गुजरात में सहयोगियों को कांग्रेस दे सकती है 90 सीट

Edited By Punjab Kesari,Updated: 28 Oct, 2017 02:42 PM

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गुजरात विधानसभा चुनाव में अपनी मजबूत पैठ बनाने के लिए कांग्रेस अपने सभी सहयोगियों के साथ बेहतर तालमेल बना रही है। इतना ही नहीं उनकी मांगों को भी गंभीरता से ले रही है। यही कारण है कि गुजराज की राजनीति में प्रभुत्व रखने वाले पाटीदार व दलित समुदाय के...

नेशनल डेस्क: गुजरात विधानसभा चुनाव में अपनी मजबूत पैठ बनाने के लिए कांग्रेस अपने सभी सहयोगियों के साथ बेहतर तालमेल बना रही है। इतना ही नहीं उनकी मांगों को भी गंभीरता से ले रही है। यही कारण है कि गुजराज की राजनीति में प्रभुत्व रखने वाले पाटीदार व दलित समुदाय के लीडरों को कांग्रेस आलाकमान नाराज नहीं करना चाहता है। गुजरात में पाटीदार समाज 83 सीट पर प्रभुत्व रखता है। पाटीदारों के अलावा ठाकोर समाज 35 तथा दलित समाज 62 सीट पर सीधा असर रखता है। इसके बाद ठाकोर और दलित समुदाय प्रभावशाली स्थिति में हैं। इसलिए कांग्रेस जातिवादी नेताओं पर दांव लगा रही है। चुनावी विश£ेषणों की माने तो पाटीदार समाज के नेताओं को कांग्रेस 45 सीटें देने को तैयार है। इसके अलावा दलित समुदाय की अगुवाई वाले नेताओं को भी 45 सीट मिलने की उम्मीद है।

परंपरागत वोट की है चिंता
गुजरात विधानसभा चुनाव में वोट मांगने का आधार हर पार्टी के लिए अलग है। कांग्रेस अपने सहयोगियों अल्पेश, जिग्रेश और हार्दिक के साथ मिलकर किसानों की कर्ज माफी, रोजगार,
शिक्षा, स्वास्थ्य और आरक्षण जैसे मुद्दों को बीजेपी क खिलाफ इस्तेमाल करने में लगी है। वहीं बीजेपी अपनी उपब्धियों को बताने में लगी है। सरदार सरोवर बांध, बुलेट ट्रेन, शहरों में बीआरटीएस, अहमदाबाद में मेट्रो, देश में सबसे अधिक रोजगार देने वाले राज्य के रूप में गुजरात की उपलब्धि, गांधीनगर में अंतरराष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंज, गांव व शहरों को 24 घंटे पानी जैसी उपलब्धियों के दम पर भाजपा विकास को प्राथमिकता से उभार रही है। लेकिन आरक्षण आंदोलन के चलते राज्य में अपना दबदबा रखने वाली पार्टियों के मैदान में आ जाने से राजनीतिक दलों का इनमें संतुलन साधना आवश्यक हो गया है। इन मुद्दों के बीच हर पार्टी का परंपरागत वोट का रूझान क्या होगा, यह बात अभी भी साफ नहीं है।

सर्वण वोट की भूमिका
गुजरात में 16 प्रतिशत सर्वण वोट है। जिसमें से 20 सीटों पर ब्राह्मण मतदाता भी निर्णायक भूमिका में हैं। लेकिन, इस समुदाय में प्रभावशाली नेताओं के साइड लाइन होने के बाद कोई नेता राजनीतिक गलियारों में स्थान नहीं बना सका। इनके अलावा आदिवासी समुदाय 34 तथा कोली समाज 18 सीट पर प्रभुत्व रखता है। इनको लेकर भी अंदरखाने राजनीतिक दल सामाजिक नेताओं से संपर्क साध रहे हैं।

 

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