जयप्रकाश नारायण जिन्होंने हिला दी थी इंदिरा की सत्ता

Edited By Punjab Kesari,Updated: 11 Oct, 2017 03:50 PM

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भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता जयप्रकाश नारायण की आज जयंती है। कुछ लोग अलग ही मिट्टी के बने होते हैं, जो लोगों पर अपनी अलग ही छाप छोड़ जाते हैं।

नई दिल्ली: भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता जयप्रकाश नारायण की आज जयंती है। कुछ लोग अलग ही मिट्टी के बने होते हैं, जो लोगों पर अपनी अलग ही छाप छोड़ जाते हैं। जयप्रकाश नारायण उन्हीं लोगों में से एक हैं जिनके विचारों ने एक अलग जोश और क्रांति भारत की जनता के अंदर भर दी। जयप्रकाश नारायण की एक हुंकार से पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक का सिंहासन डोल गया था। जेपी के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण घर-घर में क्रांति का पर्याय बन चुके थे। जेपी को इंदिरा विरोधी माना जाता था और इनकी वजह से ही उस समय कांग्रेस के हाथ से सत्ता गई थी।
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जेपी ने दिया सम्पूर्ण क्रांति का नारा
पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया था। मैदान में उपस्थित लाखों लोगों ने जात-पात, तिलक, दहेज और भेद-भाव छोड़ने का संकल्प लिया था। उसी मैदान में हजारों लोगों ने अपने जनेऊ तोड़ दिए थे।

नारा गूंजा था:
जात-पात तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो।
समाज के प्रवाह को नई दिशा में मोड़ दो।

सम्पूर्ण क्रांति की तपिश इतनी भयानक थी कि केन्द्र में कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ गया था। जय प्रकाश नारायण जिनकी हुंकार पर नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ता था।
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इंदिरा गांधी के खिलाफ क्रांति की शुरुआत
इंदिरा गांधी के शासन के दौरान देश मंहगाई से लेकर कई बुनियादी आवश्यकतों के लिए जूझ रहा था लेकिन पूर्व पीएम अपनी सत्ता के मद में खोई हुईं थीं। लोग काफी परेशान हो चुके थे। पहले तो जेपी ने इंदिरा को खत लिखा और देश के हालात के बारे में जानकारी दी। इंदिरा के साथ ही उन्होंने देश के अन्य सासंदों को भी पत्र लिखा लेकिन इंदिरा ने इस और ज्यादा ध्यान नहीं दिया लेकिन जेपी का यह खत राजनीतिक जगत में किसी बड़े बम धमाके से कम साबित नहीं हुआ क्योंकि पहली बार किसी ने इस तरह खुलकर इंदिरा का विरोध किया था।

राज्यों सरकारों से चंदा मांग फंस गई इंदिरा
इंदिरा गांधी ने राज्यों की कांग्रेस सरकारों से चंदा लेने की मांग की। उन्होंने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री चीमन भाई से भी 10 लाख रुपए की मांग की। इतना चंदा देने के लिए राज्य का कोष बढ़ाने के लिए कई चीजों के दाम बढ़ा दिए गए। इससे पूरे राज्य में आंदोलन शुरू हो गया। आंदोलन को रोकने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया जिसमें कई लोगों की मौत हो गई थी। तब जेपी नारायण ने आंदोलन का समर्थन किया, उन्होंने गुजरात बुलाया गया। 9 फरवरी 1974 को जयप्रकाश नारायण के गुजरात आने से दो दिन पहले ही चिमनभाई से इस्तीफा दिलवा दिया और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। उसके बाद मोरारजी देसाई ने नारायण के साथ दोबारा चुनाव करवाने की मांग की। उसी समय रेलवे के लाखों कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। इंदिरा के सामने सबसे बड़ी परेशानी खड़ी हो गई थी कि वह पहले किससे निपटे।
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बिहार आंदोलन से भड़की आग
बिहार से उठी सम्पूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी। उनके इस आंदोलन में कई छात्र शामिल थे। लालू यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान और सुशील कुमार मोदी, आज के सारे नेता उसी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे। जयप्रकाश नारायण ने सरकार को हटाने को लेकर आंदोलन तेज कर दिया। 8 अप्रैल 1974 को जयप्रकाश नारायण ने विरोध के लिए जुलूस निकाला, जिसमें सत्ता के खिलाफ आक्रोशित जनता ने हिस्सा लिया. इसमें हजारों ही नहीं लाखों लोगों ने भाग लिया और खुद जयप्रकाश नारायण ने इसकी अगुवाई की थी। इस आंदोलन के बाद इंदिरा के हाथ से सत्ता खिसक गई।

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