राष्ट्रपति चुनाव : ये पार्टियां हो सकती हैं गेमचेंजर

Edited By ,Updated: 24 Apr, 2017 07:08 PM

presidential elections these parties can be game changers

आगामी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों में सुगबुगाहट तेज हो गई है। जहां भाजपा की अगुआई वाली एनडीए की जीत का पलड़ा भारी...

नई दिल्ली:आगामी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों में सुगबुगाहट तेज हो गई है। जहां भाजपा की अगुआई वाली एनडीए की जीत का पलड़ा भारी नजर आ रही है, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी राष्ट्रपति चुनाव के लिए व्यापक गठबंधन बनाने के लिए टॉप विपक्षी नेताओं से मुलाकत कर सक्रिय हो गई हैं। तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने भी हाल में बीजेडी चीफ नवीन पटनायक से मुलाकात की थी। ये राजनीति बैठकें इस बात का संकेत हैं कि नए राष्ट्रपति के चुनाव के लिए सरकार और विपक्ष, दोनों तरफ से पर्दे के पीछे से काम चल रहा है।

एनडीए में शामिल हैं 23 पार्टियां
एनडीए में इस समय 23 पार्टियां शामिल हैं तथा इनका वोट प्रतिशत 48.64 है। अगर राजनीतिक समीकरण बिगड़ता है तो कांग्रेस की अगुआई वाले विपक्ष के साथ जाने वाली 23 राजनीतिक पार्टियों का वोट प्रतिशत 35.47 हो जाएगा। वोट शेयर के मामले में विपक्ष फिर भी एनडीए से बहुत पीछे है। विपक्ष के 35.47 फीसदी वोट शेयर के मुकाबले बीजेपी के पास इलेक्टोरल कॉलेज में 40 फीसदी वोट हैं। वोट प्रतिशत के मामले में भाजपा गठबंधन(एनडीए) कांग्रेस गठबंधन (यूपीए) गठबंधन से लगभग 15 फीसदी बढ़त बनाए हुए है।

पांच राज्यों की विधानसभा चुनावी जीत से भाजपा के वोट शेयर में जबरदस्त उछाल
 पांच राज्यों की विधानसभा चुनाव में जबरदस्त जीत के बाद भाजपा की पकड़ और मजबूत हो गई है। हालांकि पंजाब और गोवा में पार्टी के वोट शेयर में काफी गिरावट आई है, लेकिन उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड ओर मणिपुर में पार्टी के शानदान प्रदर्शन ने राष्ट्रपति चुनाव से जुड़े इलेक्टोरेल कॉलेज में 5.2 फीसदी वोटों का कुल फायदा हुआ। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की करारी हार के बाद विपक्ष की एकजुटता को करारा झटका लगा है।

ये छोटी पार्टियां बिगाड़ सकती हैं खेल
तमिलनाडु की एआईएडीएमके, बीजेडी (ओडिशा), वाईएसआरसीपी (आंध्र प्रदेश), आम आदमी पार्टी (दिल्ली और पंजाब) और आईएनएलडी (हरियाणा) के पास वर्तमान में 13 फीसदी से भी ज्यादा वोट शेयर है। इन पार्टियों का एनडीए और यूपीए से दूरी बना रखी है। ऐसे में इन राजनीतिक दलों का रुख राष्ट्रपति चुनाव को दिलचस्प बना सकता है। अगर ये सभी 6 पार्टियां कांग्रेस के साथ शामिल होती हैं तो मुकाबला बेहद दिलचस्प होगा।

शिवसेना भी बिगाड़ सकती है भाजपा का खेल
इसके विपरीत अगर भाजपा इन पार्टियों में से कुछ को भी अपने साथ शामिल करने में सफल होती है उसकी राह आसान हो जाएगी। एनडीए को सिर्फ एक या दो पार्टियों के समर्थन की जरूरत होगी। भाजपा इस समय सत्ता में है इसलिए उसे चुनावी नतीजे अपने पक्ष में करने के लिए ज्यादा परेशानी नहीं होगी। गौरतलब है कि भाजपा की प्रमुख सहयोगी शिवसेना इससे पहले दो बार भाजपा का खेल बिगाड़ चुकी है पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और प्रणव मुखर्जी को शिवसेना ने अपना समर्थन दिया था। हालांकि इस बार बजट सत्र के दौरान एनडीए ने राष्ट्रपति चुनाव से पहले एकता दिखाई।

क्या है इलेक्टोरल कॉलेज ?
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव एक इलेक्टोरल कॉलेज करता है। लेकिन इसके सदस्यों का प्रतिनिधित्व अनुपातिक भी होता है। उनका सिंगल वोट ट्रांसफर होता है, लेकिन उनकी दूसरी पसंद की भी गिनती होती है। यहां वोटों के गणित को समझने के लिए कुछ बातें जानना जरूरी है।

अप्रत्यक्ष निर्वाचन:राष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचक मंडल यानी इलेक्ट्रॉरल कॉलेज करता है। अर्थात जनता अपने राष्ट्रपति का चुनाव सीधे नहीं करती, बल्कि उसके वोट से चुने गए प्रतिनिधि करते हैं।

वोट का अधिकार: इसमें सभी प्रदेशों की विधानसभाओं के चुने हुए सदस्य और लोकसभा सांसद वोट डालते हैं, लेकिन राष्ट्रपति द्वारा संसद में नामित सदस्य वोट तथा राज्यों की विधान परिषदों के सदस्य नहीं डाल सकते, क्योंकि वे जनता के द्वारा चुने गए सदस्य नहीं होते हैं।

सिंगल ट्रांसफरेबल: इस चुनाव में एक खास तरीके से वोटिंग होती है जिसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहते हैं। यानी वोटर एक ही वोट देता है, लेकिन वह राष्ट्रपति चुनाव में भाग ले रहे सभी उम्मीदवारों में से अपनी प्राथमिकता तय कर देता है। वोट देने वाला बैलेट पेपर पर अपनी पसंद को पहले दूसरे तथा तीसरे क्रमानुसार बताता है यदि पहली पसंद वाले उम्मीदवार के वोटों से विजेता का फैसला नहीं होता है तो उम्मीदवार के खाते में वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह ट्रांसफर किया जाता है।

अनुपातिक व्यवस्था: वोट डालने वाले सांसदों और विधायकों के वोट की कीमत अलग-अलग होती है। यह कीमत जिस तरह तय होती है उसे अनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था कहते हैं।

विधायक के वोट: विधायक के मामले में जिस राज्य का विधायक है उसकी आबादी देखी जाती है।इसके साथ उस राज्य के विधानसभा सदस्यों की संख्या  को भी ध्यान में रखा जाता है। वेटेज निकालने के लिए प्रदेश की जनसंख्या  को चुने गए विधायकों की संख्या  से बांटा जाता है। इस तरह जो भी नंबर मिलता है, उसे फिर एक हजार से भाग दिया जाता है। अब जो आंकड़ा सामने आता है वही उस राज्य के विधायक के वोट का वेटेज होता है। एक हजार से भाग देने पर अगर शेष पांच सौ से ज्यादा हो तो वेटेज में एक जोड़ दिया जाता है।

सांसद के वोट: सांसदो के वोटों का वेटेज का समीकरण थोड़ा अलग है। सबसे पहले सभी राज्यों की विधानसभा के चुने गए सदस्य के वोटों का वेटेज जोड़ा जाता है। इसके बाद राज्यसभा और लोकसभा के चुने गए सदस्य की कुल संख्या  से भाग दिया जाता है। इसके बाद जो नंबर मिलता है वह एक सांसद के वोट का वेटेज होता है। 


 

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