सौम्या हत्याकांड: केरल सरकार की संशोधन याचिका खारिज

Edited By ,Updated: 28 Apr, 2017 09:21 PM

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उच्चतम न्यायालय ने सौम्या विश्वनाथन बलात्कार एवं हत्याकांड में केरल सरकार की.....

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सौम्या विश्वनाथन बलात्कार एवं हत्याकांड में केरल सरकार की संशोधन याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी। मुख्य न्यायाधीश जे एस केहर की अध्यक्षता वाली छह-सदस्यीय पीठ ने केरल सरकार की संशोधन याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि इसमें कोई दम नहीं है। शीर्ष अदालत ने सौम्या बलात्कार एवं हत्याकांड के दोषी गोविंदाचामी की फांसी की सजा उम्रकैद में तब्दील कर दी थी। केरल सरकार ने इस मामले में पुनरीक्षण याचिका निरस्त होने के बाद संशोधन याचिका के तौर पर अंतिम हथियार अपनाया था। 

संशोधन याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह केहर के चेम्बर में हुई। न्यायमूर्ति केहर के साथ पांच अन्य सदस्य न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति जस्ती चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति प्रफुल्ल चंद पंत और न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित होंगे। गौरतलब है कि एक हाथ वाले भिखारी गोविंदाचामी पर आरोप था कि उसने धीमी गति से चल रही एर्नाकुलम-शोरानूर सवारी रेलगाड़ी के महिला डिब्बे में एक फरवरी 2011 को यात्रा कर रही सौम्या को डिब्बे से बाहर फेंका और खुद भी कूदकर नीचे आ गया। वह घायल सौम्या को पटरी के आसपास के जंगल वाले क्षेत्र में घसीटकर ले गया और उसके साथ बलात्कार किया। बाद में सौम्या की मौत हो गई थी। निचली अदालत ने बलात्कार और हत्या का दोषी ठहराते हुए गोविंदाचामी को मौत की सजा सुनाई थी, जिसे केरल उच्च न्यायालय ने सही ठहराया था। 

गोविंदाचामी ने उच्च न्यायालय के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति गोगोई, न्यायमूर्ति पंत और न्यायमूर्ति ललित ने पिछले साल फैसला सुनाते हुए गोविंदाचामी को बलात्कार का दोषी तो ठहराया था, लेकिन यह कहते हुए उसकी मौत की सजा आजीवन कारावास में बदल दी थी कि इस मामले में बलात्कार का आरोप तो साबित होता है, लेकिन हत्या के आरोप केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर ही आधारित थे। हमेशा विवादों में रहने वाले उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कण्डेय काट्जू ने इसे अनुचित फैसला ठहराया था। शीर्ष अदालत के फैसले पर अंगुली उठाने के कारण उनके खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला भी शुरू किया गया था। बाद में न्यायमूर्ति काट्जू ने इस वर्ष जनवरी में फैसले के खिलाफ अपनी टिप्पणी के लिए बिना शर्त माफी मांग ली थी, जिसके परिणामस्वरूप उनके खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला बंद कर दिया गया था।  

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