संघमुक्त करते-करते संघयुक्त हो गए नीतीश कुमार!

Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Oct, 2017 07:38 PM

nitish kumar became united by the rss

बिहार में कभी नीतीश कुमार ने एक झटके में बीजेपी से रिश्ता तोड़कर संघमुक्त भारत का नारा बुलंद किया था। लेकिन अचानक बदले हुए सियासी घटनाक्रम में नीतीश कुमार ने आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव से सारे सियासी रिश्ते खत्म कर एक बार फिर बीजेपी के पाले में आ...

पटना (विकास कुमार): बिहार में कभी नीतीश कुमार ने एक झटके में बीजेपी से रिश्ता तोड़कर संघमुक्त भारत का नारा बुलंद किया था। लेकिन अचानक बदले हुए सियासी घटनाक्रम में नीतीश कुमार ने आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव से सारे सियासी रिश्ते खत्म कर एक बार फिर बीजेपी के पाले में आ गिरे थे। तब से आरजेडी और कांग्रेस के नेता ताल ठोक कर नीतीश कुमार को कोसने में जुटे हैं। एक तरफ लालू यादव नीतीश कुमार को पलटूराम की उपाधि दे रहे हैं तो दूसरी तरफ अपने विवादित बयानों के लिए मशहूर हो चुके रघुवंश बाबू नीतीश कुमार को झांसाराम करार दे रहे हैं।
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लेकिन ताज्जुब होता है कि इन आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए नीतीश कुमार आखिर क्यों उस कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए तैयार हो गए जिसमें खुद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी हिस्सा लिया। क्या नीतीश संघमुक्त भारत के अपने नारे को भूल गए या फिर उन्होंने बीजेपी के साथ रिश्तों की नई इबारत लिखने का मन बना लिया है। इन सवालों पर विचार करना बेहद जरुरी है क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में जो सियासी उठापटक हुई उसका असर पूरे देश पर पड़ा है। 
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क्या संघ के करीब आना चाहते हैं नीतीश कुमार? 
नरेंद्र मोदी के रंग में रंगी बीजेपी से किनारा करने वाले नीतीश कुमार ने पहले तो संघ को जमकर कोसा था। यहां तक कि संघमुक्त भारत बनाने के लिए तमाम विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने का नारा भी नीतीश कुमार ने ही दिया था। फिर आखिर ऐसा क्या हो गया कि नीतीश अचानक ना केवल बीजेपी के साथ आ गए। बल्कि ये संदेश देने की कोशिश भी करने लगे कि उन्हें संघ से एलर्जी नहीं है। जब से विश्व धर्म सम्मेलन में भागवत और नीतीश ने भागीदारी की है तब से ऐसे सवालों की बाढ़ आ गई है। ऐसे में जरूरी है कि इनके सही जवाब तलाशने की कोशिश की जाए। दरअसल नीतीश कुमार ये मान चुके हैं कि 2019 में कांग्रेस मजबूत होकर नहीं उभरेगी ऐसे में बीजेपी के साथ तालमेल बनाना उनके लिए फायदेमंद हो सकता है। नीतीश कुमार दजानते हैं कि अगर बीजेपी से तालमेल बनाना है तो मोहन भागवत से बैर रखकर कोई ठोस फायदा मिल नहीं सकता है। इसलिए भी नीतीश कुमार ने भागवत के साथ विश्व धर्म सम्मेलन में शामिल होने की हामी भर दी। 

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क्या मोदी-शाह को कोई संदेश देना चाहते हैं नीतीश? 
नीतीश कुमार की छवि दवाब में आए बिना काम करने वाले नेता की रही है। आरजेडी के साथ गठबंधन के दौरान नीतीश कुमार पर लालू परिवार का भारी दवाब रहा था जैसा कि नीतीश कुमार कई बार बोल चुके हैं। लालू जैसे शक्तिशाली नेता के दबाव से पार पाने के लिए ही नीतीश ने अपनी अलग राह बना ली। लेकिन इस बार बीजेपी मोदी और शाह के इशारों पर चलती है। नीतीश बखूबी जानते हैं कि मोदी और शाह का दबाव उनपर भी पड़ सकता है। इसलिए वे इसकी काट खोजने में जुट गए हैं। स्वाभाविक ही है कि अगर संघ प्रमुख मोहन भागवत से नीतीश कुमार का संवाद कायम हो जाए तो बीजेपी उन पर दबाव बनाने की हालत में नहीं रहेगी। यही वजह है कि इस बार नीतीश कुमार ने मोहन भागवत या संघ का विरोध नहीं किया। साफ है कि नीतीश कुमार बड़ी सियासी चाल चल रहे हैं ताकि पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह को ये संदेश दिया जा सके कि जब भी बीजेपी-जेडीयू में विवाद बढ़ेगा तो संघ प्रमुख मोहन भागवत हस्तक्षेप कर सकते हैं। 
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भागवत और नीतीश के संदेश के सियासी मायने? 
विश्व धर्म सम्मेलन में मोहन भागवत और नीतीश कुमार ने सामाजिक परिवर्तन का संदेश दिया। नीतीश ने जहां शराबबंदी के अपने फैसले का गुणगान किया तो बाल विवाह-दहेज प्रथा के खिलाफ जंग छेड़ने का नारा भी दिया। नीतीश कुमार की नजर महिला वोटरों पर है इसलिए दहेज प्रथा जैसी बुराई के खिलाफ आवाज बुलंद कर वे अपनी महिला समर्थक होने की छवि को धार देना चाहते हैं। नीतीश कुमार पहले ही सरकारी नौकरियों में 35फीसदी महिला आरक्षण दे चुके हैं। वहीं शराबबंदी का फैसला भी नीतीश कुमार ने महिलाओं की मांग पर ही लिया था। देखा जाए तो नीतीश कुमार की नजर महिला वोटरों पर है और इसके लिए वे हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। वहीं संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी जातिभेद के खिलाफ बोला ताकि संघ की छवि को बदला जा सके और पिछड़े वोटरों में बीजेपी की पैठ बनाई जा सके। 
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क्या है नीतीश कुमार की रणनीति? 
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहले ही अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को लोकसभा की सभी 40सीटों पर तैयारी करने का संदेश दे दिया है। नीतीश की कोशिश है कि उनकी पार्टी किसी भी तौर पर बीजेपी के सामने कमजोर ना दिखे। ताकि 2019 में ज्यादा से ज्यादा सीटें जेडीयू को मिले और अगर एनडीए के पुल में मन मुताबिक सीटें नहीं मिली तो जेडीयू अकेले भी चुनाव लड़ सकती है। साथ ही नीतीश कुमार बिना कुछ बोले केंद्रीय मंत्रिमंडल में जेडीयू को उसका हक दिलाने की कोशिश भी कर रहे हैं।

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एक पुरानी कहावत है कि सियासी अखाड़े में ना तो कोई स्थायी दुश्मन होता है और ना ही कोई स्थायी दोस्त, स्थायी होते हैं तो अपने फायदे। शायद नीतीश कुमार भी बीजेपी और संघ परिवार के साथ रिश्तों की नई कहानी को बेहद करीने से सजाना चाह रहे हैं। ताकि आने वाले वक्त में उनका पलड़ा भारी रहे और विरोधी चारों खाने चित्त हो जाएं। 

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