अस्पतालों हो रहा धोखा, महिलाओं को लेकर सामने आई चौंकाने वाली रिपोर्ट

Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Jan, 2018 01:56 PM

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सिजेरियन डिलीवरी में दोगुनी बढ़ोतरी पाई गई है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएचएफएस) की तीसरी रिपोर्ट (2005-06) में यह आंकड़ा जहां 8.5 प्रतिशत था वहीं, सर्वे की चौथी रिपोर्ट (2015-16) में सिजेरियन (ऑपरेशन) का दर 17.2 प्रतिशत पहुंच गया है।

नई दिल्ली: सिजेरियन डिलीवरी में दोगुनी बढ़ोतरी पाई गई है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएचएफएस) की तीसरी रिपोर्ट (2005-06) में यह आंकड़ा जहां 8.5 प्रतिशत था वहीं, सर्वे की चौथी रिपोर्ट (2015-16) में सिजेरियन (ऑपरेशन) का दर 17.2 प्रतिशत पहुंच गया है। विशेषज्ञों की माने तो यह वृद्धि करीब एक दशक में दोगुनी और चौंकाने वाली साबित हो रही है। देशभर के कुछ अस्पतालों पर मरीजों के साथ धोखाधड़ी, लापरवाही, जरूरत से ज्यादा बिल और रुपए ऐंठने के अरोप लगते रहे हैं। ऐसे में एक दशक के दौरान सिजेरियन डिलीवरी दर में दोगुनी बढ़ोतरी कई सवाल पैदा करती है। 

डब्ल्यूएचओ के मानक से आंकड़ा निकला आगे   
सिजेरियन डिलीवरी का आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक से कहीं आगे निकल गया है। डब्ल्यूएचओ ने अप्रैल 2015 में बाकायदा बयान जारी कर कहा था कि आबादी के हिसाब से सिजेरियन डिलीवरी की दर अगर 10 प्रतिशत से ज्यादा पाई जाती है तो यह मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने की पहल से संबंधित हो ही नहीं सकता। नेशनल सैंपल सर्वे (2014) के मुताबिक देशभर में 72 प्रतिशत ग्रामीण आबादी और 79 प्रतिशत आबादी निजी अस्पतालों में इलाज कराते हैं और सरकारी अस्पताल के मुकाबले उन्हें इलाज पर चार गुना ज्यादा खर्च करना पड़ता है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस आंकड़े को गंभीरता से लेते हुए राज्यों को जरूरी दिशा-निर्देश भी जारी किए थे। 

क्या हो सकता है कारण? 
-खास तिथि पर बच्चे के जन्म की चाहत 
-अस्पतालों में नॉर्मल डिलीवरी से ज्यादा सिजेरियन में रुचि
-गर्भावस्था के दौरान शहरी महिलाओं में शारीरिक सक्रियता की कमी
-शहरी महिलाओं में दर्द सहने की क्षमता में कमी
-नॉर्मल डिलीवरी के मुकाबले सिजेरियन ज्यादा सहुलियत वाली प्रक्रिया लगती है
-महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान रहने वाला रिस्क फैक्टर 

कैसे लगेगी रोक  
-देश में सिजेरियन डिलीवरी को लेकर कोई सख्त कानून नहीं है। 
-डब्ल्यूएचओ के निर्धारित सीमा से ज्यादा होने पर संबंधित अस्पतालों की मॉनिटरिंग 
-दोषियों के प्रति कार्रवाई की इच्छाशक्ति
-जागरुकता अभियान 

जानकारों का मत 
 ऐसा पाया गया है कि लोग भी सिजेरियन को ज्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं क्योंकि यह प्रक्रिया नॉर्मल के मुकाबले कम जोखिम भरा और आसान होता है।  
- डॉ. जुगल किशोर, निदेशक सामुदायिक 
मेडिसिन विभाग, सफदरजंग अस्पताल 

 देश के अलग-अलग हिस्सों में सामान्य रूप से और ऑपरेशन के जरिए पैदा होने वाले बच्चों का अंतर अस्पताल में गर्भावस्था में पहुंची मां पर काफी हद तक निर्भर करता है। मां अस्पताल में देरी से पहुंचती है तो फिर चिकित्सकों के पास ऑपरेशन का ही पहला विकल्प रह जाता है।  
- डॉ. केके अग्रवाल, पूर्व अध्यक्ष, इंडियन 
मेडिकल ऐसोसिएशन
 

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