मोदी से हमारी व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं: संजय सिंह

Edited By ,Updated: 30 Apr, 2017 11:31 AM

our personal animosity with modi is not sanjay singh

आम आदमी पार्टी 3 साल पहले लोकप्रियता के शिखर पर थी लेकिन पंजाब चुनाव हारने के बाद दिल्ली के निगम चुनाव में भी वह हार गई और विपक्षी दल के रूप में सामने आई।

आम आदमी पार्टी 3 साल पहले लोकप्रियता के शिखर पर थी लेकिन पंजाब चुनाव हारने के बाद दिल्ली के निगम चुनाव में भी वह हार गई और विपक्षी दल के रूप में सामने आई। आखिर क्या हुआ 3 साल के भीतर जो दिल्ली के दिल पर राज करने वाली पार्टी का ऐसा हाल हो गया। इन सभी मुद्दों पर ‘आप’ के वरिष्ठ नेता संजय सिंह ने नवोदय टाइम्स/पंजाब केसरी के कार्यालय में खुलकर चर्चा की।

प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश:

पंजाब व दिल्ली के चुनाव में परिणाम अच्छे नहीं आए, ‘आप’ का क्या होगा?
आम आदमी पार्टी (आप) देश में सबसे तेजी से बढ़ रही पार्टी है। गठन के बाद 4 साल में एक राज्य में 2 बार सरकार बनाई, पंजाब में मुख्य विपक्षी दल है, गोवा में 6.2 प्रतिशत वोट मिले, जो कि राज्य के अंदर मान्यता प्राप्त दल के लिए आवश्यक वोट हैं। 4 सांसद और 48 पार्षद हैं। जो लोग कह रहे हैं कि ‘आप’ डूब गई, इसका अस्तित्व खत्म हो गया, वे मुगालते में हैं। जो निराशा हो रही है उसका कारण ज्यादा अपेक्षाएं हैं। जो कमियां रहीं उनकी समीक्षा और आत्मङ्क्षचतन किया जा रहा है। इसे दूर करके आगे-आगे बढऩा ‘आप’ के लिए ज्यादा अच्छी रणनीति होगी, बजाय इसके कि हम सार्वजनिक तौर पर टीका-टिप्पणी या आलोचनाओं में फंसें।


पंजाब और दिल्ली में मूल वजहें क्या रहीं जिनको ‘आप’ ने गंभीरता से नहीं लिया?
उत्तर प्रदेश में भाजपा बहुमत की सरकार बनाती है तो असर दिल्ली पर पड़ता है। पंजाब ‘आप’ हारती है तो उसका नुक्सान दिल्ली में होता है। 10 साल में एम.सी.डी. में जो भ्रष्टाचार भाजपा के राज में हुआ उसको हम मुद्दा नहीं बना पाए और जनता को समझा भी नहीं पाए। 2 साल में केजरीवाल सरकार की जो उपलब्धियां रहीं उनको भी हम ठीक से बता नहीं पाए। पार्टी को मजबूत करने के लिए बूथ स्तर, गली व मोहल्ला स्तर तक जो कार्यकत्र्ता हैं उनको तैयार करना चाहिए।


हार से सबसे बड़ा सबक क्या मिला, गुरप्रीत सिंह घुग्गी और भगवंत मान ने भी सवाल खड़े किए हैं?
चुनाव हारने के कारण तो हैं ही। किसी की बात पर प्रतिक्रिया नहीं दूंगा। हां, कार्यकत्र्ता और जनता से जुड़ाव अच्छी तरह नहीं हो पाया। निगम में 59 हजार रुपए में बंदर पकड़े जा रहे हैं। करोड़ों रुपए में वैबसाइट बनाई जा रही है। 2600 करोड़ का घोटाला घोस्ट कर्मचारियों का है लेकिन हम ये सब जनता को समझा नहीं सके ।

 

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधना भारी पड़ा?
अगर हम चुनाव जीत गए होते तो इसे कारण नहीं माना जाता। मोदी से हमारी कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है। सॢजकल स्ट्राइक पर अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सैल्यूट किया था। यहां हर जगह छपा भी लेकिन केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि पाकिस्तान के ‘डॉन’ अखबार में केजरीवाल की तारीफ हुई है। भाजपा के मित्रों को सलाह है कि अपने देश के अखबार पढ़ा करें। पाकिस्तान के अखबार पढ़ रहे हैं इसीलिए नफरत की राजनीति कर रहे हैं।


माना जा रहा था कि पंजाब से देश की राजनीति बदलेगी, क्या गड़बड़ी हो गई?
पंजाब में अकाली दल के प्रति लोगों में गुस्सा था। उस गुस्से को जनता के बीच पहुंचाया। नशाखोरी, किसानों की आत्महत्या, कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों को उठाया शीला दीक्षित के मुख्यमंत्रित्व काल में हुआ, लैंड स्लाइड जीत भाजपा की हुई। ठीक उसके बाद शीला दीक्षित की जीत हुई। एक चुनाव दिल्ली का देख लीजिए। 10 दिन पहले राजौरी गार्डन में ‘आप’ को 10 हजार वोट मिले और जमानत जब्त हुई। उसी सीट पर अब 24 हजार वोट मिले। दूसरे नम्बर की पार्टी रही। तो क्या 10 दिन में भाजपा की हवा खत्म हो गई? हर चुनाव का अपना अलग महत्व होता है। कांग्रेस का वोट प्रतिशत गिरा है, उसकी सीटें कम हुई हैं।

 

आप कहते हैं कि मोदी लहर से हारे। 2014 में भाजपा बड़े स्तर पर जीती थी, 6 महीने बाद ‘आप’ को प्रचंड बहुमत मिला?
उस समय हमारे पास 49 दिनों का रिपोर्ट कार्ड था। हमने गली-गली जाकर जनता को समझाया। इस्तीफा देने पर गलती मानी। उस बार की तरह इस बार कैंपेन नहीं चला पाए।


आप कह रहे हैं कि आम आदमी पार्टी खत्म नहीं हो रही है जबकि कांग्रेस कह रही है कि उसका वोट शेयर बढ़ा है?
निगम चुनाव को देखिए, क्या वोट प्रतिशत था? दोनों चुनावों को मिक्स नहीं कीजिए। एम.सी.डी. इलैक्शन को 15 वर्षों में देखिए। जब शीला दीक्षित थीं तो भाजपा ने लैंड स्लाइड जीत हासिल की। विधानसभा में कांग्रेस की जीत हुई। दूसरा निगम चुनाव फिर


‘आप’ ने ठीक से काम नहीं किया तो जनता ने उसे हरा दिया?
यह तो हमारा विरोधी भी नहीं कह सकता कि 2 साल में दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने काम नहीं किया। बिजली, पानी, शिक्षा, चिकित्सा, मोहल्ला क्लीनिक पर जितने काम किए, वे अपने आप में उदाहरण हैं। वे काम लोगों के दिमाग में नहीं उतार सके।


मयंक गांधी कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल के अहंकार से पार्टी हारी?
अहंकार किस बात का है हमारे अंदर? हम 2 साल तक सरकार के काम करते रहे। जहां-जहां पार्टी चुनाव लड़ी वहां-वहां हमें और आशुतोष को जिम्मेदारी दी गई। केजरीवाल जी को जहां रैलियां करनी थीं उन्होंने वहां काम किया। अहंकार तो कहीं न था।

गांधी कह रहे हैं कि हार स्वीकार करने की बजाय ‘आप’ नेता ई.वी.एम. पर गुस्सा निकाल रहे हैं?
कांग्रेस, सपा, बसपा, सी.पी.आई., सी.पी.एम. समेत 18 राजनीतिक दल ई.वी.एम. पर सवाल खड़े कर चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट में 2013 से केस चल रहा है। वी.वी.पैट पर ऑर्डर हुआ है। अगर देश की बड़ी चुनावी प्रक्रिया पर राजनीतिक दल सवाल खड़े कर रहे हैं और जनता के मन में शंका पैदा हो रही है तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए। आम आदमी पार्टी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए।


विरोधी ही नहीं, ‘आप’ के नेता भी शीर्ष नेतृत्व पर सवाल खड़े कर रहे हैं?
भाजपा में शत्रुघ्न सिन्हा, आर.के. सिन्हा व भोला सिंह समेत कई नेता पार्टी के विरुद्ध खुलेआम बोलते हैं। कांग्रेस में भी इसी तरह कई नेता हैं लेकिन पार्टी के हर सिपाही को अनुशासन का पालन करना चाहिए।

निगम चुनाव के बाद पी.एम. मोदी का कद बढ़ रहा है, दिल्ली के लिए किन मुद्दों पर काम करेंगे?
दिल्ली में हमारी सरकार है। यहां बिजली, पानी, शिक्षा व चिकित्सा पर काम किया है। एम.सी.डी. में सत्ता पक्ष के साथ मिलकर स्वच्छता पर काम करेंगे।


अरविंद केजरीवाल बिहार के सी.एम. नीतीश कुमार की राह पर हैं। जब हार हुई तो नोटबंदी को भूल गए और पी.एम. पर निशाना साधने की रणनीति बदल दी?
हमारा आज भी यही मानना है कि नोटबंदी से न काला धन वापस आया, न नक्सलवाद रुका, न आतंकवाद रुका व न भ्रष्टाचार कम हुआ। यह फैसला गलत था। साढ़े 14 लाख करोड़ रुपए की जगह 17 लाख करोड़ रुपए जमा हो गए, अढ़ाई लाख करोड़ कहां से आए? इस पर देश में चर्चा नहीं हो रही।


क्या कुछ विधायक अरविंद केजरीवाल का इस्तीफा मांग रहे हैं?
यह बेबुनियाद खबर है।


पार्टी में आपसी विश्वास बना रहना चाहिए
विश्वास कहते हैं कि उनसे प्रचार नहीं करवाया गया, इसी कारण हार हुई और मैं जो कह रहा हूं अरविंद को पता है। किसी भी साथी को पार्टी के खिलाफ बोलने की इजाजत अरविंद केजरीवाल क्यों देंगे? पार्टी के जितने भी वरिष्ठ नेता हैं, यदि वे मानते हैं कि गलतियां हुई हैं तो उन्हें दूर करना चाहिए। उस बात को बार-बार बाहर बोलकर कुछ हासिल नहीं होगा। इससे विपक्षियों को अपने ऊपर हमला करने का मौका दिया जा रहा है। इस प्रकरण पर मनोज तिवारी टिप्पणी करेंगे तो क्या कहें? पार्टी की बातें पार्टी परिवार के अंदर ही होनी चाहिएं।

क्या कुमार विश्वास पार्टी हित के खिलाफ काम कर रहे हैं?
ऐसा मैंने नहीं कहा। मैं कह रहा हूं कि जो भी कमियां रहीं। उसकी चर्चा पार्टी फोरम पर होनी चाहिए।गया लेकिन हार के क्या कारण रहे, इसके पूरे कारणों की विवेचना नहीं हो पाई है। पंजाब के साथियों के साथ बैठकर मंथन करना पड़ेगा।

 

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