SC ने भाजपा नेता से पूछा किस हैसियत से दायर की बोफोर्स मामले में अपील

Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Jan, 2018 06:30 PM

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उच्चतम न्यायालय ने आज भाजपा नेता अजय अग्रवाल से सवाल किया कि बोफोर्स तोप सौदा मामला निरस्त करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उन्होंने किस हैसियत से अपील दायर की। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति...

नई दिल्ली; उच्चतम न्यायालय ने आज भाजपा नेता अजय अग्रवाल से सवाल किया कि बोफोर्स तोप सौदा मामला निरस्त करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उन्होंने किस हैसियत से अपील दायर की। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड की खंडपीठ ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि 31 मई, 2005 के फैसले के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो ने अपील दायर नहीं की है। इसी के साथ पीठ ने सवाल किया कि अग्रवाल ने इस मामले में किस हैसियत से अपील दायर की है।  पीठ ने कहा, ‘‘हम याचिकाकर्ता से अपेक्षा करते हैं कि वह इस मामले में अगली सुनवाई पर बहस करें और इसे विचारार्थ स्वीकार करने के पैमाने पर भी दलीलें पेश करें। इसके साथ ही पीठ ने अपील दो फरवरी के लिये सूचीबद्ध कर दी। 

दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति आर एस सोढी (अब सेवानिवृत्त) ने 31 मई, 2005 को हिन्दुजा बंधुओं - श्रीचंद, गोपीचंद और प्रकाशचंद - और बोफोर्स कंपनी के खिलाफ सारे आरोप निरस्त करते हुये इस मामले में केन्द्रीय जांच ब्यूरो की कार्यशैली पर तीखी टिप्पणियां की थीं। इस फैसले में कहा गया था कि इसकी वजह से 250 करोड रूपए का राजस्व खर्च हुआ। कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ चुके अग्रवाल ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी है।

न्यायमूर्ति सोढी के फैसले से पहले चार फरवरी, 2004 को उच्च न्यायालय के एक अन्य न्यायाधीश जे डी कपूर ने इस मामले में स्व. प्रधानमंत्री राजीव गांधी को आरोप मुक्त करते हुए बोफोर्स कंपनी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 465 के अंतर्गत धोखाधडी के आरोप निर्धारित करने का निर्देश दिया था। भारत और स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी एबी बोफोर्स के बीच 155मिमी की 400 हाविट्जर तोपों की खरीद के लिए 1437 करोड रूपए का समझौता 24 मार्च 1986 को हुआ था।  इसके बाद, 16 अप्रैल, 1987 को स्वीडन के रेडियो ने दावा किया था कि कंपनी ने शीर्ष भारतीय नेताओं और रक्षा कार्मिकों को रिश्वत दी थी।  इसी के बाद 22 जनवरी, 1990 को केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने प्राथमिकी दर्ज की थी।  

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