धारा 31 बी ने खोली विकास की राह

Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Jan, 2018 02:00 PM

section 31b has opened the path of development

देश की आजादी के बाद सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती देश के विकास की थी तथा इसके लिए जमीन की जरूरत थी। जमीन पर कब्जा बड़े जमींदारों का था। यदि उनसे यह जमीन जब्री ली जाती तो यह संविधान में शामिल किए गए मूल अधिकारों के हनन का मामला बनता...

नेशनल डेस्क: देश की आजादी के बाद सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती देश के विकास की थी तथा इसके लिए जमीन की जरूरत थी। जमीन पर कब्जा बड़े जमींदारों का था। यदि उनसे यह जमीन जब्री ली जाती तो यह संविधान में शामिल किए गए मूल अधिकारों के हनन का मामला बनता। लिहाजा इस स्थिति से निपटने के लिए संविधान में 9वां शैड्यूल जोड़ा गया तथा 1951 में संविधान के अनुच्छेद 31 में संशोधन किया गया तथा इसमें 31बी धारा जोड़ी गई।

क्या है 31 बी
संविधान की यह धारा देश को समाज के हित में किसी भी कार्य के लिए जमीन की जरूरत पडऩे पर जमीन के मालिक से उक्त जमीन एक्वायर करने का अधिकार देती है। आप आज जो बड़े-बड़े हाईवे, पुल, बांध, रेलवे का नैटवर्क, टैलीकाम का नैटवर्क देख रहे हो तथा इसका फायदा उठा रहे हो यह सब उक्त धारा द्वारा ही संभव हो सका है। इस धारा में साफ किया गया है कि सरकार आपकी जमीन या प्रापर्टी को बेहतर उपयोग के लिए राज्य या देश के लोगों के भले के लिए इस्तेमाल कर सकती है तथा आपको सरकार के इस काम को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं होगा।

इससे पहले क्या थी व्यवस्था 
1950 में जब देश का संविधान लागू हुआ तो संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत जमीन की मालकीयत को मौलिक अधिकारों की सूची में रखा गया था तथा इस अनुच्छेद के चलते ही देश में जमीन का बंटवारा एक समान रूप में नहीं था। देश के विकास हेतु जमीन एक्वायर करने के लिए अनुच्छेद 19 में शामिल किए गए जमीन के मालिकाना अधिकार को कानूनी रूप में खत्म करने के लिए ही धारा 31 बी जोड़ी गई। हालांकि अनुच्छेद 19 में जमीन का मालिकाना अधिकार 1978 तक शामिल रहा परंतु संविधान के अनुच्छेद 31 बी के रहते इसको किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती थी।

नेहरू लाए थे 31 बी
देश के विकास के लिए संविधान के इस अनुच्छेद में संशोधन का प्रस्ताव उस समय के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा लाया गया था। 18 जून, 1951 को देश की संसद ने इस पर मोहर लगाई तथा औपचारिक तौर पर इसे कानून बना दिया गया। इस संशोधन के साथ ही देश में ब्रिटिश शासन से चली आ रही जमींदारी प्रथा और किसानों में जमीन के असमान आबंटन को समाप्त करने की कोशिश की गई। जमींदारी प्रथा के प्रचलन की वजह से समाज में एक ऐसे वर्ग का जन्म हो गया था जो निचले वर्ग का शोषण कर रहा था। यह नए आजाद हुए भारत के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती थी। इसके जरिए बहुत से छोटे किसानों को जमीन मुहैया करवाई गई।
 

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