Edited By ,Updated: 22 Feb, 2017 07:41 PM
सुप्रीम कोर्ट ने गूगल जैसे इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (आईएसपी) से पूछा कि वेबसाइटों पर अश्लील सामग्री अपलोड करने वाले अपराधियों की पहचान करने के लिए क्या कोई तंत्र है।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गूगल जैसे इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (आईएसपी) से पूछा कि वेबसाइटों पर अश्लील सामग्री अपलोड करने वाले अपराधियों की पहचान करने के लिए क्या कोई तंत्र है। सुप्रीम कोर्ट प्रथम दृष्टया इस दलील से सहमत नहीं हुई कि रोकथाम वाला ब्लॉकेज नहीं हो सकता, लेकिन उपचारात्मक ब्लॉकेज हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि हम रोक चाहते हैं, न कि उपचार।
जस्टिस मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति यू यू ललित की पीठ ने महिलाओं और बच्चों की प्रतिष्ठा और गरिमा को नुकसान का उल्लेख किया, जिनका अश्लील वीडियो वेबसाइटों पर अपलोड किया जाता है और गूगल के वकील से पूछा कि क्या कोई तंत्र है जो इस तरह की आपत्तिजनक सामग्रियों को अपलोड किए जाने से पहले अपराधियों की पहचान करे।
गूगल के वकील ने दलील की पेश
गूगल की तरफ से उपस्थित सीनियर वकील साजन पूवैया ने कहा कि आईएसपी (इंटरनेट सेवा प्रदाता) होने के नाते उसने अपने द्वारा होस्ट की गई सामग्रियों की सूची बनाई और जब उसे उसके संज्ञान में लाया गया तो उसे हटा लिया गया। सीनियर वकील ने कहा कि गूगल जैसे सर्च इंजनों पर वेबसाइट हर घंटे बड़ी संख्या में वीडियो और अन्य सामग्रियां अपलोड करती हैं। ऐसे में इनका विश्लेषण करना और अपलोड किए जाने से पहले उन्हें ब्लॉक करना बेहद मुश्किल होगा।