देश में 6 करोड़ 50 लाख बच्चे इस बीमारी की जद में

Edited By ,Updated: 19 Nov, 2016 10:58 AM

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बच्चों में बौद्धिक विकलांगता यानि मंदबुद्धि एक ऐसा रोग है, जिससे एक बच्चे की पूरी जिंदगी दूसरों पर निर्भर हो जाती है। बच्चे की उम्र तो बढ़ जाती है लेकिन दिमाग का विकास उम्र के हिसाब से नहीं हो पाता। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है।

चंडीगढ़(रवि) : बच्चों में बौद्धिक विकलांगता यानि मंदबुद्धि एक ऐसा रोग है, जिससे एक बच्चे की पूरी जिंदगी दूसरों पर निर्भर हो जाती है। बच्चे की उम्र तो बढ़ जाती है लेकिन दिमाग का विकास उम्र के हिसाब से नहीं हो पाता। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। 

 

पी.जी.आई. के मनोचिकित्सक विभाग की डा. रितु नेहरा बताया कि यह दिमागी विकलांगता एक ऐसा रोग है, जो गर्भावस्था में ही बच्चे को हो जाता है, जिसकी वजह से बच्चों का दिमाग पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता। अगर इस रोग का इलाज शुरुआत में न कराया जाए तो इससे बच्चों के दिमाग पर ज्यादा असर हो सकता है जिसकी कभी भी भरपाई नहीं की जा सकती। कई मामलों में बच्चा जन्म के तुरंत बाद नहीं रोता, जिसकी वजह से उसके फेफड़े नहीं खुलते ऐसे में बच्चे के दिमाग को ऑक्सीजन नहीं पहुंचती। इससे भी बच्चा मंदबुद्धि हो सकता है। इस रोग से हुए नुक्सान की भरपाई तो नहीं हो सकती है लेकिन इसके भविष्य में होने वाले नुक्सान को रोका जा सकता है। इस समय देश में करीब 6 करोड़ 50 लाख बच्चे इस बीमारी का शिकार हैं। माता-पिता जब भी ये महसूस करें कि उनके बच्चे को काम करने में, बोलने में, खाना खाने में कोई समस्या आ रही है तो उन्हें तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। पी.जी.आई. में 300 बच्चों में से 100 बच्चे इस बीमारी के लिए यहां आते हैं। 

 

बच्चों को चाहिए पूरा पोषण :
पी.जी.आई. पैडिएट्रीक्स विभाग की डा. प्रभजोत मल्ही ने कहा कि बच्चों को पूरे पोषण की जरूरत होती है। अगर बच्चों को पूरा पोषण न मिले तो उनके दिमाग का पूरा विकास नहीं हो पाता। ऐसे में भी बच्चों के दिमागी विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिससे वे दिमागी विकलांगता का शिकार हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि पांच साल तक बच्चों को का दिमाग ज्यादा तेजी बढ़ता है। ऐसे में उन्हें भरपूर पोषण की जरूरत होती है। डा. मल्ही ती माने तो पोषण के अलावा माता-पिता को भी कई जिम्मेदारियां निभानी होती हैं। जैसे माता-पिता बच्चों से भरपूर बातें करें। उनके साथ नए-नए खेल खेंले ,इससे बच्चों को बौद्धिक विकास में सहायता मिलेगी। इसके अलावा बच्चों के लिए बाजार से खिलौने खरीदने की बजाए बच्चों के साथ मिलकर खुद खिलौने बनाएं। इससे बच्चों में कलात्मकता का विकास होगा।

 

पी.जी.आई. में स्पैशल क्लास :
डा. नेहरा ने बताया कि पी.जी.आई. में इन स्पैशल बच्चों के पेरैंट्स के लिए हर हफ्ते क्लास लगाई जाती है जहां मां माता को सिखाया जाता है कि ऐसे बच्चें के साथ कैसा व्यवहार किया जाए। किन-किन तरीकों से बच्चों को इतना काबिल बनाया जा सके कि यह बच्चें आम बच्चों की तरह जीवन जी सकें। साथ ही उन्होंने बताया कि इन बच्चों के साथ डील करना मुश्किल काम है जो आम बच्चा एक चीज को दो या तीन बार में सीख जाता है। वहीं मंदबुद्धि बच्चों को वहीं चीजें10 या 100 बार सिखाने पर भी नहीं आती। 

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