जानिए पांच कारण, क्यों लालू के मुश्किल समय में नीतीश ने साधी चुप्पी?

Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Jul, 2017 01:47 PM

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आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार पर सीबीआई के बढ़ते शिकंजे ने बिहार की राजनीति में तूफान लाकर रख दिया है। राजनीतिक गलियारों में अब ऐसे कयास लगने शुरु हो गए हैं......

पटना: आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार पर सीबीआई के बढ़ते शिकंजे ने बिहार की राजनीति में तूफान लाकर रख दिया है। राजनीतिक गलियारों में अब ऐसे कयास लगने शुरु हो गए हैं कि क्या लालू पार्टी को एकजुट रख पाते हैं या नहीं? वहीं हर मुद्दे पर अपनी बात बेबाकी से रखने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लालू परिवार पर मौन हैं। आज हम आपको ऐसे पांच कारण बताने जा रहे हैं जिसकी वजह से नीतीश ने लालू के मामलें में चुप्पी साधी हुई है। 

नीतीश रखना चाहते हैं मिस्टर क्लीन की छवि बरकरार
जदयू के कई नेताओं ने चारा घोटाले के एक मामले में पहले ही दोषी करार दिए जा चुके लालू के खिलाफ नए केस को लेकर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया। इससे संकेत मिल रहे हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी मिस्टर क्लीन की छवि बरकरार रखना चाहते हैं और विपक्षी एकता में सेंध लगाते हुए दिखना भी नहीं चाहते।

सरकार चलाने की आजादी
जदयू नेताओं के एक तबके का मानना है कि आज के घटनाक्रम के बाद नीतीश की स्थिति मजबूत होगी जबकि लालू कमजोर होंगे, जिससे बिहार में सत्ताधारी महागठबंधन में उनकी तोलमोल की शक्ति कम पड़ जाएगी और मुख्यमंत्री नीतीश को सरकार चलाने में ज्यादा आजादी मिल सकेगी।

कही आंतरिक विवाद तो नहीं ?
वहीं, अगर दूसरा पहलू से इस मामले को देखा जाए तो उनकी चुप्पी का कारण महागठबंधन का आंतरिक विवाद भी हो सकता है। जहां एक तरफ नीतीश मोदी सरकार के फैसलों की तारीफ करने से पीछे नहीं हटे वहीं लालू ने अपनी मोदी कट्टर विरोधी छवि बरकरार रखी। फिर वह चाहे नोटबंदी हो या पाकिस्तान की गुपचुप यात्रा का।

सरकार गिरने का डर 
वहीं अगर राजनीतिक विश्लेषक की मानें तो नीतीश को डर है कि अगर वो लालू परिवार पर कुछ भी बोलते हैं तो उनकी सरकार गिर सकती है। साथ ही ये भी डर है कि कहीं उनके भी पार्टी का भी नाम घोटाले से जुड़ जाएगा। 

दोनों एक ही कश्ती पर सवार
दोनों ने एक ही कश्ती पर सवार होकर  अस्सी और नब्बे के दशक में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। दोनों छात्र राजनीति और जेपी आंदोलन के बाद सामने आए। लालू के सीएम बनने के बाद दोनों के रास्ते अलग हो गए। लालू राज खत्म करने के लिए 2005 में नीतीश ने एनडीए में शामिल होकर भाजपा के साथ गठबंधन किया लेकिन मोदी से टकराव के बाद नीतीश भाजपा से अलग हुए। इस चुनाव में उनकी और लालू की स्थिति कमजोर हुई, तो फिर एक कश्ती पर सवार हो गए।


 

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