प्राइवेट अस्पतालों का बड़ा खेल, कमाई बढ़ाने वाले डॉक्टरों को मिलती है शाबाशी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Dec, 2017 01:36 PM

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इलाज के नाम पर निजी अस्पताल लोगों की गाढ़ी कमाई पर हाथ साफ करने जैसा काम कर रहे हैं। लोगों से मनमाना पैसा वसूलने के लिए डिस्पोजेबल आइटम यानी एक बार इस्तेमाल की जाने वाली छोटी-छोटी वस्तुओं को लेकर बड़ा खेल किया जाता है। भारतीय प्रतिस्पद्र्धा आयोग के...

नेशनल डेस्क: इलाज के नाम पर निजी अस्पताल लोगों की गाढ़ी कमाई पर हाथ साफ करने जैसा काम कर रहे हैं। लोगों से मनमाना पैसा वसूलने के लिए डिस्पोजेबल आइटम यानी एक बार इस्तेमाल की जाने वाली छोटी-छोटी वस्तुओं को लेकर बड़ा खेल किया जाता है। भारतीय प्रतिस्पद्र्धा आयोग के उप निदेशक की जांच के बाद जो रिपोर्ट दी गई है उसके अनुसार मैक्स अस्पताल, पटपडगंज में अकेले सिरींज में ही 525 प्रतिशत तक फायदा लिया गया है। यही नहीं मैक्स समूह के सभी 14 अस्पतालों में वस्तुओं पर बहुत ज्यादा लाभ लेने की बात सामने आई है। यह तो केवल एक निजी अस्पताल की बात है। ज्यादातर निजी अस्पतालों में अत्यधिक मुनाफा कमाने का यह खेल धड़ल्ले से चलता है। प्राइवेट अस्पतालों में उपचार कराने का मतलब है बैंक खाली करने देने वाला बिल। गुडग़ांव के फोर्टिस अस्पताल में डेंगू पीड़ित एक बच्ची जिसकी मौत हो गई, उसके परिजनों को 16 लाख रुपए का बिल थमाने का मामला भी दुनिया के सामने आ ही चुका है। इससे भी साफ पता चलता है कि निजी अस्पतालों में दवाइयों के नाम पर अंधाधुंध कमाई का खेल कैसे चल रहा है।

भर्ती होने से पहले पता लगा लें संभावित बिल 
किसी खास बीमारी के इलाज के बदले कौन से अस्पताल में कितना बिल बनेगा उसकी संभावित जानकारी घर बैठे मिल सकती है। इससे विभिन्न दरें, बेड-कमरे का किराया और सर्जन का शुल्क जैसी जानकारियां और फाइनल बिल का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस प्रक्रिया के तहत मरीज अपने हिसाब से उपयुक्त अस्पताल का चयन कर सकते हैं। यह सुविधा निजी स्वास्थ्य बीमा कंपनियों की वेबसाइट पर मौजूद है। वेबसाइट पर मरीज अस्पतालों की समीक्षा कर उसके बारे में अपनी राय भी देते हैं। जिसे पढ़कर भी आप को बहुत अच्छी जानकारी मिल सकती है। 

कमाई बढ़ाने वाले डॉक्टरों को शाबाशी 
विशेषज्ञों की मानें तो अस्पतालों की शृंखला (चेन ऑफ हॉस्पिटल्स) चलाने वाले प्रबंधन को कम लागत में ज्यादा मुनाफा दिलाने वाले डॉक्टरों की जरूरत रहती है। डॉक्टरों की नियुक्ति के दौरान इस को लेकर विशेष तौर पर ध्यान दिया जाता है। डॉक्टरों ने मेडिकल उत्पाद का 4-5 बार इस्तेमाल कर लिया तो इसे लागत कम करने का एक कारगर तरीका माना जाता है। ऐसे डॉक्टरों को कंपनी समय-समय पर शाबासी भी देती है। अधिक से अधिक और महंगी दवा लिखकर भी मरीजों के परिजनों से जमकर पैसा वसूला जाता है। एक नामचीन हृदय रोग विशेषज्ञ ने बताया कि इस तरह मेडिकल उत्पादों का दोबारा इस्तेमाल करना अनैतिक है। वहीं, मरीज की अनुमति के बिना ऐसा करना आपराधिक भी है। जबकि बार-बार इस्तेमाल में लाए गए उत्पादों के लिए मरीज से पैसे वसूल करना बहुत बड़ी धोखाधड़ी है। 

बिल में विवरण नहीं दिया जाता
ध्यान देने की बात यह है कि निजी अस्पताल बिल में उपचार के दौरान उपयोग में लाई गई वस्तुओं का विस्तृत विवरण नहीं देते हैं। जिसके कारण इस्तेमाल में आने वाली वस्तुओं के मामले में मरीज पूरी तरह अंधेरे में रहता है। विशेषज्ञों की मानें तो यह प्रक्रिया अस्पतालों के लिए फायदेमंद साबित होती है। कई प्राइवेट अस्पतालों में कुछ सॢजकल या मेडिकल सामग्रियों का बार-बार इस्तेमाल किया जा रहा है, जबकि एक बार उपयोग में लाकर इनका निस्तारण करना जरूरी होता है। ये अस्पताल उपयोग में लाए जा चुके सामानों की कीमत पता नहीं कितनी बार वसूलते रहते हैं। 

इन उत्पादों का होता है दोबारा इस्तेमाल 
पीटीसीए बलून्स, पीटीसीए किट, गाइड वायर्स, गाइड कैथेटर्स, इन्फ्लेशन डिवाइस आदि।

चेतावनी के बाद भी नहीं सुधरे हालात 
ऐंजियोप्लास्टी के मामले में कैथेटर, गाइड वायर और बलून जैसे डिस्पोजेबल का इस्तेमाल किया जाता है। जानकारों के मुताबिक अस्पताल उपयोग में लाए जा चुके इन सामानों को कई बार प्रयोग में लाते हैं। चिंता की बात यह है कि इससे इन्फेक्शन का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। वहीं, अस्पतालों को इसका लाभ मिलता है। व्यावसायिक सूत्रों की मानें तो इस गोरखधंधे से अस्पतालों को प्रति मरीज  25,000 से 35,000 रुपए का फायदा होता है। इस गोरख धंधे पर नकेल कसने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने 21 दिसम्बर, 2016 को एक निर्देश जारी किया था। जिसमें सर्जरी के दौरान उपयोग में आने वाले डिस्पोजेबल आइटमों के दोबारा इस्तेमाल के खिलाफ चेतावनी जारी की गई थी। चेतावनी खासकर कार्डिओलॉजी (हृदयरोग की चिकित्सा) को लेकर जारी की गई थी, लेकिन यह खेल रुका नहीं, लगातार जारी है। एक बड़े अस्पताल के हृदय रोग विशेषज्ञ ने बताया कि ज्यादातर निजी अस्पतालों इसके लिए चिकित्सकों पर दबाव बनाया जाता है। ज्यादातर अस्पतालों में  इन वस्तुओं को 4-5 बार उपयोग में लाया जाता है, लेकिन हर मरीज से नए सामान की रकम वसूल की जाती है। 

ऐसे लगाई जा सकती है रोक
मनमानी वसूली से जुड़ी गड़बड़ी को पकडऩा आसान है। निगरानी करने वाली एजेंसियां चाहें तो अस्पतालों में होने वाली सर्जरी की संख्या पता कर सकती हैं। अस्पतालों से वार्षिक स्तर पर खरीदे गए डिस्पोजेबल मेडिकल उत्पादों का बिल दिखाने के लिए बाध्य किया जा सकता है। एक सर्जरी के दौरान कितने और कितनी बार उत्पादों का इस्तेमाल किया जा सकता है, यह तय होता है। अगर जांच में पाया जाता है कि ऑपरेशनों की तुलना में उत्पाद कम खरीदे गए हैं, तो इसका स्पष्ट मतलब होगा कि उत्पादों को कई बार इस्तेमाल किया गया।


 

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