Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Jun, 2017 02:46 PM
एक आेर जहां विपक्ष के नेता मिल बैठकर राष्ट्रपति पद के चुनाव पर चर्चा कर रहे हैं वहीं उनमें एक व्यक्ति की गैर मौजूदगी कुछ और ही कहानी कह रही है।
नई दिल्ली: एक आेर जहां विपक्ष के नेता मिल बैठकर राष्ट्रपति पद के चुनाव पर चर्चा कर रहे हैं वहीं उनमें एक व्यक्ति की गैर मौजूदगी कुछ और ही कहानी कह रही है। ये हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जिनका संदेश स्पष्ट है। जदयू अध्यक्ष किसी के इशारे पर नहीं चलते बल्कि वही करते हैं जो उनके मुताबिक उनकी पार्टी के लिए सही है। विपक्ष के कुछ नेताओं ने कल नीतीश से बात की, जिनके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देने के फैसले से कई लोग खफा हैं। हालांकि राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव ने दावा है कि वे विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार को समर्थन देने के लिए नीतीश को मना लेंगे।
जातिगत राजनीति माना जा रहा है कोविंद का समर्थन
मीरा उसी राज्य बिहार से हैं और दलित हैं जहां नीतीश वर्ष 2005 से शासन करते आ रहे हैं। जदयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि वे समय-समय पर एेसे विरोधाभासी फैसले लेते हैं जो उन्हें लगता है कि जनहित में हैं। नीतीश ने भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल होने के लिए पहले गैर-राजग समूह का साथ छोड़ा और फिर वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने राजग का साथ छोड़ उसके खिलाफ महागठबंधन बनाया।
वर्ष 2012 के राष्ट्रपति पद के चुनाव में उन्होंने तत्कालीन गठबंधन सहयोगी राजग को तब हैरत में डाल दिया था जब उन्होंने राजग के उम्मीदवार पीए संगमा के खिलाफ संप्रग के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को समर्थन दिया था। हालांकि कोविंद को समर्थन देने के मामले में, इसकी वजह जातिगत राजनीति मामना जा रहा है। बिहार में महादलित मतदाता बड़ी संख्या में हैं।