगों को एेसी परेशानी का सामना नहीं करना पढ़ता है। लोगों को केवल रिक्शा या टैक्सी वाले को ये बताना है कि हाथीवाला या त्रिशूलवाला के पास जाना है। वो सीधे उन्हें सही मुकाम पर पहुंचा देगा।

दरअसल, काशी और हरिद्वार की तरह यहां के पंडे-पुरोहितों की यह अनूठी पहचान पीढ़ियों से चली आ रही है। धर्मनगरी अवंतिका के तीर्थपुरोहितों की देश-दुनिया में इन्हीं ट्रेडमार्क से पहचान है। कर्मकांड कराने के लिए पहली बार आने वाले यजमान भी पुरोहितों तक इन्हीं नामों के सहारे तत्काल पहुंच जाते हैं।

40 से ज्यादा पुरोहित परिवार
हाथीवाला, डंडावाला, त्रिशूलवाला, नारियलवाला, दूधवाला, दो लाल भैरववाला, मोटरवाला, बंदूकवाला, लोटावाला, टोपीवाला, तलवारवाला, लाल घोड़ेवाला, रिद्धि-सिद्धि वाला, अंगूठीवाला, मालावाला, घड़ीवाला जैसे 40 से अधिक उपनाम पुरोहित परिवारों के हैं।

आमवाला
पं.राजेश त्रिवेदी के मुताबिक, पांच पीढ़ी पूर्व हमारे परिवार में आम के बगीचे हुआ करते थे। इसलिए परिवार की पहचान आमवाला के रूप में बन गई। देशभर से आने वाले यजमान उन्हें इसी उपनाम से पहचानते हैं।

नाहरवाला
पं. विजय शास्त्री नाहरवाला ने बताया कि शिप्रा तट पर उनके परिवार का मंदिर है। इसमें माता शिप्रा शेर (नाहर) पर विराजित हैं। पीढ़ियों से यह मंदिर है, इसलिए उनकी पहचान नाहरवाला पंडा के रूप में होती है।

डब्बावाला
पं. दिलीप गुरु ने बताया कि पुरोहिताई के काम में उनके परिवार की 12 वीं पीढ़ी लगी है। सिंधिया स्टेट के समय छोटी रेल लाइन पर चलने वाली गाड़ी में सबसे आगे उनके परिवार का डिब्बा लगा होता था। उसमें यजमान बैठकर आते-जाते थे। इस रेल मार्ग पर पड़ने वाले गांव में नाट्य परंपरा माच के उपयोग में आने वाले वस्त्र और आभूषण भी इसी डिब्बे में जाते थे। इसलिए उनके परिवार की पहचान डब्बावाला के रूप में है।

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